क्या हम दोनों भाइयों के साथ आने से किसी को कोई प्रॉब्लम है? अपने पेट की पीड़ा वे खुद ही संभालें: उद्धव ठाकरे

क्या राज और उद्धव ठाकरे साथ आएंगे? क्या दोनों के बीच राजनीतिक गठबंधन होगा? यह सवाल इस समय महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल मचा रहा है. इस पर उद्धव ठाकरे ने क्या कहा... कई और भी मुद्दों पर उनकी राय जानिए.

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  • उद्धव ठाकरे ने मराठी लोगों की एकता को अटूट बताया और भाजपा की त्रिभाषा अनिवार्यता की नीति का विरोध किया.
  • मुंबई महानगरपालिका चुनावों में शिवसेना की भूमिका पर कहा कि वे मराठी जनता के लिए लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं.
  • उद्धव ठाकरे ने राज ठाकरे के साथ मराठी अस्मिता के मुद्दे पर एकजुट होने और गठबंधन की संभावनाओं का संकेत दिया.
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मुंबई:

शिवसेना पक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे ने दृढ़ता से कहा कि मराठी लोगों की एकता अटूट है. भाजपा त्रिभाषा सूत्र अनिवार्यता के बहाने महाराष्ट्र को सुलगाने की कोशिश कर रही है, लेकिन ऐसा नहीं होगा. हम किसी भाषा से द्वेष नहीं करते, लेकिन मराठी लोग किसी भी भाषाई अनिवार्यता को बर्दाश्त नहीं करेंगे. उद्धव ठाकरे ने पहलगाम आतंकवादी हमले पर मोदी सरकार से ‘जवाब' मांगा, 26 बहनों का सिंदूर मिटाकर आतंकवादी गायब हो गए. यह सरकार की विफलता है. देश को बताएं कि किसके दबाव में ‘ऑपरेशन सिंदूर' वापस लिया गया.

क्या राज और उद्धव ठाकरे साथ आएंगे? क्या दोनों के बीच राजनीतिक गठबंधन होगा? यह सवाल इस समय महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल मचा रहा है. इस पर उद्धव ठाकरे ने कहा, 'क्या हम दोनों भाइयों के साथ आने से किसी को कोई प्रॉब्लम है? अपने पेट की पीड़ा वे खुद ही संभालें. हम दोनों मिलकर महाराष्ट्र के स्वप्न को साकार करेंगे. सही वक्त पर सही फैसला लेंगे.' शिवसेनापक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे के साथ साक्षात्कार में कई सवालों के जवाब मिले.  

सवाल: इस राज्य की समस्याएं कभी खत्म नहीं होगीं; लेकिन फिर भी, देश में घटित कुछ घटनाक्रमों पर आपकी राय और टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है. हां, इसलिए शिवसेना की एक दृढ़ भूमिका है ही. विशेषकर पहलगाम की घटना... वहां भयानक आतंकवादी हमला हुआ... देश में हाहाकार मच गया ... हमारे महाराष्ट्र की माताओं और बहनों सहित 26 महिलाओं का सिंदूर मिटा दिया गया.

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जवाब: हां, आप जिसका जिक्र कर रहे हैं, वह घटना धक्कादायक और क्रोधित करने वाली है, लेकिन मेरा सवाल यह है कि यह हमला आखिर हुआ ही कैसे? हमें लगातार बताया जा रहा था कि कश्मीर में हालात सामान्य हो गए हैं और वास्तव में, ऐसा होना भी चाहिए था. क्योंकि कश्मीर हमारे देश का अभिन्न अंग है. इसीलिए शिवसेना ने अनुच्छेद 370 हटाने का समर्थन किया था. वहां हाल ही में पर्यटन फिर से शुरू हुआ था. इसलिए वहां पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था रखना जरूरी था. क्योंकि हम उस इलाके को, जो कभी किसी वक्त या लंबे समय से अशांत रहा है, यह सोचकर कि वहां सब कुछ ऑलवेल है नजरअंदाज नहीं कर सकते.

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सवाल: तो क्या होना चाहिए था? यानी क्या? हमले से पहले हुई किसी भी गलती, लापरवाही या उपेक्षा की जिम्मेदारी किसी ने ली? 

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जवाब: किसी ने नहीं ली. बाद में सेना ने जो भी कार्रवाई की, उसके लिए सेना की बहादुरी को सलाम! इस पर कोई बहस हो ही नहीं सकती. हम अपने कश्मीर जा सकते हैं. जो पर्यटक इस विश्वास के साथ कि वे अपने परिवार के साथ खुशी और आनंद से वहां वक्त बिता सकेंगे, बिल्कुल बेफिक्र होकर गए. उन पर अचानक फायरिंग कर दी गई. यह सब उनकी आंखों के सामने हुआ. मां-बहनों का सिंदूर मिटा दिया गया. इस बात के जिम्मेदार कौन हैं? जिस इलाके में यह घटना हुई, वह भौगोलिक दृष्टि से सीमा के काफी भीतर है. आतंकवादी इतने अंदर वैसे पहुंच गए, यही असली सवाल है. इस घटना के तीन महीने बाद भी आतंकवादियों को ढूंढना तो दूर, उनका साधारण ठिकाना भी नहीं मिल पाया है. इन आतंकवादियों की पहले तस्वीरें प्रकाशित हुर्इं, बाद में कहा गया कि वे तस्वीरें सही नहीं हैं. आतंकवादी आए, हमारी आंखों के सामने हमारे लोगों को गोली मारी और चले गए... अरे, आखिर वे गए कहां ?

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सवाल: क्या आप मानते हैं कि यह सरकार की विफलता है?

जवाब: यह एक बड़ी नाकामी है. क्योंकि आपके ही भरोसे नागरिक वहां गए थे ना? कब क्या होगा, यह कहना नामुमकिन था. इसीलिए अब तक लोग कश्मीर जाने से डरते ही थे, लेकिन सरकार ने कहा कि अब कश्मीर में बदलाव आ गया है. आज का कश्मीर अलग है. आज का हिंदुस्थान अलग है. आज की सरकार अलग है. अब कोई कुछ भी करेगा तो हम घुसकर मारेंगे, लेकिन ये काम हमारी सेना कर रही है. उनकी बहादुरी का श्रेय मत लीजिए.

सवाल: मोदी के कार्यकाल में ‘पठानकोट हमला' हुआ. ‘पुलवामा हमला' मोदी के कार्यकाल में हुआ. उस वक्त 40 जवान शहीद हुए थे.

जवाब: हां. आपको याद होगा कि तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने क्या कहा था, लेकिन मलिक ने जो कहा, उस पर कोई बोलने को तैयार नहीं है. उल्टा उन्हें ही अपराधी ठहराया गया. पुलवामा में 40 जवान वैâसे शहीद हुए? कौन जिम्मेदार है? वह राज्यपाल मलिक ने बताया.

मोदी के कार्यकाल में अब ‘पहलगाम हमला' भी हुआ. कश्मीर में लगातार इसी तरह खून-खराबा हो रहा है और हमारी ओर से सिर्फ चुनावी राजनीति की जाती है. वैसे ही एक ‘ऑपरेशन सिंदूर' भी हुआ और इस ‘ऑपरेशन सिंदूर' का राजनीतिक प्रचार अभी भी जारी है. आपने ‘ऑपरेशन सिंदूर' का समर्थन किया है. ऐसा लगा था कि ‘ऑपरेशन सिंदूर' पाकिस्तान को तबाह कर देगा और अब भारतीय सेना पाकिस्तान की कमर तोड़कर ही वापस आएगी. ये सच है, क्योंकि वहां हालात ऐसे ही थे. ऐसी खबरें आई थीं और आ रही थीं. हमारी सेना ने वीरता दिखाई थी.

तो अब क्या? एक पल ऐसा भी आया था कि बस, ‘अब कल हमारा सपना साकार हो रहा है... हम पाकिस्तान को पूरी तरह से तबाह कर रहे हैं, जैसे इंदिरा जी ने बांग्लादेश को पाकिस्तान से तोड़ दिया था, वैसे ही हम पाकिस्तान के टुकड़े करनेवाले हैं, ऐसी स्थिति बन गई थी. कराची पर हमला हुआ, रावलपिंडी, लाहौर पर हमला कर दिया गया, गोदी मीडिया पर इस तरह की सारी खबरें सुनकर और देखकर हम सब स्वाभाविक रूप से खुश थे कि हम पाकिस्तान को सबक सिखा रहे हैं. फिर आखिर ऐसा क्या हुआ, यह अभी भी रहस्य है कि आपने सेना के पैर पीछे खींच दिए? हमारी सेना तो पराक्रम की शर्त लगाकर भीतर घुसी थी. उनकी क्षमताओं को लेकर कोई सपने में भी संदेह नहीं कर सकता तो फिर क्या वजह थी उन्हें रोक दिया गया?

अमेरिकी राष्ट्रपति बार-बार कहते हैं, हिंदुस्तान और पाकिस्तान का युद्ध मैंने रुकवाया... वे कहते रहते हैं कि उन्होंने युद्ध रोक दिया और बहादुर प्रधानमंत्री चुप हैं. अब तक ट्रंप ने ऐसा 27 बार कहा...

 हां. तो हुआ क्या? युद्ध रुका? पिछले कई बरसों से कश्मीर मुद्दा सुलग रहा है, अब पाकिस्तान ने पहलगाम में आतंकी हमला किया. यहां लोगों की जान से खेला जा रहा है. जवानों की जान से खेला जा रहा है और आप सिर्फ अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ ‘डिप्लोमैसी' खेल रहे हैं? वहां जवान मर रहे हैं... वहां किसानों और हमारे देशवासियों के बच्चे फौज में जवान बनकर सेना में जा रहे हैं... ये सब हमारे ही समाज के बच्चे हैं. इनकी जान से खेला जा रहा है और इनके बच्चे वहां दुबई जाकर पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच एंजॉय कर रहे हैं. पाकिस्तानियों के साथ पार्टियों का लुत्फ उठा रहे हैं.

सवाल: आपने देखा होगा कि प्रेसिडेंट ट्रंप के दबाव में ‘ऑपरेशन सिंदूर' वापस ले लिया गया. क्या इसका मतलब यह है कि भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कमजोर पड़ रहा है?

जवाब: दूसरा अर्थ क्या होता है आप ही बताइए. एक महान देश, एक बड़ा देश जिसकी आबादी 140 करोड़ है. वहां, एक दूसरे देश का राष्ट्रपति हम पर दबाव डालकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई रोकने के लिए कहता है...
और वो साफ कह रहे हैं कि व्यापार के लिए युद्ध रोका गया है. किसका व्यापार? एक बार सबको पता चलने दो. यह व्यापार किसके लिए है? किसका व्यापार कर रहे हैं? कैसा व्यापार कर रहे हैं? किसके लिए कर रहे हैं? जनता सब जानती है. क्या आपको लगता है कि व्यापार देश की प्रतिष्ठा से अधिक महत्वपूर्ण है? उन्हें ऐसा ही लगता है, इन सत्ताधारियों को वैसा ही लगता है. उन्होंने चुनावों का व्यापार किया. सत्ता का व्यापार किया, अब देश का भी व्यापार कर रहे हैं. यानी इन्हें व्यापार के सामने देश गौण लगता है.

सवाल: पंडित नेहरू के बाद एक सवाल खड़ा हुआ था. ‘आफ्टर नेहरू हू?' अथवा ‘आफ्टर इंदिरा हू?' अब ‘आफ्टर मोदी हू...?

जवाब: यह भाजपा का सवाल है. देश है... हां, लेकिन मोदी के बाद कौन? यह भाजपा का आंतरिक मुद्दा है. इस पर शायद उन्होंने विचार शुरू भी कर दिया होगा या फिर इसका जवाब भी निकाल लिया होगा. उनके पास जवाब होगा इसलिए शायद मोहन भागवत ने ऐसा कहा होगा, वे बिना मुद्दे के नहीं बोलेंगे.

सवाल: शिवसेनापक्षप्रमुख के तौर पर आपके सामने क्या ऐसा कोई विजन है कि ‘आफ्टर मोदी हू...?'

जवाब: मैं सिर्फ इतना कहूंगा कि हमारे देश में हमारा मजबूत लोकतंत्र है. इस लोकतंत्र के माध्यम से जो पार्टी जीतती है, जिसके पास बहुमत होता है, उसका नेता ही मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बनता है. वह उस पार्टी का नहीं, बल्कि देश और राज्य का प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री होना चाहिए. हमारे यहां यह प्रथा आधी-अधूरी है. बहुमत मिलने के बाद जो नेता प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बनता है, वह उस पार्टी तक ही सीमित रह जाता है. यह गलत है. आप देश के पालक हैं... आप राज्य के पालक हैं... आपने संविधान की शपथ ली है कि सबके साथ समानता से पेश आएंगे. 

मैंने भी मुख्यमंत्री के तौर पर यह शपथ ली थी. मुझे ऐसा लगता है, मैंने वैसा व्यवहार करने की कोशिश की. मैं वैसा व्यवहार कर पाया या नहीं, यह आपको बताना है. अगर मुझे अपनी पार्टी का प्रचार करना होता, तो मैं भी आज की परंपरा के अनुसार करता, लेकिन कुछ प्रथाएं हमें कहीं न कहीं तोड़नी ही चाहिए. मनोहर जोशी जब लोकसभा के अध्यक्ष थे, तब वे पक्ष की सार्वजनिक सभाओं में नहीं आते थे. विधानसभा के अध्यक्ष रहते हुए दत्ताजी नलावडे भी पक्ष के कार्यक्रमों में आकर भाषण नहीं देते थे, लेकिन जब पक्ष की तरफ से कोई प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया जाता था, जहां जनप्रतिनिधियों को सिखाया जाता था कि वैसे बोलना चाहिए, कानून वैसे काम करता है, सदन में वैसा व्यवहार करना चाहिए... वहां वे मार्गदर्शन करने आते थे. 

हमने यह नियम माना है, लेकिन आज के शासक इसे मानने को तैयार नहीं हैं. सच है. अब तो सब कुछ एकतरफा चल रहा है. जो ‘डिस्क्वालिफिकेशन' के मामले हैं, उन्हें किस तरह संभाला जा रहा है, वह देखिए... ‘शेड्यूल टेन' वगैरह उसका वे वैâसे दुरुपयोग कर रहे हैं, यह हम देख ही रहे हैं. ये लोग संविधान को मानने को ही तैयार नहीं हैं. 

सवाल: अब महाराष्ट्र में, खासकर मुंबई और आसपास के उपनगरों में थोपी जा रही त्रिभाषा के खिलाफ महाभारत सा दृश्य दिख रहा है. मराठी माणुस इस मुद्दे पर एकजुट हो रहा है. यह जागृति कैसे आई?

जवाब: मराठी माणुस की एक खासियत है, मराठी माणुस जिद्दीपना नहीं करता है. वह बेवजह विरोध नहीं करता है. मराठी माणुस आमतौर पर शांत रहकर अपने काम में लगा रहता है और किसी पर अन्याय नहीं करता, लेकिन यही मराठी माणुस जब खुद पर अन्याय होता देखता है, तो सहन नहीं करता. अब उसकी सहनशीलता का पैमाना भर चुका है. इसीलिए वह आगबबूला हो गया है, ठीक वैसे ही जैसे संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के दौरान था. कितना सहन करें? उसे लगने लगा है कि हमारी गलती क्या है?

शिवसेना हिंदी भाषा की विरोधी नहीं. शिवसेनाप्रमुख भी यही कहते थे, मेरे दादाजी भी यही कहते थे कि जितनी भाषाएं आपको सीखनी हैं, उतनी भाषाएं सीखो, लेकिन किसी पर जबरदस्ती मत करो. आप खुद राज्यसभा में हिंदी में बोलते हो. मीडिया के सामने भी अगर मुझसे हिंदी में पूछा जाता है तो मैं हिंदी में उत्तर देता हूं. हम हिंदी का विरोध नहीं करते, लेकिन हिंदी की जबरदस्ती नहीं चाहिए. आप लोग वन नेशन-वन इलेक्शन, सब कुछ वनष्ठ वनष्ठ वनष्ठ वनष्ठ करते जा रहे हो. हमारा देश एक संघीय व्यवस्था है. अनेकता में एकता का मतलब क्या? उस अनेकता की जो एक विशेषता या उसकी एकजुटता को खत्म कर जबरदस्ती थोपी जा रही हैष्ठ इसी वजह से मैंने पिछले भाषण में कहा था कि हमें हनुमान चालीसा से विरोध नहीं है, लेकिन हमें हमारा मारुति स्तोत्र क्यों भुलवाया जा रहा है? हम मारुति स्तोत्र पढ़ते हैंष्ठ आप हनुमान चालीसा पढ़िए. भगवान तो एक ही हैं, हनुमान. हम भी उन्हीं को मानते हैं, आप भी उन्हीं को मानते हो.

सवाल: आज इसे वजह बताकर महाराष्ट्र बनाम अन्य राज्यों का संघर्ष भड़काने की कोशिश हो रही है? 

जवाब: यह आग भड़काने की कोशिश बीजेपी कर रही है, लेकिन यह आग भड़क नहीं रही है. इसका कारण यह है कि हमारी भूमिका स्पष्ट है. हम किसी भी भाषा से द्वेष नहीं रखते. जैसे हम दूसरों पर मराठी थोपने की जिद नहीं करते, वैसे ही हम पर दूसरी भाषा थोपने की जिद न हो. यह आपका मुद्दा बिल्कुल सही है. गुजरात में हिंदी की जबरदस्ती नहीं है?

और इससे आगे जाकर कहूं तो शिवसेनाप्रमुख ने शिवसेना स्थापित की, वह यहां के भूमिपुत्रों के लिए. उसके बाद शिवसेनाप्रमुख के भाषणों में कहा गया है कि हम महाराष्ट्र में मराठी हैं, लेकिन जब देश की बात करते हैं तो हम हिंदू हैं. गुजरात में हम गुजराती हैं, लेकिन जब देश की बात करते हैं तो हम हिंदू हैं. बंगाल में हम बंगाली हैं, लेकिन जब देश की बात करते हैं तो हम हिंदू हैं. वैसे हम हर भाषा और हर प्रदेश का सम्मान करते ही हैं. प्रादेशिक अस्मिता का सम्मान और अभिमान होना ही चाहिए, लेकिन जब देश की बात होती है, तब हम हिंदू के रूप में एक साथ हैं. देशभक्त के रूप में एक साथ हैं.

हिंदी की जबरदस्ती के खिलाफ शिवसेना और मनसे उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने मिलकर 5 जुलाई को एक संयुक्त मोर्चा निकालने की घोषणा की. पूरे देश में इसकी चर्चा हुई. इन पूरे 20 सालों के कालखंड के बाद उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे मराठी के मुद्दे पर एक साथ आए. हमारे एक साथ आने से दिक्कत किसे है? 

सवाल: किसी को कोई दिक्कत तो नहीं, लेकिन कुछ लोगों को हो सकती है.

जवाब: तो उनकी प्रॉब्लम वो देखें, हम क्यों सोचें? इस संयुक्त मोर्चे की चर्चा से मराठी अस्मिता की एक लहर उठीष्ठ और इसी लहर ने उद्धव और राज को 20 साल बाद एक साथ ला दिया. हमारे एक साथ आने से केवल मराठी लोगों को ही नहीं, बल्कि अन्य भाषाओं के लोगों को भी खुशी हुई. मैं तो साफ-साफ कहता हूं कि हिंदी भाषी और मुसलमान भाइयों को भी खुशी हुई. वे खुलकर खुशी जाहिर कर रहे हैं. गुजराती और हिंदी आदि अन्य भाषी भी बोले कि आपने अच्छा किया. उनकी यह खुशी मैं देख रहा हूं, लेकिन अगर किसी के पेट में दर्द हुआ भी होगा तो वह पेटदर्द उसका अपना है. उस पर मैं ध्यान नहीं देता.

सवाल: इसमें जलन होने जैसा क्या है? लेकिन फिर भी जलन हुई?

जवाब: मुझे क्या पता. जिनको जलन हुई है, उनसे ही पूछो. मैं तो सिर्फ खुशी देखता हूं. मैं इसमें सिर्फ सकारात्मक पहलू देखता हूं.

सवाल: आप दोनों के एक साथ आने की वजह से सरकार को पीछे हटना पड़ा?

जवाब: हां, बिल्कुल. और उसके बाद इस मोर्चे का रूपांतरण एक विराट और विजयी सभा में हो गया. यह विजयी सभा केवल वरली में ही नहीं, बल्कि पूरे महाराष्ट्र में हुई. 

पूरे देशभर में हुआ. मैंने पहले भी कहा कि यह महाराष्ट्र बनाम अन्य राज्य ऐसा बिल्कुल नहीं था. कई अन्य भाषी लोगों ने भी हमें मैसेज किया या खबर भिजवाई कि ‘बहुत अच्छा किया आपने.'  उन्होंने भी कहा कि ‘आपको ऐसा लड़ना ही चाहिए. मिलकर लड़ाइयां लड़नी चाहिए.'

सवाल: उस मंच पर राज ठाकरे ने कहा कि ‘बालासाहेब का जो सपना था, वह पूरा होगा.' आपने भी बार–बार कहा कि लोगों के मन में जो है, हम उसे पूरा करेंगे. महाराष्ट्र इसका क्या अर्थ समझे?

जवाब: लोगों के मन में जो है, हम उसे पूरा करेंगे. बस यही इसका अर्थ है. 

सवाल: मराठी आदमी का त्रिभाषा के मुद्दे पर एक साथ आना ठीक है. वह होना चाहिए...

जवाब: आना ही चाहिए, आखिर हम किसके लिए लड़ रहे हैं?  मराठी आदमी के लिए ही.

लोग बार-बार कह रहे हैं कि राजनीतिक तौर पर भी एक साथ आना चाहिए...

अब 20 साल बाद हम साथ आए हैं. हर जगह राजनीति ही होनी चाहिए, ऐसा नहीं. लोगों के लिए, महाराष्ट्र के लिएष्ठ, जो-जो करने की जरूरत पड़ेगी, उसके लिए हम तैयार हैं.

सवाल: क्या इस बारे में आपकी राज ठाकरे से चर्चा हुई है? 

जवाब: चर्चा भी होगी. लेकिन उससे पहले, अब 20 साल बाद तो हम एक साथ आए हैं. यह भी कोई छोटी बात नहीं है! यह बहुत बड़ी बात है. इसलिए मैंने उस दिन के भाषण में कहा कि आज हमारे भाषण से ज्यादा हमारा एक साथ दिखना महत्वपूर्ण है.

सवाल: उद्धव साहब, मुंबई समेत 27 महानगरपालिकाओं के चुनाव होने जा रहे हैं. लोग अब भी यह नहीं समझ पा रहे कि चुनाव होंगे भी या नहीं. क्योंकि पिछले साढ़े तीन साल से ज्यादा समय से इन महापालिकाओं को प्रशासक चला रहा है. इस राज्य की राजधानी मुंबई महानगरपालिका में भी प्रशासक का ही राज है. वहां अलग-अलग तरीकों से जबरदस्त लूट चल रही है. जब ये चुनाव होंगे, तब आप उसे किस तरह से लड़ेंगे?

जवाब: चुनाव तो जीतने के मकसद से ही लड़ना होता है और हम भी वैसे ही लड़ेंगे.

सवाल: उसमें महाविकास अघाड़ी है?

जवाब: अब यह तो हर किसी का अपना प्रश्न है. बीच में कांग्रेस से बात हुई थी. तो उनका कहना है कि शायद वे स्थानीय स्तर पर निर्णय लेंगे. ठीक है, वैसा होगा तो वैसे करेंगे.

सवाल: ऐसी चर्चा है कि अगर भविष्य में शिवसेना और मनसे, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे मिलकर कोई राजनीतिक निर्णय लेते हैं, तो महाविकास आघाड़ी का क्या होगा? यह एक सवाल उठ रहा है. मुंबई एक स्वतंत्र विषय है. ठाणे स्वतंत्र विषय है.  

जवाब: देखिए, मैं राजनीतिक दृष्टि से भी मुंबई को महाराष्ट्र से कभी अलग नहीं मानता. क्योंकि मुंबई महाराष्ट्र की राजधानी है. इसलिए मुंबई को अलग और महाराष्ट्र को अलग सोचकर नहीं चल सकता. राज्य में हर महानगरपालिका की अपनी स्वायत्तता है. वहां हर जगह जैसे शिवसेना की यूनिट है, वैसे ही अन्य पार्टियों की भी हैं. उन्हें राजनीतिक रूप से जो उचित लगेगा, वैसा ही करेंगे. लड़ना तो निश्चित ही है. महाराष्ट्र, महाराष्ट्र धर्मष्ठ फिर से कहता हूं, इसका मतलब किसी भी राज्य या भाषा से द्वेष बिल्कुल नहीं है. मुंबई में कई भाषाओं के लोग रहते हैं. कोरोना के समय मुख्यमंत्री रहते हुए क्या किसी के साथ अलग व्यवहार किया था? मैं हिंदुत्ववादी ही हूं, लेकिन क्या मैंने मुसलमानों के साथ अलग व्यवहार किया? कोई सौतेला व्यवहार किया? जब मुंबई महानगरपालिका का कामकाज हमने संभाला, तो सबके घरों तक पानी भी पहुंचाया.

मुंबई महानगरपालिका लंबे समय से शिवसेना के कब्जे में है. शिवसेना या मराठी आदमी का भगवा झंडा इस महानगरपालिका पर फहराया हुआ है. वह भगवा झंडा वैसे ही फहराता रहेगा और इस बार फिर फहरने वाला है.
मुंबईकर के हाथ में मुंबई न रहे, इसके लिए अब जिस तरह से घेराबंदी की जा रही है, जिस तरह की राजनीति की जा रही है, यह उनका बेबस और तुच्छ प्रयास है. जिनकी कोई कीमत नहीं है, ऐसे लोगों के माध्यम से जनता को भड़काने के लिए चुनौती वाली भाषा बोली जा रही है. इससे हमें रत्तीभर फर्क नहीं पड़ता.

यहां के जो मराठी और गैरमराठी भाषी हैं, वे सभी आपस में मिल-जुलकर रहते हैं. शिवसेना जब रक्तदान शिविर आयोजित करती है, तो वह खून किसी विशेष भाषी को देने के लिए नहीं होता. वह सिर्फ मरीज को दिया जाता है, ना कि कोई जाति-धर्म देखकर. जैसा कि मैंने कहा कि कोरोनाकाल में पूरे देश ने, सुप्रीम कोर्ट ने, यहां तक कि न्यूयॉर्क तक ने हमारे मविआ सरकार की सराहना की. तब मैने कहीं भाषाई विवाद किया था? कहीं मैंने धार्मिक विवाद किया था? यहां जो सभी लोग सौहार्द से रहते हैं, वही उन्हें सहन नहीं हो रहा. क्योंकि जब तक सब एकजुट हैं, उनका कुछ नहीं चलेगा. इसीलिए अब यह अत्यंत घिनौना विवाद भड़काने की बेकार कोशिश शुरू हुई है.

सवाल: उद्धव जी, आपको एक सीधा सवाल पूछता हूं, मुंबईकर के संघर्ष की सभी घटनाओं में और आनेवाली महानगरपालिका के संदर्भ में भी, क्या आपकी राज ठाकरे से सीधी चर्चा होने वाली है? 

जवाब: मुझे यही समझ नहीं आता कि अगर मैंने सीधी चर्चा की तो किसी को क्या दिक्कत है?

सवाल: कोई दिक्कत नहीं, लेकिन यह सवाल पूछा जा रहा है?

जवाब: हां, लेकिन मैं अभी भी फोन उठाकर उन्हें कॉल कर सकता हूं. वे मुझे कॉल कर सकते हैं. हम अभी मिल सकते हैं. दिक्कत क्या है? बाकी लोग चोरी-छुपे मिलते हैं. हम चोरी-छुपे मिलनेवालों में से नहीं हैं. साक्षात्कार के शुरुआत में ही कहा था कि ‘ठाकरे ब्रॉन्ड' अलग है. ठाकरे कोई चीज चोरी-छुपे नहीं करते. मिलना हो तो खुलकर मिलेंगे. इसमें किसी को क्या परेशानी?

सवाल: महाराष्ट्र के सवालों के संदर्भ में कभी मुख्यमंत्री फडणवीस से चर्चा होती है?

जवाब: मुलाकात नहीं हुई. शुरुआत में एक बार जाकर मैंने उन्हें गुलदस्ता दिया था. विधानसभा में मुलाकातें होना कोई गलत नहीं.

सवाल: उस पर भी बहुत बड़ी राजनीतिक चर्चा शुरू हो गई. 

जवाब: हां, मिलने गया था. आखिर वो मुख्यमंत्री हैं. मानो या न मानो. वे कुछ अच्छा करें, यही उम्मीद करते हैं. आज भी यही उम्मीद है. उल्टा, मेरा तो कहना है कि अब जो उनके साथी मंत्रियों की आपसी लड़ाइयां, गड़बड़ियां बाहर आ रही हैं, उन्हें उसे रोकना चाहिए. हमारे किसी वक्त के राजनीतिक मित्र होने के नाते यह मैं कह रहा हूं और यह कोई ताना नहीं, बल्कि सलाह है. 

यह पहले ही स्पष्ट कर दूं कि अगर वे नीतिगत चीजों का पालन कर रहे हैं तो जो कुछ उनके आसपास हो रहा है, वह उनकी छवि को कलंकित कर रहा है. कल भी आपने ही उनके मंत्री के सामने पैसों से भरी बैग का वीडियो दिखाया. विधान भवन में ही धक्का-मुक्की हो रही है. कहीं जमीनें कब्जा की जा रही हैं. कहीं इनाम में जमीन दी जा रही है. कहीं तीन हजार करोड़ की बिजली की चोरी सुप्रीम कोर्ट पकड़ रहा है. यह जो सब कुछ हो रहा है, प्रमुख होने के नाते इन सबका ठीकरा आखिरकार देवेंद्र फडणवीस के सिर फूट रहा है. यह भ्रष्टाचार उनके अधीन ही हो रहा है, ऐसा मतलब निकलता है. हम कहते हैं न, दीये के नीचे अंधेरा. वैसा ही यह मामला है.

सवाल: महाराष्ट्र कई क्षेत्रों में आज पिछड़ता दिख रहा है. महाराष्ट्र का भविष्य है क्या?

जवाब: निश्चित ही भविष्य है. ऐसे थककर वैâसे चलेगा? महाराष्ट्र जिस तरह लोकसभा के समय जागा था, उसे वैसे ही फिर से जागना होगा. नहीं तो उस समय हम जो कह रहे थे कि महाराष्ट्र के सारे उद्योग गुजरात ले जाए जा रहे हैं, मराठी माणुस को मुंबई से बाहर निकाला जा रहा है, वही सब चलता रहेगा. अब अगर जागे नहीं, तो हमारी आंखें कभी नहीं खुलेंगी.

सवाल: इस साक्षात्कार के माध्यम से आप महाराष्ट्र की जनता को क्या संदेश देना चाहेंगे?

जवाब: जागो और जागते रहो. किसी पर अन्याय मत करो और अगर तुम पर अन्याय हो, तो उसे सहन भी मत करो. जो शिवसेनाप्रमुख ने कहा था, वही मैं भी कह रहा हूं. उन्होंने जो कहा था वही एक बार फिर दोहराता हूं, मराठा बनाम गैरमराठा, ब्राह्मण बनाम गैरब्राह्मण, छूत बनाम अछूत, घाटी बनाम कोकणी इन सभी भेदभावों को भूलकर एकजुट रहो. नहीं तो जैसा हाल ही में हुआ, मराठा समाज को भड़काया जा रहा है, वही दोबारा होगा.

भाजपा की नीति है कि राज्य के सभी बड़े समाजों को पहले भड़काओ, जब उनमें आग जलने लगे, तो उसके विरुद्ध दूसरे समाज को उकसाओ. जैसा उन्होंने गुजरात में किया, पटेलों को भड़काया और फिर गैरपटेलों को एकजुट कर सत्ता हासिल की. हरियाणा में जाट समाज को भड़काया. उस वक्त लगा कि भाजपा अब गई, क्योंकि जाट अब भड़क चुके हैं. जाट बेचारे तितर-बितर हो गए और जाटों का भय दिखाकर बाकी समाज को एकजुट कर लिया. महाराष्ट्र में उन्होंने 'बंटेंगे तो कटेंगे' वाला खेल खेला. हमें लगा हिंदू-मुस्लिम होगा, लेकिन उन्होंने मराठा बनाम गैरमराठा खेला. मराठा समाज के खिलाफ ओबीसी को तैयार किया. मराठी भाइयों के बीच ही दीवारें खड़ी करना और फिर अपनी रोटी सेंकना है. भाजपा की यह जो राजनीति है, इसे खत्म करो. 

सवाल: जिस तरह की सौदेबाजी वाली राजनीति देश और महाराष्ट्र में चल रही है, उसे देखते हुए क्या आपको यकीन है कि मुंबई महाराष्ट्र में ही रहेगी?

जवाब: किसकी मां ने पैदा किया है, मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करने के लिए, देखेंगे.

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