Christmas Day 2025: दुनियाभर में एक बार फिर क्रिसमस डे की तैयारी शुरू हो चुकी है. सदियों से इस जश्न को मनाया जा रहा है. भारत में भी क्रिसमस डे पर खास सेलिब्रेशन होता है. देश के कोने-कोने में इसे बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. यहां तक कि स्कूल, कॉलेज और वर्किंग सेक्टर में भी इस पर खास कार्यक्रम होते हैं. कहा जाता है कि क्रिसमस डे की संध्या पर सांता क्लॉज बच्चों को गुपचुप गिफ्ट देकर चले जाते हैं. ऐसा हमने और आपने कई बार सुना है और हम भी अपने बच्चों को यही कहानी सुना रहे हैं कि सांता क्लॉज रात को आएगा और आपके तकिए के नीचे गिफ्ट रखकर चला जाएगा. क्या वाकई में सांता क्लॉज थे, अगर थे तो क्या सच में वह बच्चों को गिफ्ट देकर जाते हैं?, चलिए जानते इसके बारे में.
क्यों मनाया जाता है क्रिसमस डे?
25 दिसंबर को क्रिसमस डे मनाने का मतलब है कि इस दिन ईसा मसीह का जन्म हुआ था. उन्हें ईश्वर का पुत्र व दूत कहा जाता है. ईसाई धर्म में इस त्योहार को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन दुनियाभर के चर्च रोशनी से चमकते और प्रेयर से गूंज उठते हैं.
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कौन थे सांता क्लॉज?
सांता क्लॉज का असली नाम सेंट निकोलस था, जो बहुत ही मजाकिया और खुशमिजाज किस्म के इंसान थे. उनका जन्म 280 ईसवी में तुर्कमेनिस्तान के मायरा शहर में हुआ था. उनके बचपन में ही माता-पिता चल बसे थे. मुश्किलों में गुजरे बचपन के बाद भी ईश्वर के प्रति उनका विश्वास नहीं डगमगाया और वह लगातार जीसस क्राइस्ट की भक्ति में लीन रहे. पहले वह पादरी और फिर बाद में बिशप बने.
उनकी पत्नी का नाम क्लॉज था. उन्हें बच्चों को गिफ्ट देना और उनके साथ समय बिताना बहुत अच्छा लगता था. इसलिए सांता क्लॉज रात के अंधेरे में अपनी पहचान छिपाकर बच्चों को गिफ्ट देने जाते थे. निकोलस को सांता क्लॉज का नाम उनके गिफ्ट बांटने की आदत के चलते मिला था. अमेरिका में डच लोक चरित्र 'सिंटरक्लॉस' के आधार पर उनको ये नाम मिला था.
क्या सच सांता क्लॉज बांटते थे गिफ्ट?
मान्यता है कि सांता क्लॉज सच में गरीब और असहाय बच्चों को गिफ्ट बांटा करते हैं. उनके ऐसा करने के पीछे उनके गरीबी में गुजरे बचपन के हालातों को भी माना जाता है. वह गुप्त रूप से बच्चों को उपहार दिया करते और जरूरतमंदों की मदद किया करते थे. कहा जाता है कि वह रंग-बिरंगे ज्यादातर लाल रंग के कपड़े पहनकर बारहसिंगा रुडोल्फ पर बैठकर रात के घुप अंधेरे में बच्चों को गिफ्ट देने जाया करते थे. उनका निधन 6 दिसंबर 343 ईसवी में मायरा में ही हुआ था.














