मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (Madhya Pradesh High Court) ने लिव-इन रिलेशनशिप (Live in Relationship) में महिलाओं के अधिकारों को मान्यता देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए फैसला सुनाया है. कोर्ट नेे कहा है कि किसी पुरुष के साथ काफी समय तक रहने वाली महिला अलग होने पर भरण-पोषण की हकदार है, भले ही वे कानूनी रूप से विवाहित न हों.
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का यह फैसला एक याचिकाकर्ता की प्रतिक्रिया के रूप में आया, जिसने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे उस महिला को 1,500 रुपये का मासिक भत्ता देने की आवश्यकता थी, जिसके साथ वह लिव-इन रिलेशनशिप में था.
कोर्ट का ये फैसला एक प्रगतिशील कदम है. न्यायाधीशों ने इस बात पर जोर दिया कि यदि कपल के बीच सहवास (Intercourse) का सबूत है तो भरण-पोषण से इनकार नहीं किया जा सकता है. उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के निष्कर्ष का हवाला दिया, जिसने निष्कर्ष निकाला कि पुरुष और महिला पति और पत्नी के रूप में रह रहे थे. इसके अतिरिक्त, रिश्ते के भीतर बच्चे के जन्म को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने महिला के भरण-पोषण के अधिकार की पुष्टि की.
यह ऐतिहासिक निर्णय भारत में लिव-इन रिलेशनशिप के संबंध में विकसित हो रहे कानूनी परिदृश्य को रेखांकित करता है. यह पारंपरिक मानदंडों से हटकर और ऐसी साझेदारियों में महिलाओं के अधिकारों और कमजोरियों की मान्यता का प्रतीक है.
फरवरी में, उत्तराखंड ने सभी नागरिकों के लिए समान विवाह, तलाक, भूमि, संपत्ति और विरासत कानूनों के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करने के लिए एक समान नागरिक संहिता लाई. विधेयक की एक धारा में लिव-इन रिलेशनशिप का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया. इसमें यह भी कहा गया है कि यदि जोड़े 21 वर्ष से कम आयु के वयस्क हैं तो उनके माता-पिता को सूचित किया जाएगा.