- राजेंद्र चोल-1 की जयंती व ऐतिहासिक समुद्र यात्रा की 1000वीं वर्षगांठ पर समारोह में पीएम मोदी शामिल होंगे.
- राजेंद्र चोल प्रथम भारत के शक्तिशाली शासकों में से एक थे. उन्हें गंगा को जीतने वाला राजा कहा जाता है.
- राजेंद्र चोल प्रथम के नेतृत्व में चोल साम्राज्य ने दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया तक अपना प्रभाव बढ़ाया था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिटेन और मालदीव की यात्रा के बाद तमिलनाडु के दो दिवसीय दौरे पर रहेंगे. वह शनिवार शाम को तमिलनाडु पहुंचेंगे और 4800 करोड़ की विकास परियोजनाओं का शिलान्यास-उद्घाटन करेंगे. रविवार को वह तिरुचिरापल्ली जिले के गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर जाएंगे और तिरुवथिरई महोत्सव में हिस्सा लेंगे. यह महोत्सव महान चोल सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम की जयंती और उनकी दक्षिण-पूर्व एशिया की ऐतिहासिक समुद्री विजय यात्रा की 1000वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में मनाया जा रहा है. आइए बताते हैं कि ये चोल सम्राट कौन थे और इतिहास में इनका क्या योगदान रहा.
राजेंद्र चोल प्रथमः एक शक्तिशाली सम्राट
सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम (1014–1044 ईसवी) को भारत के इतिहास के सबसे शक्तिशाली और दूरदर्शी शासकों में से एक माना जाता है. उनके नेतृत्व में चोल साम्राज्य ने दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया तक अपना प्रभाव बढ़ाया था. राजेन्द्र प्रथम के सामरिक अभियानों का सबसे महत्वपूर्ण कारनामा अपनी सेनाओं को गंगा नदी पार करके कलिंग और बंगाल तक पहुंचाना माना जाता है.
राजा, जिसने गंगा को जीत लिया था
राजेंद्र चोल प्रथम ने अपने विजयी अभियानों के बाद गंगईकोंडा चोलपुरम को अपनी शाही राजधानी के रूप में स्थापित किया. गंगईकोंडा का अर्थ होता है- गंगा को जीतने वाला. राजा ने राजधानी में भव्य मंदिर का निर्माण कराया, जो 250 वर्षों से भी अधिक समय तक शैव भक्ति, अद्भुत चोल वास्तुकला और प्रशासनिक कौशल का प्रतीक रहे. ये मंदिर अपनी जटिल मूर्तियों, कांस्य प्रतिमाओं और प्राचीन शिलालेखों के लिए प्रसिद्ध हैं. इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया हुआ है.
राजेंद्र चोल प्रथम
उपमहाद्वीप के इतिहास की दिशा बदल दी
चोल सम्राट राजेंद्र प्रथम की नौसेना इतनी मजबूत थी कि उन्होंने पूरे उपमहाद्वीप के इतिहास की दिशा बदल दी थी. इंडोनेशिया में श्रीविजय वंश के राजा विजयतुंगवर्मन पर उन्होंने समुद्र तटों से एक साथ 14 जगहों से गुप्त हमला किया था. उनके पास इतनी बड़ी-बड़ी नाव मौजूद थीं कि उनमें हाथी और भारी पत्थर दूर तक फेंकने वाली मशीनें रखी जा सकती थीं. इस हमले में चोल सम्राट ने राजा विजयतुंगवर्मन की सेना को आसानी से हरा दिया और राजा को बंदी बना लिया. बाद में राजा ने अपनी बेटी की शादी करके समुद्री कारोबार में उनकी अधीनता स्वीकार की.
आदि तिरुवथिरई महोत्सव का उद्देश्य
आदि तिरुवथिरई महोत्सव को 23 से 27 जुलाई तक राजेन्द्र प्रथम की दक्षिण-पूर्व एशिया की ऐतिहासिक समुद्री विजय यात्रा की 1000वीं वर्षगांठ और तमिल शैव भक्ति परंपरा के सम्मान में आयोजित किया जा रहा है. इसे चोल राजाओं ने आगे बढ़ाया था और 63 नयनमारों (तमिल शैव धर्म के संत-कवियों) ने अमर कर दिया था. इस महोत्सव का मुख्य उद्देश्य शैव धर्म, मंदिर वास्तुकला, साहित्य व शास्त्रीय कलाओं को बढ़ावा देने में राजेंद्र चोल प्रथम और चोल राजवंश की असाधारण विरासत का जश्न मनाना है. इसके अलावा शैव सिद्धांत की गहन दार्शनिक जड़ों व इसके प्रसार में तमिल की भूमिका को सामने लाना और तमिल संस्कृति में नयनमारों के योगदान को सम्मानित करना भी इसका मकसद है.
चोल कौन थे?
चोल राजवंश ने करीब 300 ईसा पूर्व से 1279 ईस्वी तक शासन किया था. इन्हें मध्ययुगीन दक्षिणी भारत में सबसे शक्तिशाली तमिल साम्राज्यों में से एक माना जाता था. नेशनल ज्योग्राफिक की जनवरी 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 1,500 वर्षों तक चोल राजाओं ने मजबूत समुद्री व्यापार नेटवर्क के जरिए दक्षिण व दक्षिण-पूर्व एशिया में धर्म, संस्कृति और वास्तुकला को प्रभावित किया. उनका प्रभाव चीन समेत कई क्षेत्रों तक फैला था.
तंजावुर का वृहदेश्वर मंदिर
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अपने चरम काल में चोल साम्राज्य कला, साहित्य, शिक्षा एवं शहरी नियोजन के लिए प्रसिद्ध था. चोल राजाओं ने बड़े पैमाने पर मंदिरों का निर्माण कराया, जो धार्मिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र थे. उन्होंने सूखे से निपटने और स्वच्छ जल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए झीलें बनवाईं.