जब कोई त्रासदी होती है, तभी हम जागते हैं... संस्थाओं में महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ के समक्ष वरिष्ठ वकील महालक्ष्मी पावनी ने कहा कि कल ही एक लड़की को जिंदा जला दिया गया. ये एक इंस्टीट्यूट में की गई हत्या है.

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संस्थाओं में महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जताते हुए सख्त कदम उठाने पर जोर दिया. कोर्ट ने कई गंभीर टिप्पणियों के साथ सुझाव भी दिए और सरकार को समुचित कदम उठाने की सलाह दी और कहा, जब कोई त्रासदी होती है, तभी हम जागते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट वुमन लॉयर्स एसोसिएशन की रिट याचिका पर गुरुवार को विस्तार से सुनवाई करेगा. कोर्ट ने सोमवार को इस याचिका पर सुनवाई की जिसमें 'महिलाओं की सुरक्षा के लिए पूरे देश में दिशा-निर्देश, सुधार और उपायों के साथ यौन अपराधियों के लिए अनिवार्य रासायनिक बंध्याकरण (Chemical Castration)" की मांग की गई है.

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ के समक्ष वरिष्ठ वकील महालक्ष्मी पावनी ने कहा कि कल ही एक लड़की को जिंदा जला दिया गया. ये एक इंस्टीट्यूट में की गई हत्या है.

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि इन घटनाओं से हम भी उतने ही चिंतित हैं. हम खुद भी यही कह रहे थे, हालांकि केंद्र सरकार की ओर से ASG ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि हमने महिलाओं, छात्राओं की सुरक्षा की दिशा में काफी प्रगति की है. अब हर जिले में 'वन स्टॉप सेंटर' हैं. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि सरकार का जवाबी हलफनामा रिकॉर्ड में उपलब्ध नहीं है. संभवत: रजिस्ट्री ने गलती या भूलवश अलग रख दिया होगा. मामले की अगली सुनवाई गुरुवार को निर्धारित की गई है. जस्टिस सूर्यकांत ने सुनवाई के दौरान कई टिप्पणियां कीं.

कोर्ट ने कहा कि शासन और प्रशासन इस दिशा में कदम उठाते हुए सभी संभावित समाधानों पर विचार करें. ऐसे व्यापक दिशा-निर्देश भी बनाए जाएं जो प्रभावी और व्यवहारिक रूप से लागू किए जा सकें ताकि हम जो असर छोड़ना चाहते हैं, वह वास्तव में महसूस हो. कोर्ट ने कहा कि कई आवाजहीन लोग दूरदराज के क्षेत्रों में हैं, देखें कि हम उनके लिए क्या कर सकते हैं. व्यापक प्रचार-प्रसार उनके लिए कारगर नहीं हो सकता. हमें जमीनी सच्चाइयों को स्वीकार करना होगा. उनके लिए क्या न्यूनतम व्यवस्था हो सकती है. जब कोई त्रासदी होती है, तभी हम जागते हैं. यही व्यवस्था की मौलिक कमी है. हर गांव में जनसंख्या के अनुपात के अनुसार, अनिवार्य रूप से, जहां संभव हो, शिक्षित लोगों को पैरा-लीगल वर्कर के रूप में क्यों नहीं जोड़ा जा सकता? यदि मानवीय पैरा-लीगल वर्कर होंगे तो ही पहुंच बन पाएगी. कुछ गांवों में महिलाओं के लिए सरपंच के रूप में आरक्षण है तो उन्हें यह अवसर क्यों नहीं दिया जा सकता? जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि लेकिन क्या लोगों के पास उन केंद्रों तक पहुंचने के साधन और सुविधा है? इस सवाल पर भी सरकार विस्तृत जवाब अगली सुनवाई में पेश करेगी.

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