इस साल के आखिरी महीने में हम सब पहुंच चुके हैं और अब नए साल की शुरुआत में महज 9 दिन बाकी हैं. यह साल हर मायने में खास रहा और सियासी दृष्टिकोण से भी 2024 एक यादगार साल साबित हुआ. लोकसभा चुनाव से लेकर विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणामों ने हर किसी को चौंका दिया. जनता ने ऐसा जनादेश दिया, जिसका अनुमान भी बड़े-बड़े राजनीतिक विश्लेषक नहीं लगा पाए थे. आइए जानते हैं कि क्यों 2024 को सियासी पिच पर एक चौंकाने वाले साल के रूप में याद किया जाएगा?
लोकसभा और विधानसभा चुनावों के नतीजों ने किया हैरान
लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा की ओर से चार सौ पार का नारा दिया गया था. भाजपा के साथ-साथ राजनीतिक विश्लेषक को भी विश्वास था कि वह इस आंकड़े को पार कर लेगी. लेकिन, चुनावी नतीजे ने हर किसी को हैरान कर दिया. भाजपा अकेले बहुमत का आंकड़ा भी नहीं छू सकी और महज 240 सीटों पर सिमट गई. हालांकि, टीडीपी, जदयू और अन्य सहयोगी दलों की मदद से भाजपा ने तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाई. इस लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भी भाजपा को बहुत बड़ा झटका लगा. भाजपा जहां 2019 के लोकसभा चुनाव में 80 में से 62 सीटें जीती थी, वह इस बार महज 33 सीटें जीत सकी.
ओडिशा में नवीन पटनायक को हार का करना पड़ा सामना
लोकसभा चुनाव के अलावा इस साल कई राज्यों में विधानसभा के भी चुनाव हुए. इन राज्यों के चुनावी नतीजें ने भी चौंकाकर रख दिया. ओडिशा की अगर हम बात करें तो 24 साल से सत्ता पर काबिज नवीन पटनायक की पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. प्रदेश में भाजपा बड़ी पार्टी बनकर उभरी.
विश्लेषकों के दावें भी गलत हुए साबित
हरियाणा विधानसभा चुनाव की अगर हम बात करें तो हरियाणा के चुनावी नतीजों ने भी राजनीतिक विश्लेषकों के दावों को गलत साबित कर दिया. राजनीतिक विश्लेषकों की भविष्यवाणी थी कि भाजपा के लिए इस बार सत्ता विरोधी लहर है और जीत की राहें काफी मुश्किल है. इन राजनीतिक विश्लेषकों का दावा था कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस जीत दर्ज करेगी. लेकिन, नतीजों ने सभी को चौंका दिया और भाजपा ने एक बार फिर प्रदेश में सरकार बनाई.
महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन ने सबको चौंकाया
महाराष्ट्र में भी यही हाल हुआ. उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी को उम्मीद थी कि उन्हें जनता की सहानुभूति मिलेगी और वह सत्ता पर काबिज होंगे. लेकिन, उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा. भाजपा के नेतृत्व में एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी वाले महायुति गठबंधन ने प्रचंड जीत हासिल की. कांग्रेस की अगर हम बात करें तो पिछले चुनाव की तरह इस बार भी पार्टी ने खराब प्रदर्शन किया.
झारखंड में बीजेपी के हाथ लगी निराशा
इसी तरह, जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद भाजपा को बहुमत की उम्मीद थी. हालांकि, वह पूरी नहीं हो सकी. झारखंड में भी भाजपा सरकार बनाने का दावा कर रही थी लेकिन वहां भी भाजपा को निराशा हाथ लगी और हेमंत सोरेन ने फिर से सरकार बनाई.