भारतीय रेल ने रचा नया इतिहास, पहले केबल ब्रिज का सफल टेस्ट, रेल मंत्री ने शेयर किया Video

यह चेनाब ब्रिज के बाद भारत का दूसरा सबसे ऊंचा रेलवे पुल है, जो नदी तल से 359 मीटर की ऊंचाई पर दुनिया का सबसे ऊंचा पुल है. दोनों पुल जम्मू और कश्मीर में कनेक्टिविटी बढ़ाने के उद्देश्य से महत्वाकांक्षी यूएसबीआरएल परियोजना का हिस्सा हैं.

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नई दिल्ली:

भारतीय रेलवे ने इतिहास रचते हुए विश्व की पहली केबल ब्रिज का सफल टेस्ट किया है. इस सफल टेस्ट के साथ भारतीय रेलवे ने अनोखा रिकॉर्ड भी कायम कर लिया है. जम्मू कश्मीर के अंजी खंड पर बने देश के पहले केवल स्टे ब्रिज का लोड टेस्ट किया गया. यह उपलब्धि जम्मू-कश्मीर में रेलवे कनेक्टिविटी को बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम है, जिसके जनवरी 2025 में शुरू होने की उम्मीद है.

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर ट्रायल रन का एक वीडियो शेयर किया, जिसमें इस महत्वपूर्ण परियोजना की प्रगति पर प्रकाश डाला गया.

रेल मंत्रालय के अनुसार, "उधमपुर-श्रीनगर-बारामुल्ला रेलवे लिंक (यूएसबीआरएल) परियोजना के एक प्रमुख घटक अंजी खाद पुल पर ट्रायल रन सफलतापूर्वक पूरा हो गया है."

पिछले महीने बनकर तैयार हुआ अंजी खाद पुल इंजीनियरिंग का एक चमत्कार है, जिसमें एक ही सपोर्ट टावर स्ट्रक्चर नदी तल से 331 मीटर ऊपर है. यह अपने लेटरल और सेंट्रल स्पैन पर 48 केबलों द्वारा सपोर्टेड है और कुल लंबाई में 473.25 मीटर है. यह लंबा ब्रिज 120 मीटर की दूरी पर है, जबकि केंद्रीय तटबंध 94.25 मीटर तक फैला है.

यह चेनाब ब्रिज के बाद भारत का दूसरा सबसे ऊंचा रेलवे पुल है, जो नदी तल से 359 मीटर की ऊंचाई पर दुनिया का सबसे ऊंचा पुल है. दोनों पुल जम्मू और कश्मीर में कनेक्टिविटी बढ़ाने के उद्देश्य से महत्वाकांक्षी यूएसबीआरएल परियोजना का हिस्सा हैं. यूएसबीआरएल परियोजना 272 किलोमीटर तक फैली हुई है, जिसमें से 255 किलोमीटर पहले ही पूरी हो चुकी है.

क्या है खासियत?

  • कटरा और रियासी के बीच शेष भाग इस महीने के अंत तक पूरा होने की उम्मीद है. उधमपुर-श्रीनगर-बारामुल्ला रेल लिंक (यूएसबीआरएल) 272 किलोमीटर लंबी रेलवे परियोजना है जो जम्मू और कश्मीर को शेष भारत से जोड़ती है.
  • इसे भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे चुनौतीपूर्ण रेलवे परियोजनाओं में से एक माना जाता है. इस परियोजना से श्रीनगर और जम्मू के बीच यात्रा का समय छह घंटे से घटकर 3.5 घंटे रह जाएगा.
  • रेलवे परियोजनाओं का निर्माण अत्यधिक तापमान, बड़े भूकंप क्षेत्रों और दुर्गम इलाकों जैसी प्राकृतिक चुनौतियों पर काबू पाने के बाद किया गया है.
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनवरी 2025 में कश्मीर और दिल्ली के बीच यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए तेज संपर्क प्रदान करने वाली वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाएंगे.

बहुत मजबूत है ये ब्रिज

इस पुल के ऊपर एक बार में 32 रैक वाली मालगाड़ी और 57 डंपरों को पुल पर चढ़ाकर इसकी मजबूती जांची गई . पुल की लंबाई 473.25 मीटर और चौड़ाई 15 मीटर है. पुल के सेंटर में 193 मीटर ऊंचा एकल तोरण बना है. रेलवे की महत्वपूर्ण कटरा-बनिहाल खेलखंड पर  कटरा से रियासी स्टेशन के बीच अंजी खड्ड पर बने देश के पहले केवल स्टे ब्रिज का आज सफल लोड टेस्ट किया गया.

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रेलवे से मिली जानकारी के अनुसार  संगलदान से रियासी स्टेशन तक इंजन और मालगाड़ी चलाने के पहले ही कई सफल ट्रायल हो चुके हैं. जबकि कटरा-रियासी रेलखंड पर 25 दिसंबर को पहली बार इंजन और फिर लोडेड मालगाड़ी चलाने का ट्रायल किया गया था. जिसमें पहले तो कटड़ा से इंजन 20 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से रियासी स्टेशन पहुंचा और फिर 30 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से वापस कटड़ा लौटा.

आज उसके बाद इस रेलखंड के ट्रैक की दबाव क्षमता की जांच के लिए लोडेड 32 रैक वाली मालगाड़ी कटड़ा से रियासी स्टेशन पहुंची. जिसमें कंकर-बजरी लोड है. इसका कुल वजन 3300 टन के करीब है. मालगाड़ी के साथ दो इंजन और ब्रेक के दो विशेष कोच भी जुड़े हैं. दूसरे दिन भी मालगाड़ी रियासी स्टेशन पर ही खड़ी रखी गई.

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27 दिसंबर को अंजी खड्ड पर बने देश के पहले केवल स्टे ब्रिज का लोड टेस्ट करने के लिए मालगाड़ी रियासी स्टेशन से चली और उसको केबल स्टे ब्रिज पर जाकर खड़ा कर दिया गया. रेलवे लाइन के साइड में बने 15 फीट चौड़ी जगह पर डंपरों की कतार पहुंचने लगी. एक-एक कर 57 डंपरों को भी पुल पर खड़ा कर दिया गया. प्रत्येक डंपर का वजन नौ टन था. प्रत्येक डंपर का वजन एक समान करने के लिए कुछ डंपरों में कुछ माल लादा गया था.

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इंजीनियरों तथा विशेषज्ञों की नजरें पुल और केबल की जांच पर टिकी रही. लोड टेस्ट के पहले चरण को पूरा कर मालगाड़ी वापस रियासी लौट गई. रेलवे ने बताया  है कि शनिवार को दूसरे चरण में फिर से इसी तरह का लोड टेस्ट किया जाएगा.

अंजी पुल का निर्माण 2008 में शुरू हुआ था. निर्माण में आ रही दिक्कतों को देखते हुए 2012 में निर्माण कर रही कंपनी काम को बीच में छोड़कर लौट गई थी. जटिल भौगोलिक संरचना को देखते हुए आर्च के डिजाइन को रद कर जहां केबल स्टे ब्रिज बनाने का विचार किया गया.

विदेशी निर्माण कंपनी एमएस इटालफेर के डिजाइनर ने अंजी खड्ड पर केवल स्टे ब्रिज बनाने का सुझाव दिया. 2015 में श्रीधरन कमेटी ने इस साइट का दौरा कर जायजा लिया और फिर उनके सुझाव के बाद ही नए सिरे से केबल स्टे ब्रिज के निर्माण का निर्णय लिया गया गया. 2017 में अंजी खड्ड पर केबल स्टे ब्रिज का निर्माण कार्य शुरू हुआ. जिसका जिम्मा हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी को दिया गया.

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