नक्सली और माओवादी में क्या होता है अंतर? जानें कहां से आए ये शब्द

भारत में नक्सलवाद और माओवाद हमेशा से चर्चा में रहे हैं. एक समय देश के 182 जिले नक्सल हिंसा से जूझ रहे थे, लेकिन अब सरकार का दावा है कि नक्सलवाद अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है.

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नक्सलियों और माओवादियों में अंतर

Naxalism vs Maoism: भारत में नक्सलवाद और माओवाद की चर्चा दशकों से होती आई है. कभी छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, बिहार से लेकर पश्चिम बंगाल तक इनकी गूंज सुनाई देती थी. अब सरकार का दावा है कि नक्सलवाद कमजोर हो चुका है. बहुत से लोग आज भी नक्सली और माओवादी को एक ही समझते हैं, लेकिन दोनों में कई अंतर हैं. आइए जानते हैं दोनों के बीच का फर्क और कहां से आए ये शब्द...

नक्सलवाद कैसे शुरू हुआ

नक्सलवाद की जड़ें भारत के पश्चिम बंगाल के छोटे से गांव नक्सलबाड़ी में हैं. साल 1967 में वहां के किसान जमींदारों के अत्याचार के खिलाफ उठ खड़े हुए. उनकी अगुवाई भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के दो नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल कर रहे थे. उनका मानना था कि गरीबों और भूमिहीन किसानों को न्याय दिलाने का एकमात्र रास्ता विद्रोह है. यह आंदोलन धीरे-धीरे बंगाल से निकलकर बिहार, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र तक फैल गया. यहीं से नक्सलवाद शब्द पैदा हुआ और जो इस आंदोलन में शामिल थे, उन्हें नक्सली कहा जाने लगा.

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माओवाद क्या है और कहां से आया

माओवाद, चीन के नेता माओ त्से तुंग (Mao Zedong) की विचारधारा से जुड़ा है. माओ का मानना था कि समाज में असमानता खत्म करने और सत्ता बदलने के लिए हिंसा जरूरी है. उनकी विचारधारा कहती है कि बंदूक की नली से सत्ता निकलती है. भारत में माओवादी सोच ने नक्सलवाद के जरिए ही अपनी जड़ें जमाईं. 1967 के नक्सलबाड़ी विद्रोह के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) दो हिस्सों में बंट गई. एक गुट ने माओवाद को अपनाया और सरकार के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष का रास्ता चुना.

नक्सलवाद कमजोर हुआ

गृह मंत्रालय की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 से पहले 182 जिले नक्सल प्रभावित थे, लेकिन अब इनकी संख्या घटकर सिर्फ 11 जिले रह गई है. यह सरकार की बड़ी सफलता मानी जा रही है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पिछले कुछ महीनों में सैकड़ों नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है. यानी अब देश में 'रेड कॉरिडोर' यानी नक्सल इलाका लगभग खत्म हो चुका है.

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