मैरिटल रेप (Marital Rape) समाज के एक हिस्से के लिए एक बड़ा मुद्दा है, लेकिन अक्सर लोग इसपर बात करने से कतराते हैं. शादी के बाद अगर पति अपनी पत्नी की मर्जी के बिना जबरन फिजिकल रिलेशन बनाता है, तो उसे मैरिटल रेप कहते हैं. लेकिन, भारत में अब तक मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना जाता है. इसे लेकर कोई कानून नहीं है. कई संगठनों और याचिकाकर्ताओं ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं. इस बीच केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एफिडेविड दायर कर मैरिटल रेप को क्राइम के दायरे में लाने वाली याचिकाओं का विरोध किया है.
आइए समझते हैं आखिर सरकार मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में क्यों नहीं लाना चाहती? सुप्रीम कोर्ट में सरकार की तरफ से क्या-क्या तर्क दिए गए:-
मैरिटल रेप कानूनी नहीं, सामाजिक मुद्दा
केंद्र ने कहा कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इसके लिए कई अन्य सजाएं भारतीय कानून में मौजूद हैं. सरकार ने तर्क दिया कि मैरिटल रेप का मुद्दा कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक है. फिर भी अगर इसे अपराध घोषित करना ही है, तो यह मामला सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है.
शादीशुदा महिला की सहमति की सुरक्षा के कई उपाय मौजूद
केंद्र ने कहा- "संसद ने पहले ही विवाह के अंदर शादीशुदा महिला की सहमति की सुरक्षा करने के कई उपाय किए हैं. इसमें IPC के सेक्शन 498A के तहत शादीशुदा महिला से क्रूरता, महिला की अस्मिता का उल्लंघन करने के खिलाफ कानून और घरेलू हिंसा से बचाव, 2005 का कानून शामिल है."
महिला की गरिमा की हानि पर भी सजा का प्रावधान
केंद्र ने यह स्वीकार किया कि शादी के बाद भी महिला की सहमति का महत्व खत्म नहीं हो जाता है. महिला की गरिमा के किसी भी तरह के उल्लंघन पर आरोपी को सजा दी जानी चाहिए. अगर शादी के रिश्ते के बाहर इस तरह की घटना होती है, तो उसका नतीजा शादी के रिश्ते में होने वाले उल्लंघन से अलग होता है.
पति को एंटी-रेप कानून के तहत सजा देना गैरजरूरी कार्रवाई
केंद्र ने कहा कि विवाह में पति-पत्नी को एक-दूसरे से सेक्शुअल रिलेशन बनाने की उम्मीद रहती है. हालांकि, ऐसी उम्मीदों के चलते पति को यह अधिकार नहीं मिलता कि वह पत्नी के साथ जबरदस्ती करे. किसी पति को एंटी-रेप कानून के तहत सजा देना गैरजरूरी कार्रवाई हो सकती है.
पति-पत्नी के बीच यौन संबंध उनकी जिंदगी का हिस्सा
केंद्र ने कहा कि पति-पत्नी के बीच यौन संबंध केवल उनके संबंधों का एक हिस्सा है, और चूंकि भारत के सामाजिक और कानूनी संदर्भ में विवाह की संस्था की सुरक्षा आवश्यक मानी जाती है. इसलिए विधायिका अगर विवाह की संस्था की रक्षा को अहम मानती है, तो अदालत द्वारा इस अपवाद को समाप्त करना उचित नहीं होगा.
मैरिटल रेप का मामला कैसे पहुंचा सुप्रीम कोर्ट?
- दरअसल, मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के लिए पहली याचिका 2015 में दिल्ली हाईकोर्ट में दायर की गई थी. लेकिन मोदी सरकार ने 2016 में मैरिटल रेप के विचार को खारिज कर दिया था. सरकार ने कहा था कि भारत में शादी को जिस संस्कार के रूप में मानने की मानसिकता रही है, उसे दरकिनार नहीं किया जा सकता.
- इसके बाद 2017 में केंद्र सरकार ने इस मामले में एक कोर्ट में एक एफिडेविट दायर किया. पिछले दो साल में 2 हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने की मांग फिर से तेज हो गई.
-केंद्र ने पिछले साल दिल्ली हाईकोर्ट में मैरिटल रेप पर चल रही सुनवाई के दौरान कहा था कि अन्य देशों ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित कर दिया है. सिर्फ इसी तर्क के आधार पर भारत को भी ऐसा करने की जरूरत नहीं है.
-इसके बाद कई संगठनों और याचिकाकर्ताओं ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी है.
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याचिकाकर्ताओं ने दिए कौन से तर्क?
-याचिकाकर्ताओं की दलील ये भी है कि रेप की परिभाषा में अविवाहित महिलाओं के मुकाबले शादीशुदा औरतों के साथ भेदभाव दिखता है. इस तरह विवाहित महिला से यौन गतिविधि के लिए सहमति देने का अधिकार छीन जाता है.
-याचिकाकर्ताओं का कहना है कि मैरिटल रेप को अपराध नहीं मानना एक संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत दिए जाने वाले समानता और यौन-निसेक्शुअल-पर्सनल जीवन में के अधिकारों के खिलाफ है.
-मैरिटल रेप को लेकर याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि 2012 में निर्भया केस के बाद आपराधिक कानून सुधार के लिए जे एस वर्मा कमेटी बनाई गई थी. 2013 में इस कमेटी ने मैरिटल रेप को IPC की धारा 375 के अपवाद से हटाने की सिफारिश की थी, लेकिन केंद्र सरकार ने तब इस मामले में कोई फैसला नहीं लिया था. लिहाजा अब इसे अपराध घोषित किया जाना चाहिए.
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