बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) ने शुक्रवार को भाजपा विधायक गिरीश महाजन और एक अन्य याचिकाकर्ता से यह समझाने के लिए कहा कि यदि राज्य के नियमों में मुख्यमंत्री को महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव के संबंध में राज्यपाल को सलाह देने का प्रावधान है, तो इसमें संवैधानिक रूप से गलत क्या है.
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्त और न्यायमूर्ति एम एस कार्णिक की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं, महाजन और जनक व्यास जिन्होंने अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया को चुनौती देते हुए अलग-अलग जनहित याचिकाएं (पीआईएल) दायर की हैं, उन्हें यह बताना चाहिए कि इस तरह की प्रक्रिया से संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन कैसे हुआ.
पीठ ने याचिकाकर्ताओं से यह भी पूछा कि अदालत को विधायी प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप क्यों करना चाहिए.
अदालत ने कहा, ‘‘क्या संविधान मुख्यमंत्री को मंत्रिपरिषद की सहायता के बिना राज्यपाल को सलाह देने से रोकता है? मुख्यमंत्री द्वारा ऐसी सलाह देने में क्या गलत है? आखिरकार, मुख्यमंत्री की सिफारिशों पर ही मंत्रिपरिषद भी गठित की जाती है.''
अदालत ने कहा, ‘‘जब व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बात आती है तो हम निश्चित रूप से नागरिकों के अधिकारों के संरक्षक होंगे, लेकिन हमें विधायी मामलों में हस्तक्षेप क्यों करना चाहिए जब तक कि कोई गंभीर उल्लंघन न हो? इससे यह एक अच्छा संदेश नहीं जाता. क्या अध्यक्ष के चयन के तरीके का फैसला करना अदालत का काम है?''
महाजन और व्यास द्वारा क्रमशः अधिवक्ताओं महेश जेठमलानी और अभिनव चंद्रचूड़ के माध्यम से दायर जनहित याचिकाएं, अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव के लिए विधायक नियमों के नियम 6 और 7 में पिछले साल दिसंबर में किए गए संशोधनों को चुनौती देती हैं.
जनहित याचिकाओं में दावा किया गया है कि ये संशोधन अकेले मुख्यमंत्री को ऐसे चुनावों पर राज्यपाल को सलाह देने का प्रावधान करते हैं. चंद्रचूड़ ने अदालत को बताया कि देश के कई राज्य मंत्रिपरिषद और मुख्यमंत्री को उक्त पदों के लिए राज्यपाल को सलाह देने का प्रावधान करते हैं.
जनहित याचिकाओं में कहा गया है कि महाराष्ट्र द्वारा लाए गए संशोधन 'मनमाने' और 'असंवैधानिक' हैं.
चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना एक व्यक्ति स्वयं कार्य नहीं कर सकता है.''
राज्य के वकील महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनी ने दोनों जनहित याचिकाओं का विरोध किया और कहा कि ये विचारणीय नहीं हैं.
कुंभकोनी ने दलील दी कि यदि भाजपा विधायक महाजन व्यक्तिगत रूप से संशोधनों से व्यथित हैं, तो उन्हें एक रिट याचिका दायर करनी चाहिए थी न कि एक जनहित याचिका. अदालत ने याचिकाकर्ताओं को मामले की सुनवाई की अगली तारीख 8 मार्च को मुद्दे से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों पर जिरह करने को कहा.
अदालत ने व्यास से कहा कि वह अपनी प्रामाणिकता साबित करने के लिए 7 मार्च तक 10 लाख रुपये जमा करें, क्योंकि वह एक मौजूदा विधायक हैं और एक जनहित याचिकाकर्ता के रूप में उनकी भूमिका 'संदिग्ध' लग रही है.
महाराष्ट्र सरकार ने विधानसभा अध्यक्ष चुनने के लिए नौ मार्च को चुनाव कराना प्रस्तावित किया है.
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