"युवाओं के लिए WIFE का अर्थ हो गया है - चिंता, हमेशा के लिए आमंत्रित..." : कोर्ट ने तलाक की अर्ज़ी की खारिज

हाईकोर्ट ने 24 अगस्त के आदेश में कहा, "अशांत और तबाह हुए परिवारों की चीख-पुकार पूरे समाज की अंतरात्मा को झकझोर देने वाली है."

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फैमिली कोर्ट द्वारा याचिका खारिज करने के बाद पति ने उच्च न्यायालय का रुख किया था.
कोच्चि:

केरल उच्च न्यायालय ने "उपयोग और फेंक की उपभोक्ता संस्कृति" की निंदा करते हुए, तलाक की एक याचिका को खारिज कर दिया. इस दौरान कुछ व्यापक टिप्पणियां भी की. जिसमें कहा कि नई पीढ़ी विवाह को "बुराई" के रूप में देखती है और " आनंद से जीवन जीने के लिए " इससे बचना चाहते हैं. लिव-इन रिलेशनशिप बढ़ रहे हैं, यह "समाज की अंतरात्मा" के लिए चिंता का विषय है. न्यायमूर्ति ए मोहम्मद मुस्ताक और सोफी थॉमस की खंडपीठ ने कथित "वैवाहिक क्रूरता" पर तलाक के लिए एक व्यक्ति की अपील को खारिज करते हुए पिछले हफ्ते यह टिप्पणी की.

कोर्ट ने कहा "आजकल, युवा पीढ़ी सोचती है कि विवाह एक बुराई है, देनदारियों या दायित्वों के मुक्त जीवन का आनंद उठाने के लिए इससे बचा जा सकता है". वे 'वाइफ' शब्द का विस्तार 'एवर इनवाइटेड फॉर एवर' के रूप में करेंगे, जो 'वाइज इन्वेस्टमेंट फॉर एवर' की पुरानी अवधारणा को प्रतिस्थापित करेगा." बता दें कि फैमिली कोर्ट द्वारा याचिका खारिज करने के बाद पति ने उच्च न्यायालय का रुख किया था.

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हाईकोर्ट ने 24 अगस्त के आदेश में कहा, "अशांत और तबाह हुए परिवारों की चीख-पुकार पूरे समाज की अंतरात्मा को झकझोर देने वाली है." न्यायमूर्ति सोफी थॉमस द्वारा लिखित आदेश में कहा गया है, "जब युद्धरत जोड़े, परित्यक्त बच्चे और हताश तलाकशुदा हमारी आबादी के अधिकांश हिस्से पर कब्जा कर लेते हैं, तो निस्संदेह यह हमारे सामाजिक जीवन की शांति पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा, और हमारे समाज का विकास रुक जाएगा".

कोर्ट ने कहा "केरल को भगवान के देश के रूप में जाना जाता है. ये पारिवारिक बंधन के लिए प्रसिद्ध था. लेकिन वर्तमान चलन, स्वार्थी कारणों से, या एक्सट्रामैरिटल रिलेशनशिप से, यहां तक कि अपने बच्चों की परवाह किए बिना, विवाह बंधन को तोड़ता हुआ प्रतीत होता है.

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