यूरिया घोटाला : CBI ने 22 साल की देरी से दायर की क्लोजर रिपोर्ट तो अदालत ने लगाई फटकार

जज ने कहा, CBI निदेशक इस मामले को देखेंगे और जरूरी कार्रवाई करेंगे. वह यह सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाएंगे कि ‘घोर अन्याय’ दोबारा न हो. उन्होंने कहा, यह सीबीआई का मुकदमा नहीं है कि 1999 से 2021 तक इसमें कोई जांच की जा रही थी.

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CBI ने 22 साल देरी से क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की
नई दिल्ली:

यूरिया घोटाले में 22 साल की देरी से क्लोजर रिपोर्ट दायर करने को लेकर विशेष अदालत ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को कड़ी फटकार लगाई है. कोर्ट ने 1995 के यूरिया घोटाले से जुड़े एक मामले में सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया. अदालत ने जांच एजेंसी के निदेशक से यह सुनिश्चित करने को कहा कि ‘ऐसा घोर अन्याय' फिर से न हो.
विशेष जज हाल ही में पारित आदेश में कहा कि मामले में सीबीआई ने आखिरी बार तफ्तीश 1999 में की थी. इससे यह स्पष्ट है कि जांच एजेंसी ने अब तक रिपोर्ट दबाए रखी. उन्होंने सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक इकाई 1 के संयुक्त निदेशक को मामले की जांच करने और अपनी रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया है. जस्टिस राठी ने कहा, जाहिर है कि जब वर्तमान अंतिम रिपोर्ट दायर की गई थी, तब जांच अधिकारी और संबंधित एसपी ने 22 साल की इस देरी के बारे में चर्चा करना जरूरी नहीं समझा, जबकि उनके पास इसका मौका था. देरी की वजहें समझाने में जानबूझकर साधी गई ऐसी चुप्पी कानूनी रूप से अस्वीकार्य है. यह स्पष्ट रूप से इस अदालत के लिए चिंता का विषय है और जांच एजेंसी के प्रमुख यानी सीबीआई निदेशक के लिए भी फिक्र का कारण होना चाहिए.

जज ने कहा, सीबीआई निदेशक इस मामले को देखेंगे और जरूरी कार्रवाई करेंगे. वह यह सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाएंगे कि ‘घोर अन्याय' दोबारा न हो. उन्होंने कहा, यह सीबीआई का मुकदमा नहीं है कि 1999 से 2021 तक इसमें कोई जांच की जा रही थी. ऐसे में यह समझ से परे है कि उसी अंतिम रिपोर्ट को इतने समय तक क्यों दबाए रखा गया था और इसका क्या उद्देश्य था.” सीबीआई ने 19 मई 1996 को यूरिया घोटाला मामला दर्ज किया था. आरोपियों पर एक आपराधिक साजिश के तहत नेशनल फर्टिलाइजर लिमिटेड (एनएफएल) को 133 करोड़ रुपये की चपत लगाने का आरोप था. मुख्य मामले में एनएफएल के कई अधिकारियों, कारोबारियों और पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के भतीजे बी संजीव राव को दोषी ठहराया गया था. सीबीआई ने जिस मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की थी, वह चार जून 1997 को दर्ज किया गया था और एक लाख मीट्रिक टन यूरिया की आपूर्ति से जुड़ी थी.

जांच एजेंसी ने अपनी एफआईआर में एनएफएल के पूर्व एमडी सीके रामकृष्णन और कार्यकारी निदेशक डीएस कंवर, हैदराबाद स्थित साईं कृष्णा इंपेक्स के मुख्य कार्यकारी एम संबाशिव राव व अमेरिका स्थित अलबामा इंटरनेशनल इंक के एस नुथी को आरोपी बनाया था. सीबीआई ने जनवरी 2021 में इन आरोपियों के खिलाफ अपनी क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करते हुए कहा था कि मामले में कोई आर्थिक नुकसान नहीं हुआ है. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि रामकृष्णन और कंवर पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने संजीव राव व नुथी को बार-बार रियायतें दीं, जो यूरिया की आपूर्ति करने में नाकाम रहे थे. नियमों के तहत अनुबंध को पूरा करने में नाकाम रहने के चलते एनएफएल के पक्ष में जारी प्रदर्शन गारंटी बॉन्ड को जब्त कर लिया जाना चाहिए था. विशेष अदालत ने कहा कि लेटर ऑफ इंटेंट के तहत बार-बार यूरिया की आपूर्ति करने में नाकाम रहने के कारण कुल 3.01 लाख डॉलर (मौजूदा कीमत 2.28 करोड़ रुपये से अधिक) मूल्य के दो फीसदी पीजी बॉन्ड को जब्त करने के बजाय कंवर ने इन्हें आठ जनवरी 1996 को नुथी को वापस दे दिया, जिसके चलते एनएफएल को तीसरे पक्ष से यूरिया खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ा.

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अभियोजन पक्ष के गवाह और एनएफएल के एक अतिरिक्त प्रबंधक के बयान का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि संजीव राव ने संबाशिव राव को रामकृष्णन से मिलवाया था. कोर्ट ने कहा, जांच अधिकारी और सीबीआई के एसपी द्वारा निकाले गए निष्कर्ष में कोई विश्वसनीयता नहीं है. इसमें कहा गया है कि सरकार को कोई आर्थिक नुकसान नहीं हुआ है. 1995 में 3.01 लाख डॉलर मूल्य के पीजी बॉन्ड एक मूल्यवान संपत्ति थे.

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विशेष अदालत के मुताबिक, चारों को आरोपियों के तौर पर तलब किए जाने के लिए पर्याप्त सामग्री थी. केस फाइल पर नजर दौड़ाने के बाद विशेष न्यायाधीश ने कहा कि मामले में आखिरी जांच 11 मार्च 1999 को की गई थी और इसके बाद 17 मार्च 1999 को अंतिम रिपोर्ट का मसौदा तैयार किया गया था. इसके बाद केवल दो केस डायरी तैयार की गईं, जिनमें से आखिरी 12 मई 1999 को बनी थी. जाहिर है कि जांच एजेंसी उसे लेकर बैठी रही और अंतिम रिपोर्ट विशेष न्यायाधीश के समक्ष 12 जनवरी 2021 को यानी 22 साल के लंबे अंतराल के बाद दायर की गई. 

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