कठफोड़वा... जंगल का बेहतरीन इंजीनियर, बिना छेनी हथौड़ा चीर देता है पेड़ का सीना

Woodpeckers Interesting Information: कठफोड़वा पक्षी अपनी तेज चोंच से पेड़ों के तने को दिनभर ठोकता रहता है और इसी वजह से इसे 'कठफोड़वा' कहा जाता है. कठ यानी लकड़ी और फोड़वा मतलब तोड़ने वाला.

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कठफोड़वे पेड़ों पर थप-थप कर तेज आवाज निकालकर एक-दूसरे को संदेश भेजते हैं.
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  • कठफोड़वा पक्षी अपनी तेज और महीन चोंच से पेड़ों के सख्त तनों में गहरे छेद कर घोंसला बनाता है.
  • कठफोड़वा की खास खोपड़ी संरचना इसे लगातार पेड़ पर थप-थप करने के बावजूद मस्तिष्क को चोट से बचाती है.
  • भारत में कठफोड़वा लगभग सभी इलाकों में पाए जाते हैं लेकिन जंगलों की कटाई से उनकी संख्या घट रही है.
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Woodpeckers Facts: थप-थप-थप, अगर आपको जंगल में ऐसी आवाज सुनाई दे, तो समझ जाइएगा कि आसपास कोई कठफोड़वा (Woodpecker) है. तेज, महीन और लंबी चोंच वाली कठफोड़वा चिड़ि‍या पेड़ों के सख्‍त से सख्‍त तनों को बिना किसी छेनी हथौड़े के चीर देती है. सिर्फ 3 इंच की कठफोड़वा चिड़ि‍या पेड़ के तने में इतनी तेजी से चोंच मारती है कि कुछ ही पलों में पेड़ के तने में गहरा छेद हो जाता है. कुदरत ने कठफोड़वा को ऐसी छेनीनुमा चोंच दी है, जिससे वह पेड़ों का सीना चीर अपने लिए तनों में घोंसला बनाती है. साथ ही इसके मस्तिष्‍क की बनावट ऐसी होती है, जिससे दिनभर पेड़ के तने में थप-थप-थप करने पर भी इसके सिर को कोई नुकसान नहीं होता है.

'कठफोड़वा' क्‍यों पड़ा नाम | Why Named Woodpecker

कठफोड़वा पक्षी अपनी तेज चोंच से पेड़ों के तने को दिनभर ठोकता रहता है और इसी वजह से इसे 'कठफोड़वा' कहा जाता है. कठ यानी लकड़ी और फोड़वा मतलब तोड़ने वाला. कठफोड़वा भारत के लगभग सभी हिस्सों में पाया जाता है, लेकिन कुछ विशेष क्षेत्र ऐसे हैं, जहां कठफोड़वा अधिक संख्या में देखे जाते हैं,  खासकर वहां घने जंगल, पुराने पेड़ और जैव विविधता होती है. हालांकि, घटते जंगलों के कारण इनकी आबादी लगातार घट रही है. वनों की कटाई और शिकार के कारण कई कठफोड़वा प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बना हुआ है. इस समय जापान के ओकिनावा कठफोड़वा पर सबसे ज्‍यादा संकट बना हुआ है.    

जंगल का इंजीनियर | Unique Woodpecker Features

कठफोड़वा की चोंच किसी नुकीली छेनी से भी तेज और महीन काम करती है. ये पक्षी अपनी चोंच से पलभर में पेड़ के तने में सैकड़ों छेद कर देता है. जब ये किसी तने में अपनी चोंच मार रही होती है, तो ऐसा लगता है कि कोई ऑटोमेटिक मशीन चल रही है. कठफोड़वा अकेला ऐसा पक्षी है, जो बड़े-बड़े पेड़ों के तनों में अपनी चोंच से छेद कर रहने के लिए घोंसला बनाता है. इनका घोंसला देख ऐसा लगता है कि ये किसी बेहतरीन इंजीनियर का काम है. इसी वजह से कठफोड़वा को जंगल का इंजीनियर भी कहा जाता है. 

खास तरह की होती है कठफोड़वा की खोपड़ी | woodpecker trivia

कठफोड़वा के बारे में एक हैरान करने वाली बात यह है कि इसकी खोपड़ी और मस्तिष्क की संरचना खास तरह की होती है. चूंकि कठफोड़वा अपना ज्‍यादातर समय लकड़ी पर जोर-जोर से टैप-टैप-टैप करते हुए बिताते हैं, इसलिए मस्तिष्क को चोट से बचाने के लिए उनके पास खास मैकेनिज्‍म होता है. कठफोड़वा दिन में सैकड़ों बार लकड़ी पर अपनी चोंच से टैप करता है, लेकिन उन्हें कोई झटका, सिरदर्द या दिमाग को कोई नुकसान नहीं होता है. यह बात इन्‍हें दूसरे पक्षियों से अलग बनाती है. इसीलिए कठफोड़वा को लेकर कई वैज्ञानिक यह जानने के लिए रिसर्च भी कर रहे हैं कि ये पक्षी दिनभर टैप-टैप कैसे कर पाते हैं. 

तीन इंच से 2 फीट तक होते हैं लंबे | Woodpecker Size

कठफोड़वा की दुनियाभर में लगभग 150 से ज्‍यादा अलग-अलग प्रजातियां हैं. यह सभी एक-दूसरे से अलग होती हैं और सबसे छोटी कठफोड़वा प्रजातियां, जैसे कि कुछ पिक्यूलेट्स, सिर्फ 3 इंच छोटी होती है. वहीं, सबसे बड़ी प्रजातियां लगभग दो फीट लंबी हो सकती हैं. शाही कठफोड़वा और हाथीदांत-चोंच वाले कठफोड़वा साइज में काफी बड़े होते थे. लेकिन जंगलों के कटने और शिकार के कारण कठफोड़वा की कई प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं.

कठफोड़वा, छिपकलिया, चूहे, छोटे कीड़ों को खाता है.

ऐसे बात करते हैं कठफोड़वा | Woodpecker Conservation

क्‍या आप जानते हैं कि कठफोड़वा कैसे बात करता है? कठफोड़वे पेड़ों के तनों पर थप-थप-थप करके अंदर मौजूद कीड़ों तक पहुंचते हैं. लेकिन क्या आप यकीन करेंगे कि उनकी यह थपथपाहट बातचीत एक जरिया भी है. कठफोड़वे पेड़ों पर थप-थप कर तेज आवाज निकालकर एक-दूसरे को संदेश भेजते हैं. इस तरह ही कठफोड़वे एक-दूसरे से बिना आवाज के बात करते हैं. वहीं, पेड़ के तनों में छेद कर ये उनके नीचे छिपे कीड़ों को का लुत्‍फ भी उठाते हैं. कठफोड़वा, छिपकलिया, चूहे, छोटे कीड़ों, पक्षियों के अंडे और पक्षियों के बच्चे भी खाते हैं. खाने के मामले में कठफोड़वा अवसरवादी होते हैं और शायद ही कभी किसी भोजन को ठुकराते हैं.

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