सामाजिक न्याय के एजेंडे को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से बिहार में जातीय सर्वेक्षण करा रही नीतीश सरकार को हाईकोर्ट से तगड़ा झटका लगा है. हाईकोर्ट ने इस कवायद को सर्वेक्षण की आड़ में जातीय जनगणना बताते हुए इस पर अंतरिम रोक लगा दी है. हाईकोर्ट का कहना है कि राज्य सरकार को जनगणना करने का अधिकार नहीं है और इसका अधिकार केवल संसद को है.
पिछले हफ्ते ही सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट को निर्देश दिया था कि वह इस मामले में दायर याचिका पर जल्द से जल्द फैसला दे. पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और जस्टिस मधुरेश प्रसाद की पीठ ने राज्य सरकार को यह भी निर्देश दिया कि अभी तक जमा डेटा को सुरक्षित रखा जाए.
पटना हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि, बिहार का जातिगत सर्वेक्षण, सर्वेक्षण की आड़ में जातिगत जनगणना है. जनगणना करने का अधिकार केवल संसद को है. बिहार सरकार को जातिगण सर्वेक्षण का अधिकार नहीं है.
हाईकोर्ट ने कहा कि, विधानसभा में सर्वानुमति से प्रस्ताव पारित हुआ और कैबिनेट ने जातिगत सर्वे की मंजूरी दी. जब सब सहमत थे तो इसके लिए कानून क्यों नहीं बनाया गया. यह सर्वेक्षण राज्य सरकार के नीति निर्धारण से बाहर है. सरकार की दलील से सहमत नहीं कि समवर्ती सूची के तहत अधिकार है.
निजता के अधिकार का उल्लंघन
हाईकोर्ट ने कहा कि, बिहार सरकार सर्वेक्षण के आंकड़े सार्वजनिक करना चाहती है, यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे जीवन के अधिकार का एक स्वरूप बताया है. इसलिए बिहार सरकार जातिगत सर्वेक्षण पर तुरंत रोक लगाए. जब तक इस याचिका पर अंतिम निर्णय नहीं होता सारा डेटा सुरक्षित रखे और उसे किसी को न दे.
दरअसल बिहार सरकार ने लोगों की जाति पूछने के लिए कवायद शुरू की थी. तकनीकी पचड़ों से बचने के लिए इसे जातिगत सर्वेक्षण का नाम दिया गया था. इसके पीछे भी सोच यही थी कि राज्य सरकार को जनगणना का अधिकार नहीं है, लिहाजा इसे जातिगत सर्वेक्षण कहा गया.
सर्वेक्षण का पहला चरण इस साल सात जनवरी से 21 जनवरी तक चला. पंचायत से जिला स्तर पर चल रहे सर्वेक्षण में मोबाइल ऐप पर डेटा लिया गया. पहले चरण में सभी घरों की संख्या, मुखिया और सदस्यों की गिनती हुई. दूसरा चरण 15 अप्रैल से 15 मई तक था. इसमें लोगों की जातियों, उपजातियों, सामाजिक-आर्थिक स्थिति की जानकारी ली जानी थी.
लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष का मुद्दा
अगले लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दल सामाजिक न्याय के लिए जातीय जनगणना को बड़ा मुद्दा बना रहे हैं. कांग्रेस भी जातीय जनगणना का समर्थन कर चुकी है. आरक्षण की सीमा 50% से अधिक करने की मांग की जा रही है. जितनी आबादी, उतने हक की मांग है. पिछली सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी करने की भी मांग की जा रही है. सामाजिक न्याय की छतरी के नीचे डीएमके, सपा, आरजेडी, जेडीयू जैसे 20 दल इकट्ठे हो गए हैं. यह बीजेपी के ओबीसी वोटबैंक में सेंध लगाने की रणनीति है. यह हिंदुत्व के नाम पर इकट्ठी पिछड़ी जातियों को बीजेपी से अलग करने की रणनीति है.
हाईकोर्ट के फैसले के बाद बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने फिर कहा कि यह जातीय जनगणना नहीं बल्कि कास्ट बेस्ड सर्वे है. उन्होंने कहा कि आज नहीं तो कल सब सरकारों को यह कराना ही होगा.