जिम कॉर्बेट में टाइगर सफारी घोटाले को लेकर लगेगा जुर्माना? SC की समिति ने की है सिफारिश

आपको बता दें कि समिति ने सिफारिश की है कि ₹29.8 करोड़ की क्षतिपूर्ति राशि कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व के फील्ड डायरेक्टर संचालित एक विशिष्ट बैंक खाते में जमा की जाएं.

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टाइगर रिजर्व में घोटाले को लेकर एससी की समिति की सिफारिश
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट की समिति ने उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में टाइगर सफारी घोटाले के आरोपों की जांच के मामले में ₹29.8 करोड़ जुर्माने की सिफारिश की है. समिति ने टाइगर सफारी को वन क्षेत्र से बाहर तक ही सीमित करने का निर्देश दिए जाने की सिफारिश की है.दरअसल, याचिकाकर्ता वकील गौरव कुमार बंसल ने कॉर्बेट टाइगर सफारी घोटाले के कई तथ्य कोर्ट को बताए.उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन आरोपों की जांच के लिए उच्च स्तरीय समिति बनाई थी.

समिति में केंद्रीय सशक्त समिति, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) व अन्य विशेषज्ञ संस्थानों के सदस्य भी शामिल थे.समिति को कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व (CTR) में अवैध निर्माण और गैरकानूनी टाइगर सफारी परियोजना से हुए पर्यावरणीय नुकसान का मूल्यांकन करने का कार्य सौंपा गया था.समिति ने विस्तृत मूल्यांकन के बाद कुल ₹29.8 करोड़ के पर्यावरणीय नुकसान की बात कही है.

इसमें 22.95  करोड़ रुपए का पारिस्थितिकीय नुकसान और ₹6.8 करोड़ मूल्य की अवैध रूप से काटी गई लकड़ी भी शामिल हैं.परियोजना से स्थानीय पर्यावरण को उसकी मूल स्थिति में बहाल करने के लिए समिति ने ₹4.30 करोड़ की पारिस्थितिकीय पुनर्स्थापना योजनाएं प्रस्तावित की हैं.कहा जा रहा है कि इससे अवैध निर्माण से हुए नुकसान की भरपाई की जा सकेगी. इससे क्षेत्रीय पारिस्थितिक संतुलन को भी बहाल किया जा सकेगा.  

आपको बता दें कि समिति ने सिफारिश की है कि ₹29.8 करोड़ की क्षतिपूर्ति राशि कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व के फील्ड डायरेक्टर संचालित एक विशिष्ट बैंक खाते में जमा की जाएं. इस राशि का उपयोग केवल प्रभावित क्षेत्रों के पुनर्स्थापन और संरक्षण के लिए ही किया जाए.विशेष रूप से विवादित टाइगर सफारी परियोजना के संदर्भ में समिति ने यह भी सिफारिश की है कि ऐसी कोई भी सफारी वन भूमि या टाइगर के प्राकृतिक आवागमन मार्गों पर स्थापित नहीं की जानी चाहिए. यदि सफारी को अनुमति दी भी जाती है तो उसे केवल गैर-वन भूमि या बफर ज़ोन की परती वन भूमि पर स्थापित किया जाना चाहिए. यह भी ध्यान रखा जाए कि वह सफारी  क्षेत्र किसी निर्धारित टाइगर कॉरिडोर का हिस्सा न हों. अपनी रिपोर्ट में समिति ने यह भी स्पष्ट किया है कि केवल उसी भौगोलिक क्षेत्र अथवा टाइगर रिज़र्व से बचाए गए या मानव- वन्यजीव संघर्ष में फंसे या प्रभावित बाघों को ही ऐसी सफारी में रखा जा सकता है.इस प्रकार, वन्यजीवों के स्थानांतरण या व्यावसायीकरण पर प्रतिबंध की सिफारिश की गई है. 

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