UP : दो चिकित्सा अधिकारियों की हत्या मामले में सीबीआई कोर्ट ने एक को सुनाई उम्र कैद की सजा

मुख्य चिकित्सा अधिकारियों वी.के. आर्य और बी.पी. सिंह की 2010 और 2011 में लखनऊ के पॉश गोमती नगर क्षेत्र में तब हत्या कर दी गई थी जब वे सुबह टहलने निकले थे. आर्य की 27 अक्टूबर को तथा सिंह की 2 अप्रैल को बाइक से आए हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.

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(प्रतीकात्मक तस्वीर)
नई दिल्ली:

लखनऊ की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 2010 और 2011 में उत्तर प्रदेश के परिवार कल्याण विभाग के दो मुख्य चिकित्सा अधिकारियों की हत्या के मामले में बुधवार को एक दोषी को उम्रकैद की सजा सुनायी. अधिकारियों ने यह जानकारी दी. अदालत ने अभियुक्त आनंद प्रकाश तिवारी पर 58,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया. उसे उत्तर प्रदेश परिवार कल्याण विभाग के तत्कालीन उप मुख्य चिकित्सा अधिकारी वाई एस सचान ने हत्या की सुपारी दी थी.

इस मामले में दो अन्य आरोपियों विनोद शर्मा और आर के वर्मा को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया. केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने दावा किया कि राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के तहत आवंटित बजट के व्यय से जुड़े मुद्दों की वजह से इस हत्या को अंजाम दिया गया.

मुख्य चिकित्सा अधिकारियों वी. के. आर्य और बी. पी. सिंह की क्रमश: 2010 और 2011 में लखनऊ के पॉश गोमती नगर क्षेत्र में तब हत्या कर दी गयी थी जब वे सुबह टहलने निकले थे. आर्य की 27 अक्टूबर, 2010 को तथा सिंह की दो अप्रैल, 2011 को मोटरसाइकिल से आये हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.

सीबीआई प्रवक्ता ने बताया कि आरोप है कि सचान ने आर्य एवं सिंह का सफाया करने के लिए आनंद प्रकाश तिवारी समेत 'भाड़े के हत्यारों' को सुपारी दी थी. बयान में कहा गया है , "दोनों ही मामलों की जांच में स्थानीय पुलिस को वाई एस सचान की संलिप्तता के संकेत मिले थे, लेकिन जांच के दौरान उनकी मौत हो जाने के कारण उनके खिलाफ आरोपपत्र दाखिल नहीं किया गया."

सचान 22 जून, 2011 को लखनऊ कारागार के शौचालय में मृत पाये गये थे और उनके हाथ पर गहरे कटे का निशान था. सीबीआई ने उनकी मौत की जांच की और यह दावा करते हुए 'क्लोजर' रिपोर्ट दाखिल की कि उन्होंने खुदकुशी कर ली. एजेंसी ने कहा था कि वैसे तो गहरे कटे के निशान थे लेकिन उनके 'भीतरी अंगों पर कोई जख्म नहीं था' और उनके कपड़े पर भी ऐसा कोई निशान नहीं था.

दोनों मुख्य चिकित्सा अधिकारियों की हत्या की जांच के दौरान सीबीआई ने अभियोजन पक्ष के 45 गवाहों से पूछताछ की, विभिन्न दस्तावेजों को खंगाला तथा बचाव पक्ष के चार गवाहों से जिरह की. सीबीआई ने 2012 में आरोपपत्र दाखिल करने के बाद कहा था, "सचान ने अन्य के साथ मिलकर साजिश रची तथा एक ठेकेदार के मार्फत दो निशानेबाजों (शूटर) को सुपारी दी. ये सभी उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं."

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सीबीआई ने बयान में कहा, "वी के आर्य की हत्या के बाद आरोपियों का उत्साह बढ़ गया क्योंकि निर्धारित अवधि में स्थानीय पुलिस असली हत्यारों का पता नहीं लगा पायी. ऐसे में उन्होंने दूसरी हत्या को अंजाम दिया. दोनों ही हत्याओं में हत्यारों ने एक ही हथियारों का इस्तेमाल किया." सीबीआई ने कहा था कि इन मामलों की उसकी जांच से पता चला कि आर्य और सिंह की हत्या की वजह एनआरएचएम के तहत आवंटित बजट के व्यय से जुड़े मुद्दे थे

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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