दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने पराली जलाने और प्रदूषण को लेकर सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस की. उन्होंने पराली जलाने के बजाये बायो डिकम्पोजर (Bio Decomposer) के इस्तेमाल पर जोर दिया है. मुख्यमंत्री ने कहा कि अब अक्टूबर-नवम्बर आने वाला है. 10 अक्टूबर के आस पास से दिल्ली की हवा फिर से खराब होने लगेगी. इसका बड़ा कारण है आस-पास के राज्यों में पराली जलाने से आने वाला धुआं. अभी तक सभी राज्य सरकारें एक-दूसरे पर छींटाकशी करती रही हैं, लेकिन दिल्ली सरकार समाधान निकाल लिया है. पिछले साल दिल्ली सरकार ने एक समाधान निकाला. पूसा इंस्टीट्यूट ने एक बायो डिकम्पोज़र घोल बनाया है.
मुख्यमंत्री ने कहा कि किसान धान की फसल अक्टूबर के महीने में काटता है, जो डंठल ज़मीन पर रह जाता है उसे पराली कहते हैं. किसान को गेहूं की फसल की बुआई करनी होती है इसलिए किसान पराली जला देता है. अभी तक हमने किसानों को जिम्मेदार ठहराया. सरकारों ने क्या किया... सरकारों ने समाधान नहीं दिया. सरकारें दोषी हैं. पूसा का बायो डी कम्पोज़र, जो बहुत सस्ता है, उसका हमने दिल्ली के 39 गांवों में 1935 एकड़ जमीन पर छिड़काव किया. जिससे डंठल गल जाता है और ज़मीन बुआई के लिए तैयार हो जाती है.
केजरीवाल ने कहा कि जैसे हमने दिल्ली के सारे किसानों के खेतों में बायो डिकम्पोजर का मुफ्त छिड़काव करवाया है वैसे ही बाकी राज्य सरकारों को भी निर्देश दिया जाए. आस-पड़ोस के राज्यों के किसान भी खुश हो सकते हैं अगर वहां की सरकारें बायो डिकंपोजर घोल का इस्तेमाल करें. अगर केंद्र सरकार राज्य सरकारों को इसके लिए बाधित करे. वेबकॉस की रिपोर्ट लेकर मैं एक-दो दिन में समय लेकर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से मिलने जाऊंगा और उनसे गुजारिश करूंगा कि वह व्यक्तिगत तौर पर इस मामले में हस्तक्षेप करें.
उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार ने केंद्र सरकार की एजेंसी वेबकॉस से ऑडिट कराया. वेबकॉस की रिपोर्ट आई है. उन्होंने 4 जिलों के 15 गांव में जाकर 79 किसानों से बात की. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि डिकंपोजर का इस्तेमाल करने से दिल्ली के किसान बड़े खुश हैं. 90 प्रतिशत किसानों ने कहा कि 15 से 20 दिनों के अंदर उनकी पराली गल गई और उनकी जमीन गेहूं की फसल बोने के लिए तैयार हो गई. किसानों ने बताया कि गेहूं बोने से पहले 6 से 7 बार खेतों की जुताई करनी पड़ती थी. बायो डिकंपोजर को इस्तेमाल करने से एक से दो बार जुताई करने से ही काम चल गया.
इसके इस्तेमाल से खेतों में जो ऑर्गेनिक कार्बन थी, उसकी मात्रा पहले से 40% तक ज्यादा बढ़ गई. नाइट्रोजन की मात्रा 24 परसेंट तक बढ़ गई. उपजाऊ बैक्टीरिया 7 गुना बढ़ गया. कार्बन जो फसल को फायदा पहुंचाती है 3 गुना बढ़ गई. मिट्टी की गुणवत्ता में इतना सुधार हुआ कि गेहूं का अंकुरण 17 से 20% तक बढ़ गया. गेहूं की फसल के उत्पादन में 8% की वृद्धि हुई है.