कितनी गहराई तक बारूद को सूंघ सकते हैं कुत्ते? सेना के साथ करते हैं ये काम

सेना और अर्धसैनिक बलों में जिन कुत्तों को तैनात किया जाता है, उन्हें खास ट्रेनिंग दी जाती है. जानिए क्या होता है उनका काम.

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नई दिल्ली:

कुत्तों की सूंघने की क्षमता इंसानों के मुकाबले कई गुना ज्यादा होती है. यही वजह है कि दुनिया भर की सेनाएं और सुरक्षा एजेंसियां बारूद, बम और दूसरे विस्फोटकों की पहचान के लिए कुत्तों की मदद लेती हैं. कुत्तों की नाक में गंध पहचानने वाली कोशिकाओं की संख्या इंसानों से कहीं अधिक होती है, जिससे वे हवा में मौजूद बेहद सूक्ष्म केमिकल कणों को भी पकड़ लेते हैं. इसी ताकत के कारण वे उन विस्फोटकों को भी पहचान सकते हैं जो इंसानी आंखों या मशीनों को नजर नहीं आते.

खास ट्रेनिंग है जरूरी

सेना और अर्धसैनिक बलों में जिन कुत्तों को तैनात किया जाता है, उन्हें खास ट्रेनिंग दी जाती है. इस ट्रेनिंग में कुत्तों को अलग-अलग तरह के विस्फोटकों और बारूद की गंध से परिचित कराया जाता है. उन्हें यह सिखाया जाता है कि जैसे ही उन्हें किसी विस्फोटक की गंध मिले, वे एक तय संकेत दें, जैसे बैठ जाना या रुक जाना या फिर पंजा उठाकर बताना. यह ट्रेनिंग कई महीनों तक चलती है ताकि कुत्ता बिना घबराए सटीक संकेत दे सके.

कितनी गहराई तक दबे बारूद को सूंघ सकता है कुत्ता?

अक्सर लोगों के मन में सवाल होता है कि कुत्ते आखिर कितनी गहराई तक दबे बारूद या विस्फोटक को सूंघ सकते हैं. इसका कोई एक तय जवाब नहीं है. वैज्ञानिक अध्ययनों के मुताबिक कुत्तों की क्षमता किसी निश्चित मीटर या फीट की गहराई से नहीं जुड़ी होती. असल में यह इस बात पर निर्भर करता है कि विस्फोटक से निकलने वाले गंध के कण मिट्टी के जरिए ऊपर तक पहुंच पा रहे हैं या नहीं. मिट्टी की बनावट, नमी, तापमान और हवा की दिशा इसमें बड़ी भूमिका निभाती है.
कई बार गंध के अणु मिट्टी की सतह तक आ जाते हैं, जिसे कुत्ते आसानी से पकड़ लेते हैं. कुछ मामलों में कुत्तों ने काफी गहराई में दबे विस्फोटकों की मौजूदगी का भी संकेत दिया है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि इसे किसी तय गहराई से जोड़कर देखना सही नहीं होगा. अगर मिट्टी ज्यादा सख्त हो या गंध के कण वहीं फंस जाएं, तो बहुत गहराई पर मौजूद बारूद को पहचानना मुश्किल हो सकता है.

कुत्ते कैसे करते हैं फोर्स की मदद

सेना और पुलिस के लिए ये डिटेक्शन डॉग्स बेहद अहम होते हैं. बारूदी सुरंगों वाले इलाकों, आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों और संदिग्ध जगहों पर सबसे पहले कुत्तों को आगे भेजा जाता है. कुत्ता केवल यह संकेत देता है कि किसी जगह पर विस्फोटक हो सकता है, इसके बाद इंसानी टीम और तकनीकी उपकरण वहां जाकर जांच करते हैं. इससे सैनिकों की जान का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है.

हालांकि कुत्तों की भी कुछ सीमाएं होती हैं. ज्यादा गर्मी, ज्यादा नमी या लंबे समय तक काम करने से वे थक सकते हैं. इसके बावजूद कई मामलों में उनकी नाक आधुनिक मशीनों से भी ज्यादा भरोसेमंद साबित हुई है. यही कारण है कि आज भी दुनिया की लगभग हर बड़ी सेना और सुरक्षा एजेंसी विस्फोटक पहचानने के लिए कुत्तों पर भरोसा करती है.

आज के इस आधुनिक दौर को मशीनी दौर कहा जाता है. लेकिन तमाम तकनीकी तरक्की और अच्छे गैजेट्स के बावजूद कुत्तों की सूंघने की क्षमता का कोई तोड़ नहीं ढूंढा जा सका है. कुत्तों की मदद से आज भी कई पेचीदा मामले सुलझाए जा रहे हैं. ऐसे में सुरक्षा के मोर्चे पर कुत्ते आज भी इंसान के सबसे भरोसेमंद साथी बने हुए हैं.

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