बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होते ही तमाम समीकरण बनाए और बिगाड़े जा रहे हैं. एनडीए से लेकर महागठबंधन के दल अपने उम्मीदवारों का ऐलान किया जा रहा है. इस बीच आपने भी कई बार ये खबर सुनी होगी कि किसी उम्मीदवार का टिकट काट दिया गया या किसी को पार्टी ने टिकट दिया है. कुल मिलाकर चुनावी माहौल में टिकट का खूब जिक्र होता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये टिकट आखिर होता कैसा है? यानी अगर किसी पार्टी ने एक उम्मीदवार को टिकट दिया है तो उसमें क्या होता है और कैसे उसे इसकी गारंटी दी जाती है. आइए आपको बताते हैं कि आखिर टिकट देने का पूरा प्रोसेस क्या होता है.
कैसे दिया जाता है टिकट?
देश की तमाम बड़ी पार्टियों का टिकट मिलना एक बड़ी बात माना जाता है. इसका सीधा मतलब उस पार्टी के चुनाव चिन्ह का मिलना होता है. आमतौर पर पार्टी की कमेटी या फिर मुखिया तय करते हैं कि किसे टिकट दिया जाएगा और किसका टिकट काटा जाएगा. एक बार नाम का चुनाव हो गया तो इसके बाद का प्रोसेस चुनाव आयोग में करना होता है.
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पार्टी टिकट के साथ क्या देती है?
जब भी कोई पार्टी किसी उम्मीदवार को किसी सीट से टिकट देती है तो ये एक लेटर हेड के तौर पर होता है, जिस पर उम्मीदवार का नाम और बाकी जानकारी होती है. साथ ही ये भी लिखा होता है कि उम्मीदवार किस विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ेगा. इसके अलावा पार्टी की जो लिस्ट जारी होती है, उसमें भी उस उम्मीदवार का नाम और सीट बताई जाती है.
चुनाव आयोग का रोल
अगर किसी उम्मीदवार को किसी पार्टी ने टिकट दिया है तो उसे चुनाव आयोग में भी इस बात की जानकारी देनी होती है. नामांकन दाखिल करते हुए पार्टी का दिया गया लेटर भी लगाना होता है, जिसके बाद चुनाव आयोग उम्मीदवार के लिए अलग से कोई चुनाव चिन्ह जारी नहीं करता है और उसी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर इलेक्शन लड़ने की इजाजत दी जाती है. ये करने के बाद ईवीएम में उम्मीदवार के नाम के आगे उसी पार्टी का सिंबल आता है, जिससे उसे टिकट दिया गया है.