UP Election: आवारा पशुओं का आतंक क्यों बन गया बड़ा चुनावी मुद्दा? परेशान हैं किसान 

किसान के बेटे सचिन ने कहा कि स्कूल जाता हूं, पर यहां खेत की रखवाली करनी पड़ती है. रात में मेरे पिता रूकते हैं. हम बहुत परेशान हैं. एक दिन तो मुझे पेड़ पर चढ़कर अपनी जान बचानी पड़ी. 

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(प्रतीकात्मक तस्वीर)

सीतापुर:

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव जारी हैं. ग्रामीण इलाक़ों में किसानों के लिए आवारा पशु एक बहुत बड़ी समस्या है. सरकार ने आवारा पशुओं के लिए जो गौशालाएं बनवाई हैं, वहां इंतज़ाम बेहद ख़राब हैं. लोगों को खेतों से आवारा जानवारों को भगाने के लिए कड़ी मशक्कत का सामना करना पड़ रहा है. ग्रामीण इलाकों में आवारा पशु एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है. क्या इसका ख़ामियाज़ा योगी सरकार को भुगतना पड़ सकता है.

यूपी के सीतापुर में 12 साल का सचिन आवारा पशुओं को अपने खेत से भगाने के लिए अपनी जान की बाज़ी लगाए हुए है. अकेले लगभग 20 से ज़्यादा पशुओं के पीछे भाग रहा है. अगर चूक गया तो ये जानवर इसके पिता द्वारा ख़ून पसीना बहाकर उगाई फ़सल को चर डालेंगे.

किसान के बेटे सचिन ने कहा कि स्कूल जाता हूं, पर यहां खेत की रखवाली करनी पड़ती है. रात में मेरे पिता रूकते हैं. हम बहुत परेशान हैं. एक दिन तो मुझे पेड़ पर चढ़कर अपनी जान बचानी पड़ी. 

दो दिन पहले रात में हरीश के खेत में आवारा पशुओं का झुंड घुस आया था. हरीश ने जो गन्ना ठंड में मेहनत से उगाया था उसे जानवरों ने या तो खा लिया या फिर रौंद दिया. अब जो बचा खुचा गन्ना है उसे काट रहे हैं. किसान हरीश भारती ने कहा कि बहुत परेशान हैं. सरकार पांच किलो मुफ़्त अनाज देती है पर क्या फ़ायदा. रात में बार-बार आकर देखना पड़ता है. 20-30 हज़ार तो तारबंदी में लग जाते हैं. सरकार को कुछ पता है. 

यहां ज़्यादातर किसानों ने अपने खेतों में पशुओं को रोकने के लिए कंटीले तार लगा रखे हैं. अब सीतापुर के गौशाला का हाल देखिए.

सीतापुर की सरकारी गोशाला का हाल ये है कि यहां कई गायें मर चुकी हैं और कुछ बीमार हैं. यहां न इनके खाने के लिए पर्याप्त चारा है और न देखभाल के लिए डॉक्टर. गोशाला का रखरखाव करने वाले रामस्वरूप का कहना है कि यहां हर दूसरे दिन गाय मरती हैं. प्रशासन से कोई झांकने नहीं आता. 

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गौशाला कर्मचारी रामस्वरूप ने कहा कि यहां हर दो-तीन दिन में गाय मरती हैं. कोई नहीं देखता. प्रधान भी नहीं पूछते. डॉक्टर भी कभी कभार आते हैं.