आरक्षण पर हाई कोर्ट के फैसले पर चुप क्यों हैं नीतीश कुमार, क्या पीएम मोदी मानेंगे उनकी पुरानी मांग

पटना हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और जस्टिस हरीश कुमार के खंडपीठ ने इस साल 11 मार्च को इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.अदालत ने अपना फैसला गुरुवार को सुनाया.इस याचिका में राज्य सरकार की ओर से 21नवंबर,2023 को पारित कानून को चुनौती दी गई थी.

विज्ञापन
Read Time: 6 mins
नई दिल्ली:

पटना हाईकोर्ट ने बिहार की नीतीश कुमार सरकार को गुरुवार को बड़ा झटका दिया.हाई कोर्ट ने बिहार में जातिय सर्वेक्षण के बाद आरक्षण को 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी करने के फैसले संवैधानिक वैधता को खारिज कर दिया.अदालत ने सरकार के कानून को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं को स्वीकार कर लिया है. हाई कोर्ट के इस फैसले से बिहार की राजनीति गरमा गई है. विपक्षी दलों ने सरकार से मांग की है कि वो हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे.लेकिन सरकार की ओर से अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.

क्या कहा है पटना हाई कोर्ट ने

पटना हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और जस्टिस हरीश कुमार के खंडपीठ ने इस साल 11 मार्च को इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.अदालत ने अपना फैसला गुरुवार को सुनाया.इस याचिका में राज्य सरकार की ओर से 21नवंबर,2023 को पारित कानून को चुनौती दी गई थी. इसमें अनुसूचित जाति (एससी), एसटी (अनुसूचित जनजाति), ईबीसी (अति पिछड़ा वर्ग)और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 65 फीसदी आरक्षण दिया गया था.

नीतीश कुमार सरकार ने कब दिया था आरक्षण?

बिहार की नीतीश सरकार ने यह फैसला उस समय लिया था, जब सरकार में आरजेडी भी साझीदार थी. इस समय नीतीश बीजेपी के सहयोग से अपनी सरकार चला रहे हैं.हाई कोर्ट के इस फैसले ने बिहार की राजनीति को गर्मा दिया है.हाल में हुए लोकसभा चुनाव में प्रदेश में बड़ा उलटफेर हुआ है.बिहार में सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन को 2019 की तुलना में नौ सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है. आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों के महागठबंधन ने 9 सीटों पर जीत दर्ज की है.

Advertisement

इसका असर केंद्र की राजनीति पर भी पड़ा है.पहले के दो कार्यकाल में अपने दम पर बहुमत की सरकार चलाने वाली बीजेपी को इस बार गठबंधन का सहारा लेना पड़ा है.केंद्र की मोदी सरकार बहुत हद तक नीतीश कुमार पर निर्भर है.लेकिन हाई कोर्ट का फैसला आने के बाद नीतीश कुमार चुप हैं. उनका अब तक कोई बयान सामने नहीं आया है. हालांकि जेडीयू के वरिष्ठ नेता और बिहार के जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा है कि फैसले के खिलाफ सभी तरह के कानूनी विकल्प पर हम विचार कर रहे हैं, सुप्रीम कोर्ट तो जाएंगे ही.वहीं राज्य के उपमुख्यमंत्री और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने भी कहा है कि सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगी.

Advertisement

नीतीश कुमार से विपक्ष के सवाल

नीतीश की चुप्पी पर आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने सवाल उठाए हैं.आरजेडी ने इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी पर आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाया था.तेजस्वी यादव ने हाई कोर्ट के फैसले पर कहा,''मैं फैसले से स्तब्ध हूं. बीजेपी जाति सर्वेक्षण को विफल करने की कोशिश कर रही थी, जो बढ़े हुए कोटा का आधार प्रदान करता था. इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि केंद्र में बीजेपी की सत्ता में वापसी के कुछ ही दिन के भीतर ऐसा फैसला आया है.''उन्होंने सवाल उठाते हुए पूछा,''मुझे समझ नहीं आता कि सीएम इस पर चुप क्यों हैं.'' आरजेडी नेता ने कहा है कि अगर बिहार सरकार इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं करेगी तो आरजेडी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी. उन्होंने मांग की है कि नीतीश कुमार इस संबंध में एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के साथ पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात करें.

Advertisement

वीआईपी के प्रमुख मुकेश साहनी ने भी कहा है कि बिहार सरकार को इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करनी चाहिए. उन्होंने भी मांग की कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल लेकर प्रधानमंत्री से मिलें. 

Advertisement

बिहार में किसकी कितनी आबादी

बिहार सरकार ने जातिय सर्वेक्षण के आंकड़े पिछले साल गांधी जयंती के दिन जारी किए थे. इसके मुताबिक बिहार की करीब 13 करोड़ की आबादी में 27.12 फीसदी अति पिछड़ा वर्ग (ओसीबी), 36.01 फीसदी अत्यन्त पिछड़ा वर्ग, 19.65 फीसदी अनुसूचित जाति, 1.68 फीसदी अनुसूचित जनजाति  और 15.52 फीसदी आबादी अनारक्षित यानी सवर्ण जातियों की है. 

जातिय सर्वेक्षण के आंकड़े सार्वजनिक होने के बाद जेडीयू और आरजेडी की महागठबंधन सरकार ने सात नवंबर 2023 को आरक्षण का दायरा 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया था. इसमें आर्थिक रूप से पिछड़ों का 10 फीसदी आरक्षण मिलने के बाद से बिहार में आरक्षण 75 फीसदी हो गया था.  

नीतीश कुमार की राजनीति क्या है?

बिहार में शराब बंदी के बाद नीतीश कुमार एक ऐसे मुद्दे की तलाश में थे, जिसका उन्हें व्यापक फायदा मिल सके. जातिय जनगणना में नीतीश को यह क्षमता नजर आई.इसके लिए उन्होंने बीजेपी को अपने साथ लिया. बिहार विधानसभा ने 2020 में एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पास किया. इसके बाद देश भर में जातिय जनगणना की मांग को लेकर नीतीश ने एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के साथ पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी. हालांकि केंद्र में सरकार चला रही बीजेपी ने इसका समर्थन नहीं किया. लेकिन उसकी राज्य ईकाई इसके समर्थन में थी. 

केंद्र की ओर से जातिय जनगणना की मांग नकारे जाने के बाद बिहार सरकार ने 2022 में जातिय सर्वेक्षण कराने का फैसला किया.उस समय बिहार में महागठबंधन की सरकार थी.सुप्रीम कोर्ट से इजाजत मिलने के बाद बिहार ने जातिय सर्वेक्षण कराया और आरक्षण का दायरा बढ़ाया. इसके बाद नीतीश ने इस आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट की नौवे शेड्यूल में डालने की मांग की. इस शेड्यूल में राज्य और केंद्र सरकार के कानून रखे दाते हैं.इसमें रखे कानूनों को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है. नीतीश जब यह मांग कर रहे थे, तब वो विपक्षी इंडिया गठबंधन में थे. केंद्र सरकार ने उनकी मांग नहीं मानी थी.

अब जब हाई कोर्ट ने इस आरक्षण को खारिज कर दिया है तो बिहार सरकार इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकती है.वहीं नीतीश कुमार फिर एक बार इस आरक्षण को संविधान के नौवें अनुसूची में रखने की मांग कर सकते हैं. अब जब वो यह मांग करेंगे तो उसकी बात अलग होगी.इस समय केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार नीतीश कुमार के समर्थन से चल रही है.वैसे में यह देखना दिलचस्प होगा की केंद्र सरकार नीतीश कुमार की मांग को कितना महत्व देती है.

ये भी पढ़ें: "गलती की है तो मेरे PS को कर लो गिरफ्तार..." : NEET पेपर लीक मामले में तेजस्वी ने तोड़ी चुप्पी
 

Featured Video Of The Day
Pushpa फेम Allu Arjun ने 2 करोड़ किसको दिए? पिता ने अस्पताल जाकर दिए चेक | Metro Nation @10
Topics mentioned in this article