बिहार में चुनाव आयोग 22 साल बाद क्यों करवा रहा है वोटर लिस्ट का गहन पुनरीक्षण, विपक्ष क्यों जता रहा है आपत्तियां

बिहार में मतदाता सूचियों का गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम शुरू हो गया है. यह 26 जुलाई तक चलेगा. बिहार में यह काम 22 साल बाद कराया जा रहा है. इसके समय को लेकर लोग आपत्ति जता रहे हैं. आइए जानत हैं कि इस पर क्या है सत्ता पक्ष और विपक्ष की राय.

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  • बिहार में मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम 25 जून को शुरू हुआ है. यह 26 जुलाई तक चलेगा.
  • अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन 30 सितंबर को किया जाएगा.
  • विपक्ष ने इसे पीछे के दरवाजे से एनआरसी लागू करना बताया है.
  • विपक्षी इंडिया गठबंधन इसके खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है.
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नई दिल्ली:

बिहार में मतदाता सूचियों का गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम शुरू हो गया है. इसके तहत बूथ लेबल अधिकारी (बीएलओ) घर जाकर लोगों के गणना प्रपत्र भरवाएंगे. 25 जून से शुरू हुआ गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम 26 जुलाई तक चलेगा.इसके बाद अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन 30 सितंबर को किया जाएगा. विपक्षी दल चुनाव आयोग की इस कोशिश का विरोध जता रहे हैं. उनका आरोप है कि इसके बहाने एनआरसी लागू की जा रही है. वहीं सत्तारूढ़ गठबंधन के नेताओं का कहना है कि विपक्ष चुनाव में मिलने वाली हार के लिए बहाना तलाश रहा है. 

क्या कहना है चुनाव आयोग का

चुनाव आयोग की ओर से 29 जून को जारी एक बयान में कहा गया है कि बिहार देश का पहला ऐसा राज्य है, जहां पर मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान चलाया जा रहा है.आयोग का कहना है कि बिहार में इस समय सात करोड़ 89 लाख 69 हजार 844 मतदाता हैं. बिहार में पिछली बार विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान 2002 में कराया गया था. अंतिम गहन पुनरीक्षित मतदाता सूची 1 जनवरी 2003 को प्रकाशित की गई थी. उसमें चार करोड़ 96 लाख मतदाताओं के नाम शामिल थे. आयोग का कहना है कि 2003 की मतदाता सूची में जिन मतदाताओं के नाम दर्ज थे. ऐसे मतदाताओं को केवल अपनी प्रविष्टियों की पुष्टी कर गणना प्रपत्र भरना होगा. वहीं अगर किसी व्यक्ति के माता-पिता में से कोई एक या दोनों का नाम 2003 की मतदाता सूची में है तो ऐसे व्यक्ति को विशेष गहन पुनरीक्षण में नाम डलवाने के लिए उनसे संबंधित कोई भी दस्तावेज पेश करने की जरूरत नहीं होगी. यह फार्म केवल उन्हीं लोगों को भरना है, जिनका नाम मतदाता सूची में 24 जून 2025 तक दर्ज है.

चुनाव आयोग का कहना है कि इस अभियान से वैध मतदाता का नाम वोटर लिस्ट में दर्ज होगा.

क्यों कराया जा रहा है गहन पुनरीक्षण

चुनाव आयोग का कहना है कि तेजी से बढ़ते शहरीकरण, पलायन, युवाओं के वोटर बनने के योग्य होने, मौतों की सूचना न देने और विदेशी अवैध प्रवासियों के नाम शामिल होने जैसे कई कारणों से वोटर लिस्ट का गहन पुनरीक्षण अभियान की जरूरी है. इससे त्रुटीहीन मतदाता सूची बनाई जा सकेगी. आयोग का कहना है कि मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण अभियान से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि सभी योग्य नागरिकों के नाम वोटर लिस्ट में दर्ज हों, जिससे वो अपने हक का इस्तेमाल कर सकें, लिस्ट में कोई ऐसा व्यक्ति न हो जो वोट देने की योग्यता नहीं रखता है. आयोग का कहना है कि मतदाता सूची में नाम जोड़े जाएंगे और जिनकी पुष्टि नहीं होगी, उनके नाम हटा दिए जाएंगे. आयोग का कहना है कि योग्य मतदाताओं की पहचान और उनका नाम दर्ज करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 326 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 16 का उपयोग करेगा.

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मतदाता के पास जाने वाले बीएलओ के पास आंशिक रूप से भरे एक फॉर्म की दो कॉपियां होंगी. इन्हें मतदाता को भरना है. इसके बाद बीएलओ मतदाता से जरूरी कागज लेकर ईसीआईनेट मोबाइल ऐप में अपलोड करेंगे. मतदाता को फार्म भरने की रीसीट भी दी जाएगी.चुनाव आयोग ने कहा है कि इस पूरी प्रक्रिया के दौरान इस बात का भी ध्यान रखा जाएगा कि बुज़ुर्गों, विकलांगों, बीमारों या कमजोर लोगों को परेशान न किया जाए. 

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सवाल क्यों उठा रहा है विपक्ष

बिहार में इस साल ही विधानसभा चुनाव होने हैं. मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण अभियान विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही चलाया जा रहा है. बिहार और देश की दूसरी विपक्षी पार्टियां चुनाव आयोग की इस कार्रवाई पर नाराजगी जता रहे हैं. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नेता और राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने इसे संदेहास्पद और चिंताजनक बताया है. उनका कहना है कि बीजेपी और आरएसएस इसी तरह से बिहार के गरीबों के मतदान का अधिकार खत्म कर देना चाहती है. तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया पर चार पन्ने का एक बयान जारी किया. इसमें उन्होंने विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान की घोषणा संदेहास्पद और चिंताजनक है.उन्होंने पूछा है कि चुनाव से पहले विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान चलाने की जरूरत क्यों पड़ी.तेजस्वी ने सत्यापन के लिए जरूरी दस्तावेजों की सूची में आधार कार्ड के न होने पर भी संदेह जताया है. उन्होंने लिखा है कि एक तरफ वोटर लिस्ट से आधार नंबर लिंक करने की कवायद हो रही है ताकि वोटर डुप्लिसिटी खत्म हो, तो दूसरी तरफ इस रिविजन में आधार कार्ड को मान्य दस्तावेज नहीं माना जा रहा है. यह कैसा रवैया है. 

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एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि चुनाव आयोग बिहार में गुप्त तरीके से एनआरसी लागू कर रहा है. उन्होंने कहा है कि इसका नतीजा यह होगा कि बिहार के गरीबों की बड़ी संख्या को वोटर लिस्ट से बाहर कर दिया जाएगा. उन्होंने कहा है कि चुनाव नजदीक होने की वजह से इस तरह की कार्रवाई से लोगों का चुनाव आयोग पर भरोसा कम होगा.ओवैसी ने पूरी प्रक्रिया पर आपत्ति जताते हुए चुनाव आयोग को पत्र लिखा है. 

वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा है कि यदि चुनाव आयोग बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान पर विपक्ष की आपत्तियों को स्वीकार नहीं करता तो 'इंडिया' गठबंधन के सभी घटक दल इसके खिलाफ न्यायपालिका का दरवाजा खटखटा सकते हैं. सिंह ने केंद्र की एनडीए सरकार पर राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले एसआईआर के माध्यम से गरीब और हाशिए पर पड़े मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाने का प्रयास करने का आरोप लगाया है.

क्या पश्चिम बंगाल में भी होगा मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण 

वहीं पश्चिम बंगाल में सरकार चला रही तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने भी इस अभियान पर संदेह जताया है. टीएमसी के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ'ब्रायन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है, उसे बीजेपी का ब्रांच ऑफिस नहीं बनना चाहिए. उन्होंने इस प्रक्रिया के समय को लेकर कहा,"हमारे पास सबूत हैं कि बंगाल के लिए बीजेपी के ताजा आंतरिक सर्वेक्षण से पता चला है कि बीजेपी को बंगाल विधानसभा चुनाव में 46 से 49 सीटें मिलेंगी. इसीलिए अभी ये अचानक किया जा रहा है. हताशा में इस तरह का कदम उठाया जा रहा है. चुनाव आयोग पीछे के रास्ते से एनआरसी लागू करना चाहता है."

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव ने इसे बिहार में लोकतंत्र को चुपचाप नष्ट करने की तैयारी बताया है. उन्होंने सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर लिखा,''24 जून को चुनाव आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण का जो आदेश जारी किया है, वह पहली नजर में एक तकनीकी प्रक्रिया दिखती है, लेकिन असल में यह एक चुनावी जनगणना है, जो करोड़ों नागरिकों को मताधिकार से वंचित कर सकती है. जिस किसी का नाम 2003 की सूची में नहीं है, उसे अपनी नागरिकता साबित करनी होगी.जिनके पास न जन्म प्रमाणपत्र है, न मैट्रिक का प्रमाण, न जाति प्रमाण वे लोग वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं.'' उन्होंने 22 साल बाद यह प्रक्रिया शुरू करने पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने इस प्रक्रिया के समय को लेकर भी सवाल उठाए हैं.

विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार इसके जरिए गरीब लोगों को चुनाव प्रक्रिया से बाहर करना चाहती है.

एनडीए का गहन पुनरीक्षण पर क्या कहना है

चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया पर आपत्ति जताने वालों में केवल विपक्षी दलों के सांसद ही शामिल हैं. वहीं एनडीए में शामिल दल इसके समर्थन में नजर आ रहे हैं.केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान और जीतन राम मांझी ने का दावा है कि इंडिया गठबंधन चुनावों में खराब प्रदर्शन के लिए बहाना ढूंढ़ने की कोशिश कर रहा है. पासवान ने कहा,''जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 में प्रावधान है कि समय-समय पर मतदाता सूचियों में संशोधन किया जाना चाहिए. इसका उद्देश्य पारदर्शिता सुनिश्चित करना और मतदाता सूचियों में मृत लोगों के नाम बरकरार रखने और मौजूदा लोगों के नाम गायब होने जैसी विसंगतियों को दूर करना है.'' वहीं मांझी ने कहा,''मैं ऐसी कई सीट के बारे में जानता हूं जहां 20,000 तक फर्जी मतदाता पंजीकृत हैं. वे (विपक्ष) इस विसंगति का लाभ उठाना चाहते हैं. अब, विशेष गहन पुनरीक्षण के बाद, ऐसे फर्जी मतदाताओं के नाम काट दिए जाएंगे.इससे उन्हें (विपक्षी नेताओं) बहुत निराशा होगी.

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