हरियाणा के बीजेपी विधायकों में नायब सिंह सैनी को अपना नेता चुना है.सैनी का चुनाव बुधवार को पंचकूला स्थित पार्टी कार्यालय में किया गया. उनके नाम का प्रस्ताव पूर्व मंत्री और अंबाला कैंट के विधायक अनिल विज और नरवाना के विधायक कृष्ण कुमार बेदी ने रखा. इसे प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया. बैठक में केंद्रीय पर्यवेक्षक के रूप में अमित शाह और मोहन यादव मौजूद थे.बैठक में हरियाणा बीजेपी के प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर और राव इंद्रजीत सिंह भी मौजूद थे. बीजेपी विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद नायब सिंह सरकार ने राजभवन जाकर सरकार बनाने का दावा पेश किया. उन्होंने 51 विधायकों के समर्थन का पत्र राज्यपाल को सौंपा है.आइए यह जानते हैं कि बीजेपी विधायकों ने नायब सिंह सैनी को ही अपना नेता क्यों चुना.
सरकार की छवि बदली
नायब सिंह सैनी को हरियाणा के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर तब बैठाया गया था, जब प्रदेश मनोहर लाल खट्टर की सरकार के खिलाफ आम लोगों के साथ-साथ बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में भी रोष था.बीजेपी को डर था कि अगर मनोहर लाल को नहीं हटाया गया तो उसे लोकसभा और विधानसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ सकता है.इसी डर से बीजेपी ने उन्हें सीएम पद से हटाकर सैनी को बैठा दिया. इसके बाद सैनी ने सरकार की इमेज बदलने और नैरेटिव को चेंज करने का काम शुरू किया. इसका परिणाम यह हुआ कि बीजेपी ने एंटी इंकम्बेंसी के बाद भी इस चुनाव में शानदार प्रदर्शन करते हुए अपने दम पर पहली बार बहुमत हासिल किया.नायब सिंह सैनी ही इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी का चेहरा थे. ऐसे में उनका बीजेपी विधायक दल का नेता चुना जाना पहले से तय माना जा रहा था.
कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार किया
नायब सिंह सैनी ने विधानसभा चुनाव के दौरान प्रचार अभियान की अगुवाई की.हर जगह वो मंच पर नजर आए. इस दौरान उन्होंने कार्यकर्ताओं से संपर्क साधने की हरसंभव कोशिश की.उन्होंने कार्यकर्ताओं को उज्ज्वल भविष्य का सपना दिखाया और भूत को भूलने की सलाह दी.उन्होंने कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार किया. मतदान के दिन भी वो बूथों पर कार्यकर्ताओं से मिलते और जानकारी लेते हुए नजर आए.इसने बीजेपी कार्यकर्ताओं में हरियाणा की हारी हुई लड़ाई को जीत लेने का विश्वास पैदा किया.वो अतीत को भुलाकर मैदान में उतर गए.और जब परिणाम जब आया तो सैनी की मेहनत रंग लाई.बीजेपी अपने दम पर बहुमत हासिल करने में कामयाब रही.
मनोहर लाल खट्टर बनाम नायब सिंह सैनी
नायब सिंह सैनी के पूर्ववर्ती मनोहर लाल खट्टर की छवि कड़क थी. आम लोगों को छोड़ दीजिए बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता भी उनसे नहीं मिल पाते थे.उनकी इस छवि का असर सरकार के कामकाज पर भी पड़ने लगा था.इसने बीजेपी को परेशान कर दिया था.हालत यह थी कि खट्टर चुनाव प्रचार के दौरान भी एक कार्यकर्ता से उलझते नजर आए. इसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ था.सीएम की इस छवि को सुधारने के लिए ही बीजेपी ने नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया. सीएम की कुर्सी पर बैठने के साथ ही वो लोगों से आसानी से मिलेत-जुलते नजर आए. लोगों में नायब सिंह सैनी की छवि के एक सौम्य मुख्यमंत्री की बनी जो उनके बीच हर समय मौजूद था.वहीं मनोहर लाल खट्टर को बीजेपी ने चुनाव प्रचार कम इस्तेमाल किया. इसका असर चुनाव परिणाम में नजर आया. सैनी की यह छवि भी उन्हें दूसरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाने में काम आई.
वोटों की राजनीति
बीजेपी को हरियाणा में मिली सफलता को उसके सोशल इंजीनियरिंग से जोड़कर देखा जा रहा है. बीजेपी ने हरियाणा के चुनाव में कांग्रेस के उलट गैर जाट वोटों के ध्रुवीकरण पर काम किया. इसमें उसके साथी बनी ओबसी और दलित जातियां.बीजेपी ने अपने परंपरागत पंजाबी-बनिया-ब्राह्म्ण वोटों के साथ-साथ ओबीसी और दलितों को अपने साथ जोड़ा है. ओबीसी हरियाणा की हिस्सेदारी हरियाणा में सबसे अधिक है. बीजेपी ने टिकट वितरण में भी ओबीसी को खास तबज्जो दी. नायब सिंह सैनी माली जाति के हैं. यह जाति ओबीसी में आती है और हरियाणा का एक बड़ा वोट बैंक है. बीजेपी के इस चुनाव ने ओबीसी जातियों को उसके साथ खड़ा कर दिया. बीजेपी ने मिर्चपुर और गोहाना कांड का बार-बार जिक्र कर दलितों को भी अपने साथ कर लिया. यही कारण है कि बीजेपी ने सीएम के लिए सैनी को ही फिर चुना.दलितों को अपने साथ जोड़े रखने के लिए बीजेपी दलित समाज से एक उपमुख्यमंत्री भी बना सकती है.इसका फायदा उसे महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव में भी मिल सकता है.
बीजेपी में सीएम पद के दावेदार
हरियाणा विधानसभा का यह चुनाव मुख्यमंत्री पद के दावेदारों के लिए याद किया जाएगा. मुख्यमंत्री पद के दावेदारों ने बीजेपी और कांग्रेस दोनों को परेशान किया. कांग्रेस की ओर से जहां मुख्यमंत्री पद पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी शैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला दावेदारी पेश कर रहे थे. वहीं बीजेपी में केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह, अनिल विज और कुलदीप बिश्नोई ने सीएम पद पर अपना दावा सार्वजनिक तौर पर पेश किया. लेकिन बीजेपी नेतृ्त्व ने इनके दावों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया. उसने उसी व्यक्ति को सीएम को कुर्सी सौंपी है, जिसके चेहरे पर यह चुनाव लड़ा गया था.
ये भी पढ़ें: मोदी सरकार ने किसानों को दी नई सौगात, रबी की 6 फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ाया, गेहूं की MSP 2425 रुपये प्रति क्विंटल तय