West Bengal Violence: मार्च-अप्रैल माह में हुए विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने पश्चिम बंगाल सरकार पर 'उदासीनता' का आरोप लगाया है. यही नहीं, आयोग ने हत्या और रेप जैसे गंभीर मामलों की सीबीआई से जांच कराने की भी सिफारिश की है. NHRC ने इसके साथ ही कहा है कि यह केसों की राज्य के बाहर सुनवाई होनी चाहिए. कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर गठित की गई NHRC कमेटी ने कहा है कि पश्चिम बंगाल की स्थिति 'कानून के राज' (rule of law) के बजाय शासक के कानून (law of ruler) की तरह थी और स्थानीय पुलिस इस हिंसा में यदि शामिल नहीं थी तो वह जानबूझकर इसकी अनदेखी कर रही थी.
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सत्तारूढ़ दल के समर्थकों की ओर से मुख्य विपक्षी पार्टी के समर्थकों के खिलाफ प्रतिशोधात्मक हिंसा के दावों का समर्थन करते हुए हाईकोर्ट ने अपनी रिपोर्ट में कह था कि हिंसा के कारण हजारों लोगों की जिंदगी और आजीविका में बाधा उत्पन्न हुई और उनका आर्थिक नुकसान हुआ. हाईकोर्ट ने कहा था कि कई लोगों की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया. कई लोगों को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा, यहां तक कि दूसरे राज्य जाना पड़ा. हाईकोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अध्यक्ष द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट के अवलोकन से प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता द्वारा लिया गया स्टैंड साबित होता है कि चुनाव के बाद हिंसा हुई है.
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इस बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ‘‘अदालत का अपमान'' करने और बीजेपी का ‘‘राजनीतिक बदला लेने'' के लिए राज्य में चुनाव के बाद कथित हिंसा संबंधी अपनी रिपोर्ट मीडिया में लीक करने को लेकर NHRC की गुरुवार को निंदा की. ममता ने राज्य सरकार के विचार जाने बिना एनएचआरसी के निष्कर्ष पर पहुंचने को लेकर हैरानी जताई. उन्होंने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘भाजपा अब हमारे राज्य की छवि खराब करने और राजनीतिक बदला लेने के लिए निष्पक्ष एजेंसियों का सहारा ले रही है. एनएचआरसी को अदालत का सम्मान करना चाहिए था. मीडिया में रिपोर्ट के निष्कर्ष लीक करने के बजाय, उसे पहले इसे अदालत में दाखिल करना चाहिए था.''
उन्होंने कहा, ‘‘आप इसे भाजपा के राजनीतिक बदले के अलावा और क्या कहेंगे? वह (विधानसभा चुनाव में) अब भी हार पचा नहीं पाई है और इसीलिए पार्टी इस तरह के हथकंडे अपना रही है.''राज्य में चुनाव के बाद हिंसा की कथित घटनाओं की जांच कर रही एनएचआरसी की एक समिति ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के समक्ष पेश की गई अपनी रिपोर्ट में कहा था कि पश्चिम बंगाल की स्थिति ‘‘कानून के शासन के बजाय शासक के कानून को दर्शाती'' है और उसने ‘‘हत्या और बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों'' की सीबीआई जांच कराने की सिफारिश की थी.