तेलंगाना में BRS नेताओं में क्यों मची है भगदड़, किस रणनीति पर काम कर रहे हैं रेवंत रेड्डी

तेलंगाना के लिए संघर्ष करने वाली बीआरएस इन दिनों तोड़फोड़ से परेशान है. उसके कई विधायक और विधान परिषद सदस्य पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं.बीआरएस विधायकों को कांग्रेस में शामिल कराना मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की रणनीति माना जा रहा है.

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नई दिल्ली:

तेलंगाना में पिछले साल तक सरकार चला रही भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) इन दिनों भारी गुस्से में है.उसके गुस्से की वजह चुनाव में मिली हार नहीं बल्कि उसके विधायकों और सांसदों का पार्टी छोड़ना है. उसके सात विधायक, छह विधान परिषद सदस्य और एक राज्य सभा सांसद पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं.पार्टी इस मामले को हाई कोर्ट में भी ले गई है,लेकिन उसे वहां से कोई राहत नहीं मिली है.बीआरएस अब इस मामले को राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष और राज्य सभा के सभापति के सामने उठाने की तैयारी कर रही है. आइए जानते हैं कि इसके पीछे की राजनीति क्या है. 

बीआरएस के राज्य सभा सदस्य रहे केशव राव का पार्टी में स्वागत करते कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे.

बीते साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने विधानसभा की 119 में से 64, बीआरएस ने 39, बीजेपी ने आठ, एआईएमआईएम ने सात और सीपीआई ने एक सीट पर दर्ज की थी. इसके बाद राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी थी.वहीं कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में राज्य की 17 सीटों में से कांग्रेस ने आठ, बीजेपी ने आठ और एआईएमआईएम ने एक सीट पर जीत दर्ज की थी.लोकसभा चुनाव में बीआरएस के हाथ खाली रह गए थे. उसे राज्य में किसी भी सीट पर सफलता नहीं मिली थी. इस समय राज्य में रेवंत रेड्डी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार है.विधानसभा में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 65 और बीआरएस के विधायकों की संख्या 38 है.

कौन कौन छोड़ चुका है बीआरएस?

विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद से बीआरएस में भगदड़ मची हुई है. पिछले कुछ महीनों में चेवेल्ला सीट से बीआरएस विधायक काले यादैया और बांसवाड़ा सीट के पोचारम श्रीनिवास रेड्डी अपनी पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. श्रीनिवास रेड्डी बीआरएस शासन में अध्यक्ष थे. इन दोनों के अलावा जगतियाल के  विधायक संजय कुमार, खैरताबाद के विधायक दानम नागेंद्र,थाना घनपुर के कडियाम श्रीहरि और भद्राचलम के बीआरएस विधायक टेलम वेंकट राव अपनी पार्टी छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए.बीआरएस छोड़ने वाले विधायकों में सबसे नया नाम गडवाल के विधायक बंदला कृष्ण मोहन रेड्डी का है.उन्होंने मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की मौजूदगी में छह जुलाई को कांग्रेस की सदस्यता ली थी.

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इससे पहले चार जुलाई की देर रात बीआरएस के विधान परिषद सदस्य दांडे विट्ठल, भानु प्रसाद,बी दयानंद, प्रभाकर राव, एग्गे मल्लेशम और बासवराजू सरैया कांग्रेस में शामिल हो गए थे.ये सभी 2014 से पहले कांग्रेस में ही थे.उस समय तेलंगाना राष्ट्र समिति (अब बीआरएस) अलग तेलंगाना राज्य बनने के बाद सत्ता में आई थी. उस समय ये नेता टीआरएस में शामिल हो गए थे.पांच जुलाई को बीआरएस के राज्य सभा सदस्य के केशव राव भी पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए. कांग्रेस में शामिल होने के बाद उन्होंने राज्य सभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. उनका इस्तीफा राज्य सभा के सभापति ने स्वीकार भी कर लिया है.

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हाई कोर्ट की शरण में बीआरएस

अपने नेताओं के दलबदल से परेशान बीआरएस ने हाई कोर्ट की शरण ली.बीआरएस विधायक पदी कौशिक रेड्डी और केपी विवेकानंद ने अपनी पार्टी के विधायक कडियाम श्रीहरि,दानम नागेंद्र और टेलम वेंकट राव को अयोग्य ठहराने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की है.
 

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याचिकाकर्ताओं की दलील है कि ये विधायक दिसंबर 2023 में बीआरएस टिकट पर चुने गए थे,लेकिन अब विधायक पद से इस्तीफा दिए बिना कांग्रेस में शामिल हो गए हैं.इस याचिका पर जस्टिस बी विजयसेन रेड्डी सुनवाई कर रहे हैं.सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ए सुदर्शन रेड्डी ने दलील दी कि विधानसभा अध्यक्ष का फैसला आने के बाद ही अदालत इस मामले में हस्तक्षेप कर सकती है.इस मामले की अगली सुनवाई गुरुवार को होगी.

क्या है रेवंत रेड्डी की रणनीति?

तेलंगाना में यह राजनीतिक तोड़फोड़ ऐसे समय पर हो रही है, जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का नया चेहरा चुना जाना है और मंत्रिमंडल का विस्तार होना है.इस समय मुख्यमंत्री ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर विराजमान हैं.माना जा रहा है कि रेड्डी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ने से पहले पार्टी में अपना आधार मजबूत करना चाहते हैं. बीआरएस नेताओं को कांग्रेस में शामिल कराना उनकी इसी रणनीति का हिस्सा है.

बीआरएस के राज्य सभा सदस्य रहे केशव राव का पार्टी में स्वागत करते कांग्रेस अध्यक्ष.

रेवंत रेड्डी टीडीपी छोड़कर 2017 में कांग्रेस में शामिल हुए थे. पिछले सात साल में ही वो कांग्रेस के अंदर बहुत मजबूत हो गए. कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें पहले उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया. और जब 2023 में मुख्यमंत्री चुनने का मौका आया तो पार्टी नेतृत्व ने रेवंत रेड्डी का नाम ही चुना.इसके लिए कांग्रेस नेतृ्त्व ने पार्टी के कई बड़े नेताओं को दरकिनार किया था, जो काफी लंबे समय से पार्टी की सेवा में लगे हुए थे.यह देखते हुए रेवंत का खुद को मजबूत करना महत्वपूर्ण भी है, क्योंकि कांग्रेस में उनका कद बढ़ने के साथ ही उनके विरोधियों की संख्या भी बढ़ी है.इसे देखते हुए ही रेवंत रेड्डी बीआरएस को कमजोर कर खुद को मजबूत करने में जुटे हैं. 

तेलंगाना में तोड़फोड़ की कौन चुका रहा है कीमत?

विडंबना यह है कि तेलंगाना में रेवंत रेड्डी के उत्थान की कीमत बीआरएस प्रमुख के चंद्रशेखर राव को चुकानी पड़ रही है. केसीआर और बीआरएस फिलहाल अपनी ताकत को दोबारा हासिल करने के लिए अपने कैडर का मनोबल बनाए रखने के लिए उत्साहजनक बातें ही कर सकते हैं.बीआरएस कांग्रेस पर दलबदल को बढ़ावा देने का आरोप लगा रही है.इस पर कांग्रेस ने पलटकर पूछा है कि नैतिकता की ये बातें उस समय कहां थीं, जब वो कांग्रेस नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर रही थी.

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