"दोनों के बीच भारी कड़वाहट": रतन टाटा से रिश्तों को लेकर बोले साइरस मिस्त्री के सहयोगी

मुकुंद राजन ने कहा कि 54 वर्षीय साइरस मिस्त्री अपने गुरु रतन टाटा के साथ संबंधों में खटास आने पर बहुत नाखुश थे

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उद्योगपति रतन टाटा और साइरस मिस्त्री (फाइल फोटो).

रविवार को एक कार दुर्घटना में निधन होने के बाद साइरस मिस्त्री (Cyrus Mistry) का मंगलवार को मुंबई में अंतिम संस्कार किया गया. उनके परिवार के अलावा उद्योगपति, राजनेता और पारसी समुदाय के लोग उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए. टाटा संस के 54 वर्षीय पूर्व चेयरमैन की अहमदाबाद-मुंबई राजमार्ग पर दुर्घटना में मौत ने देश के कॉर्पोरेट जगत को झकझोर कर रख दिया है. मुकुंद राजन, जो कि साइरस मिस्त्री के मातहत टाटा के ब्रांड मैनेजर थे, ने एक खास इंटरव्यू में कहा कि रतन टाटा (Ratan Tata) और साइरस मिस्त्री के बीच अंत तक बहुत कड़वाहट बनी रही और उनके बीच कभी फिर से मेलजोल नहीं हो सका.

राजन ने कहा कि, ''टाटा मीडिया और अदालत में लगाए गए कई आरोपों को लेकर बेहद आहत थे. जाहिर सी बात है कि दोनों लोगों के बीच काफी कड़वाहट थी. ऐसी कोई बात नहीं थी कि जिससे कभी सुलह संभव हो पाती. लोगों को अतीत को पीछे छोड़कर बस आगे की ओर देखने की जरूरत है. मुझे लगता है कि दोनों व्यक्ति टाटा के लिए सर्वश्रेष्ठ चाहते थे.''

मुकुंद राजन के अनुसार, जिस तरह से साइरस मिस्त्री की उनके गुरु के साथ उनके संबंधों में खटास आई, उससे वह बहुत नाखुश थे. 

84 वर्षीय रतन टाटा ने साइरस मिस्त्री को अपने अधीन कर लिया था, लेकिन बोर्डरूम तख्तापलट में साइरस मिस्त्री के अचानक बर्खास्त होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में एक अनुचित कानूनी लड़ाई शुरू हो गई थी.

राजन ने बताया कि, "वह (साइरस मिस्त्री) मानते थे कि शायद लोगों ने यह बताने में एक शातिराना भूमिका निभाई थी कि वह क्या चाहते हैं और वह टाटा के लिए किस तरह का भविष्य बनाना चाहते हैं. उन्होंने महसूस किया कि रतन टाटा को शायद कई मौकों पर गलत सूचना दी गई थी." 

उन्होंने साइरस मिस्त्री को ऐसा व्यक्ति बताया जिनके दिल में हमेशा ग्रुप के सर्वोत्तम हित थे, जहां जरूरत हो वहां वे क्रेडिट देना चाहते थे. उन्होंने कभी भी खुद के लिए क्रेडिट लेने की कोशिश नहीं की.

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उन्होंने कहा कि "वह टाटा के करीबी ग्रुप के लोगों के सुझावों से चकित थे. लोगों ने शायद महसूस किया कि वे समूह को एक अलग दिशा में ले जाने की कोशिश कर रहे थे, खुद श्रेय ले रहे थे और ग्रुप के मूल्यों को इस तरह से बदल रहे थे कि टाटा ने इसे मंजूरी नहीं दी होगी. मुझे लगता है कि इससे ग्रुप में कई मुद्दे उठे और अंततः लंबे अदालती मामलों के बाद वे अलग हो गए."

राजन ने कहा कि अदालती मामले भी एक कहानी कहते हैं. मिस्त्री अपना नाम साफ़ करने और यह दिखाने के लिए बहुत उत्सुक थे कि उन्होंने जो कुछ भी किया वह टाटा के लिए था. राजन ने कहा, "अंत में वह यह स्थापित करने के लिए लड़ रहे थे कि उनके पास एक ऐसा दृष्टिकोण है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है." उनके लिए कानूनी लड़ाई उनके सम्मान की रक्षा के लिए अधिक थी.

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राजन ने कहा कि मिस्त्री कई मायनों में रतन टाटा से "बहुत मिलते-जुलते" थे. दोनों ही नंबर के मामले में शानदार थे और दोनों के पास अविश्वसनीय वित्तीय कुशाग्रता थी.

साइरस मिस्त्री को 2012 में टाटा संस का चेयरमेन बनाया गया था. सन 2016  में उनको हटाए जाने के बाद भारत के इस शीर्ष कॉर्पोरेट घराने के दो महारथियों के बीच में बोर्डरूम और कोर्ट रूम की लंबी लड़ाई शुरू हो गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल फैसला सुनाया था कि मिस्त्री की बर्खास्तगी कानूनी थी.

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