नफरत फैलाने वाले भाषणों से खराब हो रहा माहौल, बंद करने की जरूरत: हेट स्पीच पर सुप्रीम कोर्ट

बेंच ने टिप्पणी की, "आप सही कह रहे हैं कि इन नफरत भरे भाषणों से पूरा माहौल खराब हो रहा है और इसे रोकने की जरूरत है." याचिकाकर्ता हरप्रीत मनसुखानी ने व्यक्तिगत रूप से पेश होते हुए कहा कि 2024 के आम चुनावों से पहले भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए अभद्र भाषा दी गई थी.

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हेट स्पीच (Hate Speech) पर लगाम लगाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट (The Supreme Court) ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि नफरत फैलाने वाले भाषणों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही. सर्वोच्च अदालत के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित (Chief Justice U U Lalit) और जस्टिस एस रवींद्र भट की बेंच ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि सरकारी की तरफ से हेट स्पीच पर तुरंत रोक लगाने की जरूरत पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है.
वहीं, एक अलग केस में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उत्तराखंड और दिल्ली सरकारों से जवाब मांगा कि पिछले साल राज्य और राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित धर्म संसद में नफरत भरा भाषण देने वालों के खिलाफ पुलिस ने क्या कार्रवाई की है.

बेंच ने कहा कि हेट स्पीच के चलते माहौल खराब हो रहा है, लेकिन इसपर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. इसपर लगाम लगाने की जरूरत है. वहीं, हेट स्पीच को लेकर याचिकाकर्ता हरप्रीत मनसुखानी ने अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेश होते हुए कहा कि 2024 के आम चुनावों से पहले भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का बयान देने के लिए नफरती भाषा का प्रयोग किया गया.

बेंच ने टिप्पणी की, "आप सही कह रहे हैं कि इन नफरत भरे भाषणों से पूरा माहौल खराब हो रहा है और इसे रोकने की जरूरत है." याचिकाकर्ता हरप्रीत मनसुखानी ने व्यक्तिगत रूप से पेश होते हुए कहा कि 2024 के आम चुनावों से पहले भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए अभद्र भाषा दी गई थी. उन्होंने कहा, "अभद्र भाषा को एक लाभदायक व्यवसाय में बदल दिया गया है. एक पार्टी ने कश्मीर फाइलों को वित्त पोषित किया और फिर मेरे पास सबूत है कि इसे कैसे वित्त पोषित किया गया और फिर कर मुक्त कर दिया गया."

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याचिकाकर्ता ने कहा कि हेट स्पीच एक तीर की तरह जो एक बार कमान से छूटने के बाद वापस नहीं लिया जा सकता है. वहीं, CJI ललित ने कहा, “ऐसे मामलों में संज्ञान लेने के लिए अदालत को तथ्यात्मक पृष्ठभूमि की जरूरत है. हमें कुछ उदाहरण चाहिए. नहीं तो यह एक रैंडम याचिका जैसा है.” इसपर याचिकाकर्ता ने अपनी तरफ से कहा कि उनकी तरफ से नफरत भरे भाषणों के उदाहरणों का हवाला देने वाला एक हलफनामा दाखिल किया जाएगा, जिसमें आपराधिक मामले नहीं दर्ज किए गये थे.

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बेंच ने याचिकाकर्ता को कुछ घटनाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक अतिरिक्त हलफनामा प्रस्तुत करने और जांच के दौरान उठाए गए कदमों के बारे में विचाराधीन अपराध का विवरण देने के लिए समय दिया. याचिकाकर्ता यह भी विवरण दे सकता है कि क्या अपराध दर्ज किए गए थे और अपराधी कौन माने जाते हैं? अदालत ने कहा कि 31 अक्टूबर तक हलफनामा दायर किया जाए.

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CJI ने कहा, "एक अदालत को इस पर संज्ञान लेने के लिए हमें तथ्यात्मक पृष्ठभूमि की आवश्यकता है. हमें मामलों के कुछ नमूने चाहिए. अन्यथा यह एक यादृच्छिक याचिका है." याचिकाकर्ता ने तब कहा था कि वह नफरत भरे भाषणों के उदाहरणों का हवाला देते हुए एक हलफनामा दाखिल करेगा और क्या अपराध दर्ज नहीं किए गए थे. बेंच ने सहमति जताते हुए मामले की सुनवाई 1 नवंबर के लिए स्थगित कर दी.
 

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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