किष्किंधा के हनुमान लला को लेकर क्यों भिड़े हैं पुजारी और कर्नाटक सरकार, जानें SC ने दिया क्या दखल

बता दें कि इस मुद्दे पर 2018 से विवाद चल रहा है. विष्णु शंकर जैन ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि 120 सालों से ये मंदिर इन्हीं पुजारियों के पास है. यही संप्रदाय हनुमान जी की पूजा अर्चना का काम संभालता है.

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कर्नाटक में किष्किंधा क्षेत्र है, जहां पर पर हनुमान जी का एक मंदिर है, जिसे हनुमान जी की जन्मस्थली कहा जाता है. मान्यता है कि हनुमान जी का जन्म यहीं हुआ था और यहां पर एक प्राचीन मंदिर है उसका नाम है आंजनेय हनुमान मंदिर. इसी लेकर कर्नाटक सरकार और मुख्य पुजारी में कानूनी घमासान चल रहा है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा आदेश जारी किया है. कोर्ट ने कहा है कि हनुमान मंदिर के मुख्य पुजारी विद्यादास को पूजा-अर्चना करने की इजाजत दी जाए और उन्हें मंदिर परिसर में रहने के लिए एक कमरा दिया जाए.  मुख्य पुजारी का दावा है कि 120 वर्षों से पुजारियों के पास यह मंदिर रहा है और वे ही हनुमान जी की पूजा-अर्चना करते रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने दी कर्नाटक सरकार के अफसरों को चेतावनी

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार के अफसरों को चेतावनी भी दी है कि अगर आदेशों का उल्लंघन हुआ तो इसे गंभीरता से लिया जाएगा. बता दें कि मुख्य पुजारी की याचिका पर विष्णु शंकर जैन सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे और कहा था कि  2023 में कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश जारी किया था, जिसमें कहा था कि कर्नाटक सरकार मुख्य पुजारी विद्यादास को पूजा अर्चना करने का अधिकार दे और इसके अलावा वहां पर उनको रहने के लिए एक कमरा भी दिया जाएगा, लेकिन कर्नाटक सरकार और उनके अफसर लगातार आदेशों का उल्लंघन कर रहे हैं. उन्होंने एक याचिका भी दाखिल की थी और हाईकोर्ट को बताया था किस तरीके से सरकारी अफसर पुलिस प्रशासन उन पर दबाव बना रहा है. उन्हें टॉर्चर कर रहा है और उन्हें पूजा अर्चना नहीं करने दे रहा, लेकिन हाईकोर्ट ने 9 अप्रैल 2025 को इस याचिका का खारिज कर दिया था, जिसके खिलाफ विद्यादास सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और कोर्ट ने उन्हें बड़ी राहत दी.

मुख्य पुजारी के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से कही ये बात

बता दें कि इस मुद्दे पर 2018 से विवाद चल रहा है. विष्णु शंकर जैन ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि 120 सालों से ये मंदिर इन्हीं पुजारियों के पास है. यही संप्रदाय हनुमान जी की पूजा अर्चना का काम संभालता है. वहां पर 500 सीढ़िया भी बनाई गई हैं, लेकिन सरकार ने इसे अपने नियंत्रण में ले लिया जो कि पूरी तरह गैर कानूनी है. 

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कर्नाटक सरकार ने 2018 में मंदिर को लिया था कब्जे में

2018 में कर्नाटक सरकार ने हिंदू एंडोमेंट एक्ट 1997 के तहत इस मंदिर को अपने नियंत्रण में ले लिया. मुख्य पुजारी विद्यादास ने इसका विरोध किया और हाई कोर्ट में याचिका दायर की. हाई कोर्ट ने कई अंतरिम आदेश जारी किए, जिसमें मुख्य पुजारी को पूजा-अर्चना की इजाजत दी गई, लेकिन सरकार ने इसका पालन नहीं किया.

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मुख्य पुजारी विद्या दास ने किया विरोध

मुख्य पुजारी विद्या दास लगातार इसका विरोध करते रहे वे हाई कोर्ट गए और हाई कोर्ट में जाकर उन्होंने चुनौती दी कि सरकार इस तरह से मंदिर का अधिग्रहण नहीं कर सकती, यह पूरी तरह अवैध है क्योंकि सरकार के पास वो कागजात नहीं हैं, वो रिकॉर्ड नहीं हैं, जिसके तहत जिसके आधार पर इस मंदिर का टेकओवर किया गया हालांकि हाईकोर्ट ने समय-समय पर बहुत सारे आदेश जारी किए. अंतरिम आदेश भी जारी किए और 2018 में भी, 2019 में भी, 2020 में भी और 23 में फिर अंतरिम आदेश यह जारी हुआ कि उनको पूजा करने इजाजत दी जाए जब तक कि पूरा फैसला नहीं हो जाता और यह उनका अधिकार है. अंतरिम तौर पर यह हाई कोर्ट ने उनको दे दिया था, लेकिन उसके बावजूद विद्यादास का कहना है कि उनको 2009 में यहां पर मुख्य पुजारी बनाया गया था और तब से वह यहां पर पूजा अर्चना कर रहे हैं लेकिन सरकार गैर कानूनी तरीके से अवैध तरीके से उनके इस अधिकार को छीन रही है. पुजारियों का पूजा अर्चना करने का अधिकार है. वहां उन्होंने संस्कृत विद्यालय भी स्थापित किया है. सरकार दबाव बना रही है, हाईकोर्ट के आदेशों का भी पालन नहीं कर रही. यह तो अवमानना का मामला बनता है, लेकिन हाईकोर्ट इस मामले पर सुनने को तैयार नहीं था, लिहाजा सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा दखल दिया.

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