कब मिलेगी देश को पहली महिला मुख्य न्यायाधीश!, जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने बताई ये अहम बात

गुरुवार को ही CJI एस ए बोबडे ने जजों की नियुक्ति के मुद्दे पर सुनवाई के दौरान कहा कि अब समय आ गया है जब एक महिला को भारत का मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए. उन्होंने कहा था कि जल्द ही किसी महिला को देश का CJI बनना चाहिए. 

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प्रतीकात्मक तस्वीर.
नई दिल्ली:

देश को कब मिलेगी पहली महिला मुख्य न्यायाधीश? इस सवाल को लेकर देशभर में चर्चा हो रही है. इस बीच शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस रोहिंटन नरीमन (Justice Rohinton Nariman) ने कहा कि पहली महिला मुख्य न्यायाधीश (women Chief Justice in Supreme Court of India) के लिए समय बहुत दूर नहीं होगा. 'ग्रेट वुमन ऑफ हिस्ट्री' के मुद्दे पर 26 वें जस्टिस सुनंदा भंडारे फाउंडेशन का व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा कि भारत में हमारे पास एक महिला राष्ट्रपति थीं लेकिन दुर्भाग्य से इस तथ्य के बावजूद कि देश में एक महिला राष्ट्रपति और एक महिला प्रधानमंत्री रही हैं,  हमारे पास कभी भी एक महिला मुख्य न्यायाधीश नहीं रहीं.

उन्होंने कहा, मुझे उम्मीद है कि पहली महिला मुख्य न्यायाधीश के लिए समय बहुत दूर नहीं होगा. दरअसल गुरुवार को ही CJI एस ए बोबडे (Chief Justice of India SA Bobde) ने जजों की नियुक्ति के मुद्दे पर सुनवाई के दौरान कहा कि अब समय आ गया है जब एक महिला को भारत का मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए. उन्होंने कहा था कि जल्द ही किसी महिला को देश का CJI बनना चाहिए. 

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ये टिप्पणी महिलाओं की जजों के तौर पर नियुक्ति की अर्जी पर आई है. दरअसल, वुमेन लॉयर्स एसोसिएशन  (Women Lawyers' Association) की वकील स्नेहा कलीता और शोभा गुप्ता ने दलील दी कि न्यायपालिका में महज 11 फीसदी ही महिलाएं हैं. ऐसे में ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को न्यायपालिका में जगह दी जानी चाहिए. 

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सुप्रीम कोर्ट वुमन लॉयर एसोसिएशन ( SCWLA) ने सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दायर कर विभिन्न हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाली मेधावी महिला वकीलों पर विचार करने के लिए निर्देश देने की मांग की है, जिस पर सुनवाई के दौरान सीजेआई (Chief Justice of India SA Bobde) की यह अहम प्रतिक्रिया आई.सीजेआई एसए बोबडे ने कहा कि महिलाओं के हित की बात हमारे ध्यान में है और इसे हम सबसे बेहतर तरीके से लागू करने पुर काम कर रहे हैं. हमारे रुख में कोई बदलाव नही आया है.केवल एक ही बात है कि हमारे पास योग्य उम्मीदवार होने चाहिए. सुप्रीम कोर्ट में एडहॉक पर जजों की नियुक्ति के मामले में सुनवाई के दौरान सीजेआई ने ये प्रतिक्रिया दी.

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महिला वकीलों के संघ ने सुप्रीम कोर्ट का रुख कर हाईकोर्ट के जजों के तौर पर महिलाओं की उचित भागीदारी (Representation of women judges in Indian judiciary) की मांग की है.संघ ने संवैधानिक अदालतों में महिलाओं की कम उपस्थिति का हवाला दिया है. वकील स्नेहा कलीता के जरिये दायर याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के बीते 71 सालों के कामकाज में 247 जजों में से सिर्फ आठ महिलाएं थीं. मौजूदा समय में जस्टिस इंदिरा बनर्जी सुप्रीम कोर्ट में अकेली महिला जज हैं. पहली महिला जज फातिमा बीवी थी, जो 1987 में नियुक्त हुई थीं.  

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661 में महज 73 महिला न्यायाधीश
हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी होने में देरी पर लंबित मामले में हस्तक्षेप करने की मांग करते हुए एसोसिएशन ने कहा है कि हाईकोर्ट के 1,080 जजों की स्वीकृत क्षमता के विपरीत सिर्फ 661 की ही नियुक्ति की गई, जिनमें महज 73 महिलाएं हैं. भारत में कभी भी कोई महिला मुख्य  न्यायाधीश नहीं बनी है. 

सिर्फ एक हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश
देश के 25 उच्च न्यायालयों में से केवल एक महिला मुख्य न्यायाधीश (तेलंगाना हाईकोर्ट में सीजे हेमा कोहली) हैं. हाईकोर्ट के 661 जजों में से केवल 73 (लगभग 11.04 प्रतिशत) महिलाएं हैं. मद्रास हाईकोर्ट में 13 महिला जज हैं, जो किसी हाईकोर्ट में सबसे अधिक हैं.मणिपुर, मेघालय, बिहार, त्रिपुरा और उत्तराखंड हाईकोर्ट में कोई महिला जज नहीं हैं.

अमेरिका में 34 फीसदी महिला जज
अमेरिका में महिला राज्य जजों की संख्या 6,056 है जो कुल 17,778 जजों का 34 फीसदी है जबकि अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत में 15 जजों में तीन महिलाएं थीं. दरअसल एक मामले में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने अधिक से अधिक महिला जजों को नियुक्त करने की सिफारिश करते हुए कहा था कि आदर्श स्थिति यह होगी कि कुल जजों के पदों में पचास फीसदी पदों पर महिलाओं की नियुक्ति हो.

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महिलाओं से जुड़े मामलों में भी सुधार आएगा
उन्होंने कहा था कि न्यायपालिका में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी से यौन हिंसा से जुड़े मामलों में अधिक संतुलित और सशक्त दृष्टिकोण का मार्ग प्रशस्त होगा.याचिकाकर्ता कहा कि उनकी ओर से महालक्ष्मी पावनी ने हाल ही में सीजेआई एसए बोबडे को पत्र लिखकर संवैधानिक अदालतों में महिलाओं की पर्याप्त भागीदारी की जरूरत पर जोर दिया था.

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की वकीलों पर ध्यान दें
याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रही महिला वकीलों की प्रतिभाओं को भुनाना चाहिए और  हाईकोर्ट में जज पद पर उनकी नियुक्ति करनी चाहिए.मौजूदा समय में किसी राज्य के हाईकोर्ट में उसी की जज के तौर पर नियुक्ति की जाती है, जहां से वह उम्मीदवार आता है.

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