"दो जज फ़ैसला नहीं कर सकते...", समलैंगिक विवाह का BJP सांसद ने संसद में किया कड़ा विरोध

केंद्र अतीत में समलैंगिक विवाह का विरोध करता रहा है, और कह चुका है कि अदालतों को कानून बनाने की प्रक्रिया से दूर रहना चाहिए, और कोर्ट को यह काम संसद पर छोड़ देना चाहिए.

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समलैंगिक विवाह पर जवाब दाखिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को 6 जनवरी तक का वक्त दिया है...
नई दिल्ली:

समलैंगिक विवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र अपना रुख कुछ दिन बाद स्पष्ट करेगा, लेकिन केंद्र में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी (BJP) के एक सांसद ने संसद में सोमवार को समलैंगिक विवाह का कड़ा विरोध किया और कहा, "इस तरह के सामाजिक अहम मुद्दे पर दो जज बैठकर फ़ैसला नहीं कर सकते..."

BJP के राज्यसभा सदस्य सुशील मोदी ने शून्यकाल में इस विषय को उठाया और कहा कि 'कुछ वामपंथी-उदार कार्यकर्ता' प्रयास कर रहे हैं कि समलैंगिक विवाह को कानूनी संरक्षण मिल जाए. बिहार से सांसद सुशील मोदी ने इसे अस्वीकार्य करार देते हुए कहा, "न्यायपालिका को ऐसा कोई निर्णय नहीं देना चाहिए, जो देश की सांस्कृतिक मूल्यों के विरुद्ध हो..."

बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री ने कहा, "मैं समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध करता हूं... भारत में, न समलैंगिक विवाह को मान्यता है, न यह मुस्लिम पर्सनल लॉ जैसे किसी भी असंहिताबद्ध पर्सनल लॉ या संहिताबद्ध संवैधानिक कानूनों में स्वीकार्य है... समलैंगिक विवाह देश में मौजूद अलग-अलग पर्सनल लॉ के बीच बने नाज़ुक संतुलन को पूरी तरह तबाह कर देंगे..."

सुशील मोदी ने केंद्र सरकार से कोर्ट में भी समलैंगिक विवाह के विरुद्ध कड़ाई से तर्क रखने का आग्रह किया.

BJP सांसद ने कहा, "इतने अहम सामाजिक मुद्दे पर दो जज बैठकर फ़ैसला नहीं कर सकते... इस पर संसद में भी बहस होनी चाहिए, और व्यापक तौर पर समाज में भी..."

वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने बेहद अहम फ़ैसले में समलैंगिक यौन संबंधों पर औपनिवेशिक काल से लागू पाबंदी को खत्म कर दिया था, और समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटा दिया था. LGBT कार्यकर्ताओं का कहना है कि वे अब भी समलैंगिक विवाह को कानूनी संरक्षण दिए जाने से वंचित हैं, जो अन्य लोगों के लिए बुनियादी हक है.

चार समलैंगिक जोड़ों ने सुप्रीम कोर्ट से समलैंगिक विवाह को लेकर मौजूदा कानूनों को नए सिरे से परिभाषित करने की अपील की है, ताकि समलैंगिक विवाह को अनुमति मिल सके. यह जानकारी समाचार एजेंसी रॉयटर ने कोर्ट में अतीत में दाखिल की गई फाइलिंग का हवाला देते हुए दी.

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केंद्र अतीत में समलैंगिक विवाह का विरोध करता रहा है, और कह चुका है कि अदालतों को कानून बनाने की प्रक्रिया से दूर रहना चाहिए, और कोर्ट को यह काम संसद पर छोड़ देना चाहिए.

अदालत में पिछले साल की गई एक फाइलिंग में कानून मंत्रालय ने कहा था कि विवाह "वर्षों पुरानी परम्पराओं (और) रीति-रिवाज़ों" पर निर्भर करता है और समान-लिंग वाले व्यक्तियों के बीच यौन संबंध की "पति, पत्नी और बच्चों की भारतीय परिवार इकाई अवधारणा के साथ तुलना नहीं की जा सकती..." मंत्रालय ने फाइलिंग में कहा था, "भारत में, विवाह "जैविक रूप से एक पुरुष और जैविक रूप से एक महिला के बीच संपूर्ण संस्था है..."

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सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को अपने जवाब दाखिल करने के लिए 6 जनवरी तक का वक्त दिया है.

इन जोड़ों का समर्थन नामी वकील कर रहे हैं, जिनमें एक पूर्व अटॉर्नी जनरल तथा सौरभ किरपाल नामक वकील शामिल हैं, जिन्होंने NDTV को एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में बताया था कि उनका मानना है कि राज्य जज के तौर पर उनके प्रमोशन में उनके सेक्सुअल ओरिएन्टेशन की वजह से देरी हुई.

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