भाजपा ने पिछला उत्तर-प्रदेश विधानसभा चुनाव एकतरफा जीता था. जीत का अंतर इतना बड़ा था कि अगर सभी को नहीं तो कई को लगा कि विपक्ष के लिए यह अंतर पाटना मुश्किल है. चुनावी नतीजों के पूर्वानुमान के अनुसार अगर भाजपा 100 सीट भी हार जाती है, यानि अगर भाजपा 325 से 225 सीटों पर भी आ जाती है, तब भी, भाजपा साफ तौर पर जीत जाएगी. यूपी, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर और पंजाब के विधानसभा चुनाव के नतीजे गुरुवार को आने हैं. यूपी में सात चऱणों में विधानसभा चुनाव हुआ था. जबकि मणिपुर में दो चऱणों में वोटिंग हुई थी. गोवा, उत्तराखंड और पंजाब में एक चरण में मतदान हुआ था.
यह स्पष्टता मज़बूत दिखती है. लेकिन क्या यह अभूतपूर्व है? ऐसा नहीं है,क्योंकि उत्तर-प्रदेश में उतार-चढ़ाव रहे हैं. 1997 के बाद उत्तर-प्रदेश का औसतन जीत का अंतर भाजपा की लैंडस्लाइड जीत से थोड़ा ही कम है. (देखें तस्वीर 2).
असल में, उत्तर-प्रदेश में 1996 के बाद हर सत्ताधारी पार्टी को सत्ता से बाहर का रास्ता देखना पड़ा है. 1996 के बाद पांच चुनाव हुए और सत्ता में पार्टी भी पांच बार बदली.
हालांकि, भाजपा के पास एक फायदा यह है कि, इन चुनावों में विपक्ष इतना बिखरा हुआ था कि भाजपा अपने पॉपुलर वोट्स में सामान्य से अधिक कमी के बावजूद जीत बना सकती है. ( देखें Figure 4). अगर भाजपा का सामना ज़रा से भी एकजुट विपक्ष से होता तो भाजपा को 5% का नुकसान होता. लेकिन विपक्ष की मौजूदा हालत में उन्हें जीत के लिए भाजपा के पॉपुलर वोट में और अधिक सेंध लगानी थी. तो, इन चुनावों में जीत के बावजूद भाजपा कितने वोटर गंवा सकती है?
लेकिन फिर भी, भाजपा की इन चुनाव में हार के लिए जितना बड़ा नुकसान चाहिए उसके बावजूद भाजपा में चिंता है कि उत्तर-प्रदेश में उतना बड़ा फासला पैदा होना कोई असामान्य बात नहीं है. असल में, 2017 में भाजपा के पक्ष में 2012 की तुलना में 26% अधिक वोट पड़े थे. (देखें figure 5) और भाजपा ने 47 सीटों से 325 सीटों की बढ़त बनाई थी.
भाजपा के लिए अच्छी बात यह है कि वह बड़ा नुकसान भी झेल सकती है और फिर भी सत्ता में बने रह सकती है. लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड 52% वोट पाने के बावजूद भाजपा सहज नहीं है. विधानसभा चुनाव में लोकसभा चुनाव की तुलना में वोट का बड़ा नुकसान हुआ है. (देखें Figure 6) यह नुकसान करीब 14% का हुआ करता था लेकिन पिछले कुछ सालों में 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले और बाद में भाजपा ने 10 विधानसभा चुनाव में 21% वोट गंवाए हैं.
अगर यूपी में यही पैटर्न दोहराया जाता है तो भाजपा का वोट इन चुनाव में 30.5% गिर जाएगा. यह 2017 में मिले 41.5% वोट की तुलना में -10% का नुकसान होगा. अगर ऐसा होता है तो यह भाजपा के लिए बड़ा नुकसान देगा.
इस सबके बावजूद भाजपा के लिए पते की बात यह है कि उसने इन चुनावों में कड़ा मुकाबला दिया है. अभूतपूर्व वोट के आधार पर वह बड़े अंतर से जीत सकती है क्योंकि विपक्ष पूरी तरह से बिखरा हुआ था. केवल यही दिक्कत होगी कि राज्य में कोरोना के कारण वित्तीय समस्या गहराई हुई है. इससे फर्क नहीं पड़ता कि भाजपा ने कोविड की स्तिथी को सही से संभाला या नहीं, लोगों ने बड़ी परेशानियां झेली हैं. इसके साथ कीमतें बढ़ीं हैं. हालांकि इससे फर्क नहीं पड़ता कि यह तेल की कीमत बढ़ने जैसे विदेशी या घरेलू कारण की वजह से है- महंगाई को लेकिन आम जनता में नाराज़गी है. इतिहास में कुछ ही सरकारों ने इन सब परेशानियों के बाद भी वोट में कमी के बावजूद सरकार बनाई है. भाजपा का मुख्य लक्ष्य 7% से अधिक मतदाता को अपने से दूर जाने से रोकना है. क्योंकि इससे अधिक का मतलब होगा कि भाजपा सत्ता गंवा भी सकती है.