उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) सरकार के हलाल टैग (Halal tag) वाले उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने के कदम से विवाद शुरू हो गया है. योगी आदित्यनाथ सरकार की ओर से जारी किए गए एक नोटिफिकेशन में हलाल सर्टिफिकेशन (halal certification) वाले खाद्य उत्पादों के प्रोडक्शन, स्टोरेज, डिस्ट्रीब्यूशन और सेल पर रोक लगा दी गई है. हालांकि इस आदेश में एक्सपोर्ट के लिए निर्मित उत्पादों को छूट दी गई है.
हलाल सर्टिफिकेशन और यूपी में इस पर लगाई गई रोक एक नजर-
हलाल क्या है?हलाल एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ "जायज" है. इस्लामी धार्मिक विश्वास में इसका विरुद्धार्थी शब्द "हराम" है, जिसका अर्थ "निषिद्ध" है. मुसलमानों के लिए हलाल ज्यादातर आहार संबंधी आदतों, खास तौर पर मीट की प्रोसेसिंग से संबंधित है. कई प्रकार के कॉस्मेटिक्स और दवाओं को भी निषिद्ध माना जाता है क्योंकि उनमें जानवरों के बाई-प्रोडक्ट होते हैं. इनका मुसलमानों द्वारा उपभोग करने पर बंदिश होती है.
सूअर का मीट एकमात्र ऐसा मीट है जिसे कुरान द्वारा विशेष तौर पर प्रतिबंधित किया गया है. लेकिन किसी जानवर के मीट की हलाल जांच पास करने के लिए उसकी इस्लामी कानून के अनुसार प्रोसेसिंग और स्टोर करने की भी जरूरत होती है. हलाल मीट के मानदंड में जानवर की मौत का तरीका भी शामिल है. शाकाहारी भोजन आम तौर पर हलाल माना जाता है जब तक कि उनमें अल्कोहल न हो.
इस प्रतिबंध का दायरा कॉस्मेटिक्स और दवाओं तक फैला हुआ है. इनमें वे उत्पाद हैं जिनमें एनिमल बाई-प्रोडक्ट होते हैं. हालांकि एक अपवाद भी है. मुसलमान गैर-हलाल खाद्य पदार्थ का उपभोग केवल तभी कर सकता है जब "जरूरत के चलते मजबूर हो, न तो इच्छा के कारण प्रेरित हो और न ही तत्काल जरूत से अधिक हो." इसका अर्थ है कि यदि कोई व्यक्ति भूख से मर सकता है तो उसे गैर-हलाल भोजन खाने की इजाजत है.
हलाल उत्पादों के सुपरवीजन और सर्टिफिकेशन में कई वैश्विक संस्थाएं शामिल हैं जो किसी खाद्य पदार्थ को हलाल माने जाने के मानदंड के लिए दिशानिर्देश तय करती हैं. यूरोपियन यूनियन का हलाल प्रमाणन विभाग जो कि यूरोप में काम करने वाली एक आयरिश सर्टिफिकेशन संस्था है, का कहना है कि हलाल मीट उसी जानवर का मीट होता है जो वध (Slaughter) के समय जीवित हो. वध करने की विधि के संदर्भ में कई अन्य मानदंडों के अलावा, नियम यह भी है कि केवल एक समझदार वयस्क मुस्लिम द्वारा मारा गया जानवर ही हलाल होगा. इसका अर्थ है कि गैर-मुस्लिम द्वारा प्रोसेस किया गया मीट हराम होगा. मशीनों से मारे गए जानवर भी योग्य नहीं हैं.
भारत में अनिवार्य हलाल सर्टिफिकेशन सिस्टम नहीं है. भारत में इम्पोर्ट होने वाले हलाल खाद्य उत्पादों के लिए कोई खास लेबलिंग की जरूरतें नहीं हैं. कुछ निजी कंपनियां उत्पादों को जायज बताते हुए हलाल प्रमाणीकरण देती हैं. यह संगठन आयातक देशों की ओर से मान्यता प्राप्त हैं. वाणिज्य मंत्रालय ने इस साल की शुरुआत में कहा था कि मीट उत्पादों का 'हलाल प्रमाणित' के रूप में एक्सपोर्ट करने की अनुमति सिर्फ तभी दी जाएगी, जब उन्हें किसी ऐसी फैसिलिटी में प्रोसेस और पैक किया गया हो जिसके पास क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया के बोर्ड की मान्यता प्राप्त संस्था का प्रमाण पत्र हो.
उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश में कहा गया है कि खाद्य उत्पादों का हलाल प्रमाणीकरण एक समानांतर प्रणाली है जो भ्रम पैदा करती है और खाद्य कानून खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम की धारा 89 के तहत स्वीकार्य नहीं है. इसमें कहा गया है, "खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता तय करने का अधिकार केवल उक्त अधिनियम की धारा 29 में दिए गए अधिकारियों और संस्थानों के पास है, जो अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार प्रासंगिक मानकों की जांच करते हैं."
इसमें कहा गया है कि कुछ दवाओं, चिकित्सा उपकरणों और कॉस्मेटिक उत्पादों में उनकी पैकेजिंग या लेबलिंग पर हलाल सर्टिफिकेशन शामिल होने की सूचना है. जबकि "दवाओं, चिकित्सा उपकरणों और कॉस्मेटिक्स से संबंधित सरकारी नियमों में लेबल पर हलाल सर्टिफिकेशन का लेबल देने का कोई प्रावधान नहीं है."
यूपी सरकार का आदेश एक शिकायत के बाद आया है जिसमें उन उत्पादों की कम बिक्री होने देने की संभावित साजिश का आरोप लगाया गया था जिनके पास हलाल प्रमाणपत्र नहीं है. शिकायत में आरोप लगाया गया है कि इससे अन्य समुदायों के व्यापारिक हितों को नुकसान पहुंच रहा है. शिकायत में कहा गया है कि इस तरह का दुर्भावनापूर्ण प्रयास न केवल आम नागरिकों के लिए वस्तुओं के लिए हलाल प्रमाणपत्र जारी करके अनुचित वित्तीय लाभ चाहता है, बल्कि वर्गों के बीच घृणा पैदा करने, समाज में विभाजन पैदा करने और देश को कमजोर करने की पूर्व नियोजित रणनीति का हिस्सा है.
जिन संस्थाओं के खिलाफ शिकायत की गई है उनमें से एक जमीयत उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट ने आरोपों को "निराधार" बताया है. उसने कहा है कि वह "जरूरी कानूनी उपाय" करेगा.
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