पश्चिम बंगाल में भारत-बांग्लादेश सीमा पर रेलवे ओवर ब्रिज ( RoB) के निर्माण के लिए पेड़ों की कटाई का मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण प्रभाव एसेसमेंट नियमों पर केंद्र सरकार पर सवाल उठाया. अदालत ने कहा कि 100 किमी से कम सड़क परियोजना को EIA की आवश्यकता नहीं है,ये नियम टिकने वाला नहीं है. CJI एस ए बोबडे ने कहा अगर सरकार Go East का फैसला करती है तो मौजूदा समुद्री/रेल मार्गों पर विचार क्यों नहीं किया जाता ? चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के अनुसार आप यह मानकर चल रहे हैं कि 100 किमी तक की परियोजना में आप पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं.
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कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया हम इसे ठहरने वाला नहीं मानते हैं. हम इस बात से सहमत नहीं हैं कि यदि परियोजना 100 किमी से कम है तो आपको EIA की आवश्यकता नहीं है, हम किसी को इसे चुनौती देने के लिए कहेंगे या खुद नोटिस जारी करेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कि वे ऐसी परियोजनाओं के लिए एक प्रोटोकॉल तैयार करना चाहते हैं और यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उन विकल्पों पर विचार किया जाए जो पर्यावरण की दृष्टि से कम हानिकारक हैं. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण को ड्राफ्ट प्रोटोकॉल तैयार करने को कहा है. अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद होगी.
दरअसल पश्चिम बंगाल पर हेरिटेज पेड़ों के मुद्दे पर विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट और समिति के एक सदस्य सुनीता नारायण की एक अलग रिपोर्ट दी गई है. उक्त विशेषज्ञ समिति को एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त किया गया था. याचिका में 4036 पेड़ों (लगभग 200 वर्ष या उससे अधिक पुराने और विलुप्तप्राय पेड़ों को शामिल किया गया है) की रक्षा करने का अनुरोध किया गया है, जो सड़क चौड़ीकरण परियोजना और पश्चिम बंगाल में रेलवे ओवर ब्रिज (आरओबी) के निर्माण के लिए काटे जाने हैं. रिपोर्ट में विशेषज्ञ समिति ने प्राकृतिक पूंजी को भी ध्यान में रखते हुए लागत / लाभ विश्लेषण किया है.
रिपोर्ट एक पूर्ण विकसित पेड़ के वित्तीय मूल्य को ध्यान में रखती है, जिसे अक्सर परियोजना के प्रस्तावकों द्वारा अनदेखा किया गया है. उनके विश्लेषण के अनुसार, 300 पूर्ण विकसित पेड़ों का मूल्य जो उनकी प्राकृतिक उम्र से 100 साल पहले कम से कम 2.2 बिलियन (220 करोड़) है. इससे पहले पश्चिम बंगाल में भारत-बांग्लादेश सीमा पर रेलवे ओवर ब्रिज ( RoB) के निर्माण के लिए पेड़ों की कटाई के मामले में सुनवाई के दौरान देश के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने कहा था. ग्रीन कवर को संरक्षित किया जाना चाहिए. ये गिरावट इतनी तेजी से हो रही है कि किसी को भी पता चलने से पहले कई चीजें स्थायी रूप से चली जाएंगी. लोग विकल्प तलाशने को तैयार नहीं हैं। पेड़ों को काटे बिना रास्ता बनाने का कोई तरीका हो सकता है.
दरअसल रेलवे लाइनों के पास लगभग 800 मौतें हुईं. सरकार ने 4 किमी फुट ओवरब्रिज के निर्माण का निर्णय लिया, जिसके लिए कई पेड़ों को काटने की आवश्यकता है. अदालत ने कहा था कि हम यह देखना चाहेंगे कि क्या हम कुछ सिद्धांतों का पालन कर सकते हैं. हम कुछ सुझाव चाहेंगे. पेड़ों को काटे बिना रास्ता बनाने का कोई तरीका हो सकता है. यह थोड़ा अधिक महंगा हो सकता है, लेकिन यदि आप संपत्ति को महत्व देते हैं, तो यह बेहतर होगा. पीठ ने कहा कि वो विशेषज्ञ पैनल की रिपोर्ट आने पर विचार करेंगे. दरअसल 9 जनवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया है जो पश्चिम बंगाल में भारत-बांग्लादेश सीमा पर रेलवे ओवर ब्रिज ( RoB) के निर्माण और बारासात से पेट्रापोल तक राष्ट्रीय राजमार्ग-112 के चौड़ीकरण के लिए 350 से अधिक पेड़ों की कटाई के विकल्प का सुझाव देगी.
पीठ ने कहा कि जब हम एक विरासत के पेड़ को काटते हैं तो इन सभी वर्षों में पेड़ द्वारा उत्पादित ऑक्सीजन के मूल्य की कल्पना भी करें. पीठ ने चार सदस्यीय समिति, जिसमें विज्ञान और पर्यावरण केंद्र की पर्यावरणविद् सुनीता नारायण शामिल हैं, को चार सप्ताह में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा था. पीठ ने कहा था कि यह मामला पर्यावरण की गिरावट और विकास के बीच सामान्य दुविधा प्रस्तुत करता है. जाहिर है प्रत्येक स्थिति में अलग-अलग विचार शामिल होते हैं. इसमें कहा गया है कि पर्यावरण को होने वाले नुकसान के मूल्यांकन के लिए जो भी तरीका अपनाया जाना है, ये वांछनीय है कि विरासती पेड़ों की प्रस्तावित कटाई के विकल्पों पर विशेषज्ञों द्वारा विचार किया जाए.
सुनवाई के दौरान पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार से कहा था कि जब एक विरासत के पेड़ को काटते हैं, तो इन सभी वर्षों में ऑक्सीजन के पेड़ के मूल्य की कल्पना करें. इसकी तुलना करें कि इन पेड़ों के बराबर ऑक्सीजन के लिए आपको कितना भुगतान करना होगा, अगर इसे कहीं और से खरीदना है.शुरुआत में एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (APDR) के वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि कोई विकल्प नहीं खोजा गया और पेड़ों को गिराने की अनुमति दी गई जो लगभग 80-100 वर्ष की आयु के धरोहर हैं. उन्होंने कहा कि हर कोई ग्लोबल वार्मिंग के बारे में जानता है और अध्ययन में कहा गया है कि यदि वनस्पति की रक्षा नहीं की गई तो अगले 10-20 वर्षों में मानव प्रजाति खतरे में पड़ जाएगी.
भूषण ने सुझाव दिया था कि बजाय पुलों के अंडरपास बनाए जा सकते हैं और पेड़ों की कटाई से बचने के लिए सड़कों के संरेखण को बदला जा सकता है. दूसरी ओर पश्चिम बंगाल की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि इसके कारण हर साल 800 लोगों की मौत हो जाती है. कलकत्ता उच्च न्यायालय उन सभी पहलुओं पर विचार कर चुका है जिसके बाद उसने 356 पेड़ गिराने की अनुमति दी गई थी, जो कि RoB के निर्माण और सड़क के चौड़ीकरण के लिए आवश्यक है. दरअसल 31 अगस्त, 2018 को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण का रास्ता खोला था और जेसोर रोड के चौड़ीकरण के लिए 350 से अधिक पेड़ों की कटाई की अनुमति दी थी, इस शर्त पर कि हर पेड़ काटने के बदले पांच पेड़ लगाए जाएंगे.ये सड़क शहर को भारत-बांग्लादेश सीमा पर पेट्रापोल से जोड़ती है. NH-112 या जेसोर रोड भारत और बांग्लादेश के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है और राज्य सरकार ने इसे व्यापक बनाने के लिए एक परियोजना शुरू की है.
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सड़क के दोनों ओर सैकड़ों पुराने पेड़ों की कतार है, जिनमें से कुछ को सड़क के चौड़ीकरण के उद्देश्य से काटने का निर्णय लिया गया था. पेड़ों को काटने की राज्य की योजना को चुनौती देने वाली उच्च न्यायालय के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की गई थी. कई महीनों तक बहस के बाद उच्च न्यायालय ने बारासात से लेकर जेसोर रोड के किनारे पेट्रापोल सीमा तक पांच स्थानों पर 356 पेड़ों की कटाई की अनुमति दी थी.