पहले ऑफर, फिर मुलाकात- आखिर उद्धव से क्या चाहते हैं फडणवीस?

2019 के विधानसभा चुनावों के बाद जो कुछ भी महाराष्ट्र की सियासत में हुआ, उससे तो इतना साफ है कि यहां कुछ भी मुमकिन है, जो आज दुश्मन हैं, वो कल दोस्त बन सकते हैं और जो पार्टी कल तक एक थी, वो एक रात में टूट भी सकती है. यहां तो सीएम की शपथ भी सूरज निकलने से पहले हो जाती है.

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  • फडणवीस के एकनाथ शिंदे के साथ रिलेशन उतने सरल नहीं हैं. शिंदे सीएम पद न मिलने के बाद से ही नाराज हैं.
  • उद्धव की पार्टी ने फडणवीस के ऑफर को गंभीरता से नहीं लिया है, लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में कभी भी बदलाव संभव.
  • ऑफर से बीजेपी क्या महाविकास आघाड़ी को और कमजोर करना चाहती है?
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सियासत में कोई बात यूं ही नहीं कही जाती, चाहे वो हल्के-फुल्के अंदाज में ही क्यों न कही जाए, उसके पीछे कुछ न कुछ मकसद जरूर होता है. इसीलिए जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने विधान परिषद में अपने भाषण के दौरान उद्धव ठाकरे को सरकार में शामिल होने की बात कही तो उस एक लाइन ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी. और इसके बाद गुरुवार को उद्धव और फडणवीस की मुलाकात ने इन अटकलों को और तेज कर दिया है. हो सकता है फडणवीस ने कल ऑफर वाली बात मजाक में कही हो, लेकिन सूबे के सियासी हलकों में इसे गंभीरता से लिया गया है. अब सियासी जानकार दो बड़े सवाल उठा रहे हैं. पहला, जब बीजेपी को विधानसभा में तगड़ा बहुमत मिला हुआ है तो फिर उसे उद्धव ठाकरे को साथ लाने की जरूरत क्यों पड़ रही है? दूसरा, अगर वाकई ऐसा होता है तो फिर एकनाथ शिंदे का क्या होगा?

सियासत में तो कुछ भी मुमकिन है

2019 के विधानसभा चुनावों के बाद जो कुछ भी महाराष्ट्र की सियासत में हुआ, उससे तो इतना साफ है कि यहां कुछ भी मुमकिन है, जो आज दुश्मन हैं, वो कल दोस्त बन सकते हैं और जो पार्टी कल तक एक थी, वो एक रात में टूट भी सकती है. यहां तो सीएम की शपथ भी सूरज निकलने से पहले हो जाती है. बीजेपी की अगुवाई में बनी महायुति सरकार के पास 288 में से 230 सीटें हैं यानी मजबूत बहुमत. इसमें बीजेपी के 132, शिंदे गुट की शिवसेना के 57 और अजित पवार की एनसीपी के 41 एमएलए शामिल हैं, यानी बीजेपी को फिलहाल किसी और की जरूरत नहीं होनी चाहिए. फिर भी अगर वो विपक्ष के बड़े नेता को न्योता दे रही है तो इसके पीछे दो वजहें हो सकती हैं-  एक, बीजेपी एमवीए यानी महा विकास आघाड़ी को और कमज़ोर करना चाहती है, और उसमें से सबसे बड़ा हिस्सा निकालना चाहती है. दो, बीजेपी शायद महायुति में अपने किसी मौजूदा साथी को बदलना चाहती है.

अगर दूसरी बात सही है, तो सवाल ये उठता है कि बीजेपी किसको हटाना चाहती है?

फडणवीस और डिप्टी सीएम अजित पवार की कैमिस्ट्री ठीक है, दोनों ज़्यादातर मुद्दों पर एक ही लाइन पर होते हैं, लेकिन एकनाथ शिंदे के साथ ये रिलेशन उतना स्मूद नहीं रहा. बताया जा रहा है कि शिंदे कई बातों को लेकर नाराज़ हैं. सबसे पहले तो उन्हें तब झटका लगा जब बीजेपी ने उन्हें नहीं, बल्कि फडणवीस को सीएम बना दिया. इसके बाद जब फडणवीस ने कुर्सी संभाली तो उन्होंने शिंदे के कई फैसलों को पलट दिया और कुछ टेंडर्स की जांच के ऑर्डर भी दे दिए. इसके अलावा मंत्रियों को अपने निजी सेक्रेटरी रखने के लिए अब सीएम ऑफिस से मंजूरी लेनी होती है. इस फैसले से शिंदे खेमे में नाराजगी और बढ़ गई है.

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शिंदे की पार्टी पर पहले से ही कई विवादों का दबाव

शिंदे की पार्टी पर पहले से ही कई विवादों का दबाव है. विधायक संजय गायकवाड़ ने खराब खाना मिलने पर कैंटीन वाले को पीट दिया जिससे नेगेटिव पब्लिसिटी मिली. फिर मंत्री संजय शिरसाट का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वो नोटों से भरा बैग लेकर दिख रहे हैं. ये भी शिंदे के लिए इमेज का झटका बना. ऐसे विवाद फडणवीस की साफ सुथरी सरकार वाली इमेज को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं. शिंदे हिंदी बनाम मराठी के मुद्दे पर भी मुश्किल में हैं. जहां उद्धव ठाकरे की शिवसेना और राज ठाकरे की मनसे ने स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा बनाने वाले सरकारी सर्कुलर का ज़ोरदार विरोध किया, वहीं शिंदे की सेना जो महायुति का हिस्सा है, खुलकर विरोध नहीं कर सकी. ऊपर से एजुकेशन मिनिस्ट्री बीजेपी के पास है. शिंदे के अपने लोग मानते हैं कि अगर पार्टी ने हिंदी-विरोधी स्टैंड नहीं लिया, तो बीएमसी चुनावों में नुकसान हो सकता है. फिलहाल उद्धव ठाकरे की पार्टी ने फडणवीस की इस पेशकश को सीरियसली नहीं लिया है, लेकिन महाराष्ट्र की सियासी कहानी कहती है कि यहां कब क्या हो जाए, कोई नहीं कह सकता। जो आज अफ़वाह है, वो कल हकीकत बन सकती है.

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