नीतीश कुमार क्यों भाजपा की एक हार पर राहत की सांस ले रहे हैं...

हर चुनाव को गंभीरता से लेने वाले भाजपा का फ़िलहाल सारा ध्यान अपने से नाराज़ वोटर को मनाना होगा ना कि नीतीश जैसे सहयोगी को और परेशान करना.

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Bihar Bochahan Assembly Bypoll में राजद उम्मीदवार की जीत.
पटना:

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) बोचहां विधानसभा के उपचुनाव (Bihar Bochahan Assembly Bypoll) में अपने सहयोगी और अब विधानसभा में विधायकों को संख्या के आधार पर बड़े भाई भाजपा के हार से खुश हैं. नीतीश कुमार को भाजपा की इस हार का अंदाज़ा समय समय पर फ़ीड्बैक के आधार पर हो गया था, लेकिन परिणाम आने के बाद वो राजनीतिक रूप से राहत की सांस ले रहे हैं. नीतीश भाजपा की इस दुर्गति से प्रसन्न होने के कई कारण हैं. एक उनके समर्थकों के अनुसार, अब कुछ समय के लिए बिहार भाजपा के नेताओं के उनके प्रति आक्रामक रवैये पर विराम लगेगा. दूसरा हर दिन उनके सिपाहसालारों की मानें तो सोशल मीडिया के विभिन्न चैनल पर उनके मुख्य मंत्री की कुर्सी जाने और भाजपा के नए मुख्यमंत्री बनने की अटकलों का बाज़ार भी ठंडा हो जाएगा.

हालांकि भाजपा कब तक शांत रहेगी इसके बारे में कोई कुछ नहीं जानता. जनता दल यूनाइटेड के नेताओं के अनुसार बोचहां के परिणाम से साफ़ हैं कि भाजपा के अगड़ी जाति के वोटर को एकजुट नहीं रख पायी और साथ ही उसने सहयोगी वीआईपी का जो हश्र किया उसका उल्टा ख़ामियाज़ा मल्लाह जाति के वोटर की नाराज़गी उन्हें प्रचार और मतदान के दौरान खुल कर उठाना पड़ा. इसलिए इस पृष्ठभूमि में फ़िलहाल जनता दल यूनाइटेड जैसे सहयोगी के साथ अब और छेड़छाड़ करने की कोशिश से बचेगी.

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वीआईपी उम्मीदवार गीता देवी को चुनाव में 29 हज़ार से अधिक वोट मिले. इसमें अधिकांश मल्लाह जाति के वोट हैं. और हर चुनाव को गंभीरता से लेने वाले भाजपा का फ़िलहाल सारा ध्यान अपने से नाराज़ वोटर को मनाना होगा ना कि नीतीश जैसे सहयोगी को और परेशान करना. हालांकि नीतीश के आलोचकों का कहना हैं कि जब से यूपी का परिणाम आया है. तब से वो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी- जिनकी कृपा से वो मुख्य मंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं, उनके सामने राजनीतिक रूप से सरेंडर कर चुके हैं. इसका प्रमाण है कि उनका लखनऊ में अभिवादन करने का तरीक़ा. इसके कारण उनकी काफ़ी जगहंसाई भी हुई. इसके अलावा मीडिया के सामने बेबाक़ बात करने वाले नीतीश अगर आज पूर्वनियोजित संवादाता सम्मेलन करने की औपचारिकता हर सोमवार को करते हैं, तब उनका ये हश्र भी भाजपा ने किया है.

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नीतीश अगर आज राज्य में नंबर तीन की पार्टी बने और लोग उन्हें कितना भी सांत्वना ये कह कर दें कि ऐसा चिराग़ पासवान के कारण हुआ लेकिन उन्हें मालूम है कि चिराग़ के पीछे असल में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व था. लेकिन नीतीश भाजपा से इतना डरते हैं कि वो खुलकर ऐसी बात करने के बजाय मीडिया से भागते हैं.  भाजपा के साथ उनके रिश्ते में खटास आई है, इसका उदाहरण विधानसभा के बजट सत्र के दौरान भी दिखा लेकिन हर बार नीतीश ने झुक कर अपनी कुर्सी बचाने को अपने राजनीतिक आत्मसम्मान के सामने अधिक महत्व दिया. ऐसे में फ़िलहाल भाजपा उन्हें अगले लोक सभा तक बने रहने दे तो अब बहुत अधिक किसी को आश्चर्य नहीं होगा.

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भाजपा नेताओं के अनुसार, नीतीश की असल ख़ुशी का कारण होगा-इस उपचुनाव के माध्यम से केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव को झटका लगना, क्योंकि उनको मालूम हैं कि वो सबसे अधिक उन्हें कुर्सी से हटा कर अपने प्रिय नित्यानंद राय को बैठाना चाहते हैं. यही कारण है कि जब मुकेश साहनी को बर्खास्त करने का नीतीश को संजय जायसवाल का पत्र मिला तो उन्होंने राजनीतिक नुक़सान जानते हुए सारी बातें सार्वजनिक कर दीं जो भाजपा के अनुसार उसने कभी उम्मीद नहीं की थी.

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