अलीपुरद्वार सीट को लेकर BJP की आंतरिक कलह, क्या TMC को मिल सकता है फायदा?

भाजपा नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लागू किये जाने को भुनाने की तैयारी में नजर आ रही है. भाजपा अब भी सीएए को बाजी पलटने वाला मुद्दा मान रही है.

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अलीपुरद्वार:

अब तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का मजबूत गढ़ माने जाने वाले अलीपुरद्वार लोकसभा निवार्चन क्षेत्र को लेकर पार्टी की अंदरूनी कलह का लाभ उठाकर तृणमूल कांग्रेस इस सीट पर एक दशक बाद अपनी दूसरी जीत दर्ज करने की जुगत में दिख रही है.

भाजपा नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लागू किये जाने को भुनाने की तैयारी में नजर आ रही है. भाजपा अब भी सीएए को बाजी पलटने वाला मुद्दा मान रही है.

तृणमूल कांग्रेस एक दशक के बाद इस निर्वाचन क्षेत्र में अपनी जीत हासिल करने के लिए भाजपा के भीतर आतंरिक कलह को अवसर के रूप में देख रही है.

नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लागू करने और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) द्वारा स्थानीय आदिवासियों के बीच जमीनी स्तर पर किए गए काम के वादे पर सवार होकर भाजपा ने अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस सीट पर न केवल 2019 में जीत दर्ज की बल्कि 2021 में क्षेत्र के सभी सात विधानसभा क्षेत्रों पर कब्जा जमाया. पार्टी ने निकटवर्ती जिलों की दो विधानसभा सीट भी जीती थीं.

हालांकि, इस बीच बहुत कुछ बदल गया लगता है क्योंकि भाजपा की स्थानीय इकाई के भीतर आंतरिक कलह तब तेज हो गई जब पार्टी ने अपने मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री जॉन बारला की जगह स्थानीय विधायक और पश्चिम बंगाल विधानसभा में मुख्य सचेतक मनोज तिग्गा को इस सीट से उतारने का फैसला किया.

स्थानीय जनजातियों पर प्रभाव रखने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के नेता बारला टिकट कटने के बाद से चुनाव अभियान से दूरी बनाए हुए हैं. बारला ने आरोप लगाया है कि उन्हें चुनाव से बाहर रखने के लिए साजिश रची गई है.

भाजपा ने 2019 में 2.5 लाख वोटों के रिकॉर्ड अंतर से यह सीट जीती थी. पार्टी ने उस साल उत्तर बंगाल की आठ लोकसभा सीट में से सात पर जीत हासिल की थी.

तिग्गा ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, ‘‘इस बार भी हम रिकॉर्ड अंतर से सीट जीतेंगे. यहां के लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके द्वारा किए गए विकास कार्यों के लिए वोट करते हैं. सीएए लागू होने से भी क्षेत्र में सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.''

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अलीपुरद्वार में चुनाव के नतीजों में अल्पसंख्यकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जहां स्थानीय आबादी में 65 फीसदी हिंदू हैं, जबकि 19 फीसदी ईसाई हैं, 11 फीसदी मुस्लिम और तीन फीसदी बौद्ध हैं.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने 2019 में भाजपा की जीत का श्रेय हिंदुओं और ईसाइयों, दोनों के बीच बारला की पैठ को दिया. इस बार उनके मैदान से बाहर होने पर पर्यवेक्षकों का मानना है कि बारला के समर्थकों के दूरी बनाने से भाजपा की संभावनाएं प्रभावित हो सकती हैं.

टीएमसी चुनावी माहौल को अपने पक्ष में करने के लिए अपने जिला अध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य प्रकाश चिक बड़ाइक की लोकप्रियता पर भरोसा कर रही है.

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बड़ाइक ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, ‘‘हमें यह सीट जीतने का भरोसा है क्योंकि राज्य सरकार द्वारा शुरू किए गए विकास कार्यों का लाभ यहां के लोगों तक पहुंचा है.''

टीएमसी नेता सौरव चक्रवर्ती ने दावा किया, ‘‘भाजपा ने पिछली बार एनआरसी और सीएए के वादे के भरोसे लोगों का विश्वास अर्जित किया था. असम में एनआरसी के अनुभव ने अब उनका भ्रम तोड़ दिया है. उन्हें यह भी एहसास हो गया है कि सीएए के नियम एक दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं हैं.''

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एक समय जलपाईगुड़ी-अलीपुरद्वार क्षेत्र वाम मोर्चे की सहयोगी रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) का गढ़ हुआ करता था.

कांग्रेस समर्थित आरएसपी उम्मीदवार मिली ओरांव ने कहा, ‘‘मुझे अपनी पार्टी का गढ़ फिर से हासिल करने का भरोसा है. लोगों ने वामपंथियों और अन्य के बीच के अंतर को देख लिया है.'

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)