लंबे समय से कर्ज में डूबी वोडाफोन-आइडिया (Vodafone-Idea) में वित्तीय संकट गहराता जा रहा है. तमाम कोशिशों के बावजूद कंपनी अपनी कमज़ोर पड़ते बिज़नेस को नहीं संभल पा रही है. जानकर मानते हैं कि वोडाफोन-आइडिया के विलय का फैसला ही गलत था. अगस्त 2018 में वोडाफोन और आइडिया के विलय से लगा था कि टेलीकॉम सेक्टर में कंपनी एक बड़े प्लेयर के तौर पर उभरेगी. हालांकि, ऐसा कुछ नहीं हुआ. विलय के करीब पांच साल बाद कंपनी गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रही है. बैंकों से अतिरिक्त लोन भी नहीं मिल पा रहा है.
वोडाफोन-आइडिया ने बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में ये जानकारी दी ही कि सितंबर 2022 तक यानी दूसरी तिमाही के दौरान उसे कुल 7596 करोड़ का नुकसान हुआ है. अब कंपनी ने इस बढ़ते आर्थिक संकट से निपटने के लिए लोन के लिए कई बड़ी सरकारी और निजी बैंकों से संपर्क किया है, लेकिन उसकी खस्ता वित्तीय हालत को देखते हुए कोई भी बैंक फिलहाल उसे अतिरिक्त लोन देने के लिए तैयार नहीं है.
भारती एयरटेल के पूर्व सीईओ संजय कपूर कहते हैं, "मुझे याद नहीं है कि कभी दो कमज़ोर कंपनियां इस तरह एक साथ आयी हों. यह वास्तव में बैड मनी सिंड्रोम का पीछा करते हुए एक अच्छा पैसा लग रहा था."
सूत्रों के मुताबिक अगर वोडाफोन और आदित्य बिरला ग्रुप ने वोडाफोन-आइडिया में इक्विटी इंफ्यूज़न जल्दी नहीं किया, तो मोबाइल टावर मुहैया कराने वाली कंपनी इंडस टावर्स और दूसरे वेंडर्स को बकाया राशि चुकाना मुश्किल होगा. इस बीच खबर है कि इस वित्तीय संकट को देखते हुए वोडाफोन-आइडिया के वेंडर्स इसी महीने से एडवांस पेमेंट की मांग भी कर सकते हैं.
टेलीकॉम मार्किट के विशेषज्ञ अम्बरीष बालिगा कहते हैं, 'वेंडर्स अब वोडाफोन-आइडिया से एडवांस पेमेंट्स मांगने पर विचार कर रहे हैं, लेकिन कंपनी के पास फंड्स की गुंजाइश दिख नहीं रही है". आशंका इस बात को लेकर भी बढ़ रही है कि इस वित्तीय संकट का असर वोडाफोन-आइडिया के 5G सर्विस के रोलआउट प्लान पर भी पड़ सकता है.
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