उत्तराखंड टनल हादसा : जब IAF विमान ने पहाड़ों पर बनी संकरी एयरस्ट्रिप पर पहुंचाई 27,500 Kg की रेस्क्यू मशीन

धरासू एडवांस लैंडिंग ग्राउंड सिल्क्यारा टनल से करीब 30 किमी दूर है. यह समुद्र तल से करीब 3,000 फीट की ऊंचाई पर बना है. 3600 फीट (1.1 किमी) की छोटी और संकरी एयस्ट्रिप के बावजूद यही एयरफोर्स के विमान के लिए सबसे नजदीकी एडवांस लैंडिंग ग्राउंड था.

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नई दिल्ली/उत्तरकाशी:

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में एक निर्माणाधीन टनल (Uttarakhand Tunnel Collapse) धंसने के बाद बीते 6 दिन से 40 मजदूर फंसे हैं. रेस्क्यू ऑपरेशन (Rescue Operation) 24 घंटे चल रहा है, लेकिन मजदूरों को निकालने में अभी कोई कामयाबी नहीं मिल पाई है. रेस्क्यू ऑपरेशन में भारतीय सेना और भारतीय वायुसेना भी मदद कर रही है. वायुसेना (IAF)ने बेहद चुनौतीपूर्ण हालात में करीब 27500 किलोग्राम के एक रेस्क्यू इक्यूप्मेंट को उत्तराखंड के ऊंचे पहाड़ों में बजरी वाले एयरस्ट्रिप (Airstrip) पर पहुंचाया, ताकि ड्रिलिंग करके मलबे को हटाया जा सके और मजदूरों को बाहर निकालने का काम शुरू किया जा सके.

बेशक ये ऑपरेशन बहुत मुश्किल था और इसमें किसी तरह की गलती की कोई गुंजाइश नहीं थी. क्योंकि, उत्तराखंड के धरासू में एडवांस लैंडिंग ग्राउंड (ALG) की लंबाई बहुत कम है. वायुसेना के विमान वजनदार रेस्क्यू इक्यूप्मेंट की वजह से हाई लैंडिंग वेट के साथ आ रहे थे. इस मामले की प्रत्यक्ष जानकारी रखने वाले लोगों ने कहा कि इस  इक्यूप्मेंट का वजन एक पूरी तरह से लोडेड बड़े ट्रक के बराबर था.

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इस मिशन की मंजूरी मिलने से पहले अमेरिकी मूल के सी-130जे सुपर हरक्यूलिस (C-130J Super Hercules) के पायलटों ने रनवे की स्थिति और ऑपरेशन के दौरान आने वाली दिक्कतों का जायजा लिया था. सूत्रों ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि ऐसे महत्वपूर्ण ऑपरेशनों के लिए एडवांस लैंडिंग ग्राउंड का दूसरे हेलिकॉप्टर से मुआयना किया गया.

धरासू एडवांस लैंडिंग ग्राउंड सिल्क्यारा टनल से करीब 30 किमी दूर है. यह समुद्र तल से करीब 3,000 फीट की ऊंचाई पर बना है. 3600 फीट (1.1 किमी) की छोटी और संकरी एयरस्ट्रिप के बावजूद यही एयरफोर्स के विमान के लिए सबसे नजदीकी एडवांस लैंडिंग ग्राउंड था.

सूत्रों ने कहा कि 2 C-130J ने रेस्क्यू इक्यूप्मेंट की जांच के लिए आगरा और पालम के लिए उड़ान भरी थी, ताकि इसका मुआयना किया जा सके कि धरासू एडवांस लैंडिंग ग्राउंड पर लैंडिंग हो सकती है या नहीं. पहले धरासु एएलजी को C-130J के रेगुलर ऑपरेशन के लिए अयोग्य बता दिया गया था.

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वायुसेना का ये पूरा मिशन दो अहम पहलुओं यानी धरासू एडवांस लैंडिंग ग्राउंड की फिटनेस रिपोर्ट और ऑपरेशन की सफलता पर निर्भर था. सूत्रों ने कहा कि डिपार्चर के दौरान कम विजिबिलिटी की स्थिति, एक छोटी और संकरी एयरस्ट्रिप पर हेवीवेट लैंडिंग और लिमिटेड जगह में ऑफलोडिंग (कार्गो) की चुनौतियों के बीच मिशन शुरू किया गया था.

धरासू एएलजी के पास C-130J से हेवीवेट इक्यूपमेंट को उतारने के लिए जरूरी स्पेशल मशीनें भी नहीं थी. माल उतारने में देरी से बचने के लिए लोकल लेवल पर मिट्टी का एक अस्थायी रैंप बनाया गया था.

एक सूत्र ने कहा, "C-130J को उड़ाने वाले भारतीय वायुसेना के एयरक्रू का पूरा प्रोफेशनलिज्म साफ था. पूरे ऑपरेशन को 5 घंटे से भी कम समय के अंदर अंजाम दिया गया था."

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लॉकहीड मार्टिन (Lockheed Martin)ने अपनी वेबसाइट पर कहा है कि C-130J वहां जाता है, जहां दूसरे एयरक्राफ्ट एयरलिफ्ट के लिए नहीं जा सकते. यह 21 देशों में 25 ऑपरेटरों के रूप में इसकी वर्कहॉर्स स्थिति को दिखाता है. जहां से भी मदद की कॉल आती है, C-130J मिशन में निकल पड़ता है.

बता दें कि उत्तरकाशी में टनल धंसने वाला हादसा 12 नवंबर की सुबह 4 बजे हुआ था. टनल के एंट्री पॉइंट से 200 मीटर दूर मिट्टी धंसी और वहां काम कर रहे 40 मजदूर फंस गए. ये मजदूर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के हैं. 

उत्तरकाशी टनल में फंसे 40 मजदूरों को निकालने के लिए अब थाईलैंड और नॉर्वे की स्पेशल रेस्क्यू टीमों से मदद ली जा रही है. थाईलैंड की रेस्क्यू फर्म ने 2018 में वहां की गुफा में 17 दिन से फंसे 12 बच्चों और उनके फुटबॉल कोच को सफलतापूर्वक बचाया था. फंसे हुए मजदूर सुरक्षित हैं और उन्हें एयर कंप्रेस्ड पाइप के जरिए ऑक्सीजन, दवाएं, खाना और पानी दिया जा रहा है.

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