आखिर क्यों जल रहा है मणिपुर? पढ़ें, हिंसा में 50 से ज्यादा लोगों की मौत की क्या है वजह

मैतेई समुदाय के लोग राज्य के घाटी और मैदानी इलाकों में बसा हुआ है. इस समुदाय के लोग राज्य के 10 फीसदी भूभाग पर बसे हैं. 

नई दिल्ली:

भारत का पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर इन दिनों जल रहा है. यहां बीते कई दिनों से हो रही हिंसा में अभी तक 50 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. राज्य में स्थिति को बिगड़ता देख केंद्र ने अतिरिक्त सुरक्षा बलों को मणिपुर के लिए भेजा है. सेना और पैरामिलिट्री के 10 हजार से ज्यादा जवानों की तैनाती के बाद यहां हिंसक घटनाओं में थोड़ी कमी जरूर आई है. लेकिन इन सब के बीच सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसी कौन सी वजह है जिसके कारण यहां के लोग लगातार विरोध कर रहे हैं और हिंसा तक करने पर उतारू हैं. हिंसा की वजह से मणिपुर में हालात इतने खराब है कि ऐहतियातन सरकार ने पूरे मणिपुर में इंटरनेट बंद करने का फैसला लिया है, साथ ही हिंसा करने वालों को देखते ही गोली मारने का भी आदेश दिया जा चुका है.  हम आज आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर किस वजह से मणिपुर में बिगड़े हैं हालात और क्या है इस विवाद की मुख्य वजह...

क्या है मणिपुर में हिंसा की वजह 

मणिपुर में हिंसा के पीछे दो वजहें बताई जा रही हैं. पहली वजह है यहां के मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देना. मणिपुर में मैतेई समुदाय बहुसंख्यक वर्ग में आता है, लेकिन इन्हें अनुसचित जनजाति का दर्जा दे दिया गया है. जिसका कुकी और नागा समुदाय के लोग विरोध कर रहे हैं.कुकी और नागा समुदायों के पास आजादी के बाद से ही आदिवासी का दर्जा है. अब मैतेई समुदाय भी इस दर्जे की मांग कर रहा है जिसका विरोध कुकी और नागा समुदाय के लोग कर रहे हैं. कुकी और नागा समुदाय का कहना है कि मैतेई समुदाय तो बहुसंख्यक समुदाय है उसे ये दर्जा कैसे दिया जा सकता है. 

हिंसा की दूसरी वजह है, सरकारी भूमि सर्वेक्षण. राज्य की बीजेपी सरकार आरक्षित वन क्षेत्र खाली करवा रही है. आदिवासी ग्रामीणों से आरक्षित वन क्षेत्र खाली करवाया जा रहा है. और कुकी समुदाय सरकार के इस सर्वेक्षण और अभियान का विरोध कर रहा है. 

कैसे शुरू हुई हिंसा ? 

कुकी समुदाय के लोगों ने तीन मई को मैतेई समुदाय को मिलने वाले दर्जे और सरकार के फैसले के विरोध में प्रदर्शन किया गया. इसी प्रदर्शन में हिंसा शुरू हो गया. चार मई को जगह-जगह पर गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया. चार तारीख को ही मैतेई और कुकी समुदाय के बीच ये झगड़ा शुरू हो गया. पांच मई को जब हालात खराब हुए तो वहां पर सेना पहुंची. इसके बाद 10 हजार से ज्यादा लोगों को दूसरी जगह शिफ्ट किया गया. पांच मई की ही रात भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी मिथांग की भीड़ ने हत्या कर दी.  इनकी हत्या घर से निकालकर की गई.  

क्या कहते हैं जानकार

सुहास चकमा, डायरेक्टर, RRAG, ने इस हिंसा को लेकर NDTV से खास बातचीत की. उन्होंने इस दौरान कहा कि इस समय सबसे बड़ी दिक्कत है लोगों को बचाना. बहुत सी जगहें ऐसी हैं जहां लोग फंसे हुए हैं और सुरक्षा बल उन तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. राज्य में कानून व्यवस्था बेहद खराब है. सबसे ज्यादा दुख की बात है कि राज्य और केंद्र सरकार कोई भी बात ऐसी बात नहीं कर रहे हैं जिससे हिंसा को कम किया जाए. किसी समुदाय को कोई स्टेटस देने का भी एक तरीका है. उसे लागू किए बगैर किसी को भी स्टेटस देना गैरकानूनी होगा. सरकार को अभी चाहिए कि वो लोगों को समझाए कि अभी इस विषय पर कोई निर्णय नहीं हुआ है. बैगर निर्णय हुए ही ऐसी हिंसा कहीं से भी सही नहीं है. लेकिन कोई भी सरकार ये समझाने को तैयार नहीं है. सिर्फ सुरक्षा बल को भेजने भर से समाधान नहीं होगा. भले ही कुछ दिन के लिए हिंसा रुक जाए लेकिन लोगों को समझाना जरूरी है. मैंने पहले मैतेई और कुकी समुदाय के बीच ऐसी कोई हिंसा हुई हो. ये दुख की बात है कि सरकार इसे लेकर कुछ खास नहीं कर पा रही है. 

कौन है मैतेई समुदाय ? 

मैतेई समुदाय मणिपुर का सबसे आबादी वाला समुदाय है. इसे संविधान में अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया गया है. ये मांग कर रहे हैं कि इन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाए. मैतेई समुदाय के लोग राज्य के घाटी और मैदानी इलाकों में बसा हुआ है. इस समुदाय के लोग राज्य के 10 फीसदी भूभाग पर बसे हैं. 

नागा, जोमी, कुकी और अन्य जनजातियां कौन हैं?

मणिपुर में नागा, जोमी, कुकी और अन्य जनजातियां, राज्य की कुल आबादी का आधा हिस्सा हैं. ये सभी जनजातियां इस बात का विरोध कर रही हैं कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए. 

मैतेई संगठन STDCM की ये है दलील

मैतेई संगठन STDCM की ये दलील है कि अनुसूचित जनजाति दर्जे की मांग करना उनका संवैधानिक अधिकार है. स्थानीय समुदाय, हितों की संवैधानिक सुरक्षा चाहिए. हमारी बाकि जनजातियों के संसाधनों पर कब्जे की कोई मंशा नहीं है. हम मणिपुर के सबसे पुराने स्थानीय समुदाय हैं. हम अपने ही राज्य में बाहरी लोगों की तरह हो गए हैं. घाटी में रहने के लिए कोई भी आ सकता है. 1951 में इनकी आबादी थी 59 फीसदी जो 2011 में कुल आबादी का 44 फीसदी हो गई है. इनका कहना है कि 1901 में हमें मुख्य आदिवासी समुदाय माना गया था. जबकि 1931 में हमें हिंदू आदिवासी समुदाय माना गया. हमारी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान है, भाषा है और हम इन्हें बचाने पर जोर दे रहे हैं. 1950 में हमें अनुसूचित जनजाति की लिस्ट से बाहर कर दिया गया. 

विरोध करने वाले संगठन ATSUM की दलील

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग गलत है. पर्वतीय जिलों के संसाधनों को छीनने की साजिश की जा रही है. हमारे अधिकार संविधान के अनुच्छेद 371सी के तहत सुरक्षित हैं. हमारे अधिकारी एमएलआर एंड एलआर एक्ट , 1960 के सेक्शन 158 के तहत भी सुरक्षित हैं. हमारा मानना है कि आदिवासियों की जमीन को गैर आदिवासियों को नहीं दी जा सकती है. मैदानों में रहने वाला मैतेई समुदाय पहले से ही काफी आगे है. मैतेई समुदाय राज्य के कुल आबादी के 60 फीसदी से ज्यादा है. ऐसे में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा मिला गलत होगा.