क्या BJP को उसके ही हथियार से हरा पाएंगे अखिलेश, किस रणनीति पर काम कर रही है सपा

सपा प्रमुख अखिलेश यादव इन दिनों उत्तर प्रदेश में बीजेपी को उसी दांव से पटकनी देने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे उसने उन्हें 2017 में हराया था. अखिलेश ने यूपी सरकार पर ठाकुरवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है. यह कुछ वैसा ही है जैसा बीजेपी ने 2017 में सपा पर यादववाद करने का आरोप लगाया था.

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नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दल अपने समीकरण बनाने में लगे हुए हैं. इस वजह से उत्तर प्रदेश की राजनीति आजकल फ्लैशबैक में चली गई है. साल 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने प्रदेश में सरकार चला रही समाजवादी पार्टी पर यादववाद का आरोप लगाया था. पीएम नरेंद्र मोदी समेत बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने आरोप लगाया था कि सपा सरकार ने 56 यादव एसडीएम की नियुक्ति की है. इन आरोपों का असर पड़ा और सपा को अपनी सरकार गंवानी पड़ी थी. अब विधानसभा चुनाव से दो साल पहले से सपा प्रमुख अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार पर ठाकुरपरस्ती का आरोप लगा रहे हैं. इस तरह से अखिलेश यादव 2027 के विधानसभा चुनाव का टोन सेट करने की कोशिश कर रहे हैं.

राजपूत बनाम दलित

राणा सांगा पर संसद में दिए बयान के विरोध में करणी सेना ने सपा के राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन के खिलाफ 12 अप्रैल को आगरा में बड़ा प्रदर्शन किया. इसमें शामिल लोग हाथों में तलवार और बंदूकें लिए हुए थे.सपा ने इसे दलित अस्मिता पर हमले का मामला बताया. सपा ने इस मामले को राजपूत बनाम दलित कर दिया.अखिलेश यादव ने करणी सेना को बीजेपी की सेना बताकर बीजेपी को दलित विरोधी साबित करने की कोशिश की.

आगरा में अपने राज्य सभा सांसद रामजीलाल सुमन को गले लगाते अखिलेश यादव.

सपा प्रमुख अखिलेश यादव 19 अप्रैल को आगरा पहुंचे. वहां उन्होंने सुमन से मुलाकात की. इसके बाद वो प्रयागराज गए. वहां उन्होंने आगरा, चित्रकूट, मैनपुरी, प्रयागराज और महोबा पुलिस में थानेदारों की नियुक्ति में राजपूतों को वरीयता देने और पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यकों) की अनदेखी का आरोप लगाया. यह पहली बार नहीं था कि अखिलेश यादव इस तरह के आरोप लगा रहे हों. बीते साल सितंबर में सुल्तानपुर में हुए एक लूटकांड के आरोपी मंगेश यादव का एनकाउंटर करने वाली यूपी पुलिस की एसटीएफ को उन्होंने'स्पेशल ठाकुर फोर्स' बताया था. यूपी पुलिस ने अखिलेश यादव के दावों का खंडन किया है. 

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इस तरह से सपा प्रमुख ने उत्तर प्रदेश पुलिस की तैनाती में राजपूतों के वर्चस्व को राजनीतिक मुद्दा बना दिया है. इससे वो प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को दलित और ओबीसी विरोधी साबित करने की कोशिश कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश की सत्ता में बीजेपी की वापसी में इन्हीं वर्गों का हाथ माना जाता है.बीजेपी पिछले दो चुनावों से यूपी में शानदार जीत दर्ज कर रही है. लेकिन अखिलेश यादव 2027 में उसे तीसरी बार जीतने से रोकने की रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं.इसी रणनीति के तहत वो दलित सांसदों को आगे कर बसपा का वोट बैंक हथियाने में जुटे हुए हैं. उन्होंने पहले लोकसभा सामान्य सीट फैजाबाद से जीते दलित समुदाय के अवधेश प्रसाद को अपने साथ प्रमुखता से रखा तो अब वो अपने राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन के साथ मजबूती से खड़े दिखाई दे रहे हैं. समुन राणा सांगा पर दिए विवादित बयान के बाद से करणी सेना के निशाने पर हैं. इस तरह से अखिलेश यादव ने जाटव और गैर जाटव दोनों वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रहे हैं.

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कथित ब्राह्मण उत्पीड़ने के खिलाफ लखनऊ के जीपीओ में प्रदर्शन करते सपा कार्यकर्ता.

क्या सपा का साथ देंगे ब्राह्मण

सपा उत्तर प्रदेश में पीडीए का मजबूत करने के साथ-साथ ब्राह्मणों को भी अपने साथ करना चाहती है.यही वजह है कि अखिलेश यादव ब्राह्मणों से जुड़े मामले भी उठाते रहते हैं. कानपुर में पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में विकास दुबे की मौत के बाद सपा ने इस मामले को जोर-शोर से उठाया था. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भगवान परशुराम की सबसे बड़ी मूर्ति लगवाने की घोषणा की थी. उन्होंने अपने सरकार में परशुराम जयंती पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया था. पंडित हरिशंकर तिवारी पूर्वांचल की राजनीति का एक बड़ा चेहरा थे. उनके बेटे विनय शंकर तिवारी को प्रवर्तन निदेशालय ने सात अप्रैल को एक कथित धोखाधड़ी मामले में गिरफ्तार कर लिया था. इस मामले में अखिलेश यादव तिवारी परिवार के साथ खड़े आए. उन्होंने ईडी की कार्रवाई को उत्पीड़न की कार्रवाई बताया था. 

वरिष्ठ पत्रकार समीरात्मज मिश्र उत्तर प्रदेश की राजनीति पर बारीक नरज रखते हैं. वो कहते हैं कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव आज प्रदेश सरकार पर जातिवाद का जो आरोप लगा रहे हैं, वही आरोप बीजेपी के कई छोटे-बड़े नेता भी दबी जुबान में लगाते हुए मिल जाएंगे. अंतर केवल इतना है कि वो इन आरोपों को सार्वजनिक रूप से नहीं लगा पाते हैं. वो कहते हैं कि जातिवाद को लेकर यह सरकार शुरू से घिरी हुई है. वो कहते हैं कि बात यह नहीं है कि आप अपनी जाति को बढ़ावा दे रहे हैं, किसी दूसरी जाति को लेकर आपकी क्या धारणा है यह भी साफ-साफ दिखाई दे रहा है. सोमवार रात हुए आईएएस-आईपीएस अधिकारियों के तबादले में से कुछ अधिकारियों के तबादले को भी अखिलेश यादव के आरोपों से जोड़कर देखा जा रहा है. 

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सपा प्रमुख अखिलेश यादव इन दिनों दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को एकजुट करने में जुटे हुए हैं.

अखिलेश यादव की कोशिशों का चुनावी असर

अखिलेश यादव की इस राजनीति के चुनावी असर के सवाल पर समीरात्मज मिश्र कहते हैं  कि उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन का मुख्य हिस्सा समाजवादी पार्टी है. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी कई बार यह बात कह चुके हैं कि अगला विधानसभा चुनाव दोनों दल मिलकर लड़ेंगे. अब अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में पीडीए का मुद्दा उठा रहे हैं, वहीं जातीय जनगणना का समर्थन कर कांग्रेस केंद्र के स्तर पर उसी मुद्दे को उठा रही है.  वो कहते हैं कि अखिलेश यादव ब्राह्मणों को लेकर पहली बार एक्टिव नहीं हुए हैं, वो पहले भी ब्राह्मणों से जुड़े मुद्दे उठाते रहे हैं. ब्राह्मण उनको वोट दें या न दें, लेकिन विपक्ष के नेता के रूप में उनके मुद्दे उठाकर अखिलेश यादव ने एक मैसेज तो समाज को दिया ही है. वो कहते हैं कि इस सक्रियता का फायदा समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन को आने वाले चुनाव में मिल सकता है. 

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