क्या है 'फॉर्म 17C', जिसमें होता है हर वोट का रेकॉर्ड, क्यों देना नहीं चाहता चुनाव आयोग

फॉर्म 17सी पर इन दिनों बवाल मचा हुआ है. एक एनजीओ की मांग है कि फॉर्म 17 सी भाग-1 के डेटा को निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर सार्वजनिक किया जाना चाहिए. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग ने इस मांग का विरोध किया है.

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जिस फॉर्म 17C को लेकर सुप्रीम कोर्ट हुआ चुनाव आयोग पर सख्‍त, जानें आखिर वो है क्‍या
नई दिल्‍ली:

सुप्रीम कोर्ट ने एक एनजीओ की याचिका पर निर्वाचन आयोग को लोकसभा चुनाव के दौरान मतदान प्रतिशत के आंकड़े उसकी वेबसाइट पर अपलोड करने के संबंध में कोई निर्देश देने से इनकार कर दिया है. वोटिंग खत्म होने के बाद 48 घंटे के भीतर वोटिंग का डाटा सार्वजनिक किए जाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल दखल देने से इनकार करते हुए कहा कि इस चरण में हम अंतरिम राहत देने के इच्छुक नहीं... सुनवाई के दौरान जस्टिस दत्ता ने कहा कि हम चुनाव में बाधा नहीं डाल सकते. हम भी जिम्मेदार नागरिक हैं और हमें संयमित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए. चुनाव आयोग ने फॉर्म 17C को सार्वजनिक करने की मांग का विरोध किया है. 

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फॉर्म 17C को लेकर चुनाव आयोग का तर्क 

चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में फॉर्म 17C को सार्वजनिक करने का विरोध किया है. चुनाव आयोग का तर्क है कि 17C को सार्वजनिक किये जाने की मांग सुरक्षा के लिहाज से ठीक नहीं है. चुनाव आयोग ने कहा कि नियमों के अनुसार, फॉर्म 17C केवल मतदान एजेंट को ही दिया जाना चाहिए. नियम किसी भी अन्य व्यक्ति या संस्था को फॉर्म 17C देने की अनुमति नहीं देते हैं. नियमों के मुताबिक, फॉर्म 17C का सार्वजनिक रूप से खुलासा करना ठीक नहीं है. चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि फॉर्म 17सी (मतदान का रिकॉर्ड) को वेबसाइट पर अपलोड करने से गड़बड़ी हो सकती है. इसमें छेड़छाड़ की संभावना है, जिससे जनता के बीच अविश्वास पैदा हो सकता है.

क्‍या होता है फॉर्म 17C

फॉर्म 17सी में प्रत्येक मतदान केंद्र पर डाले गए वोटों का रिकॉर्ड दिया जाता है. चुनाव आयोग का कहना है कि फॉर्म 17सी केवल पोलिंग एजेंट को दिया जाना चाहिए और नियम किसी अन्य इकाई को फॉर्म 17सी देने की अनुमति नहीं देते हैं. फॉर्म 17C में बूथ पर पड़े वोटों का लेखा-जोखा होता है. फॉर्म 17सी में ईवीएम की पहचान संख्या, उस बूथ पर कुल मतदाताओं की संख्या, उस बूथ पर कुल मतदाताओं की संख्या, उन मतदाताओं की कुल संख्या जिन्होंने रजिस्टर पर हस्ताक्षर करने के बाद वोट न डालने का फैसला किया, वोटर्स जिन्हें वोट देने की अनुमति नहीं थी और प्रति ईवीएम दर्ज किए गए वोटों की कुल संख्या शामिल होती है. चुनाव परिणाम से संबंधित कानूनी विवाद के मामले में फॉर्म 17सी का उपयोग किया जा सकता है. बता दें कि कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स 1961 में चुनाव से संबंधित दो तरह के फॉर्म का जिक्र है. पहला फॉर्म 17A और दूसरा 17C होता है. 17ए में पोलिंग अधिकारी के पास हर मतदाता का ब्योरा होता है. वहीं, 17 C में मतदान प्रतिशत के आंकड़ों का पूरा विवरण होता है. मतदान की समाप्ति के बाद इसे सभी प्रार्टियों के पोलिंग एजेंट को दी जाती है.

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शरारत और गड़बड़ी की संभावना

याचिकाकर्ता ने चुनाव निकाय को यह निर्देश देने का भी आग्रह किया है कि सभी मतदान केंद्रों की फॉर्म 17 सी भाग-1 (दर्ज मतदान का विवरण) की स्कैन की गई सुपाठ्य) प्रतियां मतदान के तुरंत बाद अपलोड की जानी चाहिए. निर्वाचन आयोग ने जवाबी हलफनामे में कहा है कि उम्मीदवार या उसके एजेंट के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को फॉर्म 17सी प्रदान करने का कोई कानूनी अधिदेश नहीं है. इसने कहा कि मतदान केंद्र पर डाले गए मतों की संख्या बताने वाले फॉर्म 17सी को सार्वजनिक रूप से पोस्ट करना वैधानिक ढांचे के अनुरूप नहीं है और इससे पूरी चुनावी प्रक्रिया में शरारत एवं गड़बड़ी हो सकती है, क्योंकि इससे छवियों के साथ छेड़छाड़ की संभावना बढ़ जाती है. निर्वाचन आयोग ने 225 पृष्ठ के हलफनामे में कहा, “यदि याचिकाकर्ता का अनुरोध स्वीकार किया जाता है तो यह न केवल कानूनी रूप से प्रतिकूल होगा, बल्कि इससे चुनावी मशीनरी में भी भ्रम की स्थिति पैदा हो पैदा होगी.”

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