'द सैटेनिक वर्सेज' : सलमान रुश्दी को वो किताब जिसके लिए उन्हें अपनी एक आंख गवानी पड़ी

दिल्ली हाई कोर्ट के एक फैसले के बाद भारतीय मूल के लेखक सलमान रुश्दी की विवादित किताब 'द सैटेनिक वर्सेज' के आयात का रास्ता साफ हो गया है. इस किताब पर 1988 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने पाबंदी लगा दी थी. इसी किताब को लेकर रुश्दी की हत्या पर इनाम का फतवा जारी किया गया था.

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नई दिल्ली:

दिल्ली हाई कोर्ट के पांच नवंबर के एक फैसले के बाद से सलमान रूश्दी की विवादास्पद किताब 'द सैटेनिक वर्सेज' की भारत में बिक्री का रास्ता साफ कर दिया. हाई कोर्ट में पांच नवंबर को भारत में 'द सैटेनिक वर्सेज' के आयात प्रतिबंध को चुनौती देने वाले एक मामले की सुनवाई हुई.इस दौरान केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि 'द सैटेनिक वर्सेज' के आयात पर प्रतिबंध लगाने वाला आदेश उसे मिल नहीं रहा है.इसलिए उसे कोर्ट में पेश नहीं किया जा सका. इस जवाब के बाद अदालत ने इस विवादास्पद किताब के आयात पर लगी पाबंदी को हटा लिया. इस याचिका को 2019 में संदीपन खान नाम के एक व्यक्ति ने दायर किया था.इस फैसले के बाद किताबों की दुकान की चेन बाहरी संस ने 23 दिसंबर को एक ट्वीट में जानकारी दी कि 'द सैटेनिक वर्सेज' उनके यहां उपलब्ध है. अदालत के इस फैसले के बाद 'द सैटेनिक वर्सेज' से जुड़ा घटनाक्रम एक बार फिर ताजा हो गया.

सलमान रुश्दी पर अमेरिका में हमला

भारतीय मूल के ब्रिटिश लेखक सलमान रुश्दी पर न्यूयॉर्क में एक कार्यक्रम में 12 अगस्त 2022 को चाकू से हमला हुआ था. इस हमले का आरोप अमेरिका के न्यू जर्सी निवासी 26 साल के हादी मतर पर लगा था.हमलावर ने रुश्दी की गर्दन और पेट समेत 12 जगह घाव किए थे. इस हमले में रुश्दी की दाहिनी आंख चली गई थी. मतर पर रुश्दी की हत्या को लेकर जारी फतवे पर अमल करने का आरोप लगाया गया है. रुश्दी की हत्या का फतवा इसी 'द सैटेनिक वर्सेज' के प्रकाशन के बाद जारी किया गया था. 

अगस्त 2022 में अमेरिका में सलमान रुश्दी पर हमला हुआ था, इसमें उनकी दाहिनी आंख खराब हो गई थी.

सलमान रुश्दी का जन्म आज के मुंबई में उसी साल हुआ था, जिस साल देश को आजादी मिली थी. भारत में शुरुआती पढ़ाई-लिखाई के बाद रुश्दी आगे की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए थे. उन्होंने कैंब्रिज के किंग्स कॉलेज से इतिहास में ऑनर्स की डिग्री ली. 'ग्राइमस' उनकी पहली किताब थी, लेकिन रुश्दी 1981 में आई अपनी दूसरी किताब 'मिडनाइट्स चिल्ड्रन' के बाद मशहूर हुए. अकेले ब्रिटेन में इस किताब की 10 लाख से अधिक प्रतियां बिकी थीं. इसी किताब के लिए रुश्दी को 1981 का बुकर पुरस्कार मिला था.'द सैटेनिक वर्सेज' उनकी चौथी किताब थी. यह 1988 में आई थी. इसे प्रकाशित किया था पेंगुइन वाइकिंग ने. 'द सैटेनिक वर्सेज' में इस्लाम और उसके पैगंबर मोहम्मद के बारे में बातें कहीं गई थीं. किताब के कुछ हिस्से को ईशनिंदा के समान माना गया. दुनिया भर में 'द सैटेनिक वर्सेज' की पांच लाख से अधिक प्रतियां बिकीं. 

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'द सैटेनिक वर्सेज' पर सबसे पहले कहां लगी पाबंदी

देखते ही देखते 'द सैटेनिक वर्सेज'को कई मुस्लिम-बहुल देशों में प्रतिबंधित कर दिया गया था.इस किताब की वजह से ही ईरान से ब्रिटेन से अपने राजनयिक संबंध खत्म कर लिए थे. उस समय के ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खुमैनी ने 1989 में एक फतवा जारी कर रुश्दी की हत्या करने पर 30 लाख डॉलर का इनाम रखा था.यह फतवा कभी भी रद्द नहीं किया गया.रुश्दी को जान से मारने की धमकियां दी जा रही थीं.इससे रुश्दी काफी डर गए थे.उन्होंने करीब नौ साल का समय गुमनामी में रहते हुए गुजारा था.रुश्दी ने ईशनिंदा के सभी आरोपों को खारिज किया था.इसके साथ ही उन्होंने मुसलमानों की भावनाएं आहत करने पर संवेदना जताते हुए माफी मांग ली थी. 

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दिल्ली हाई कोर्ट ने सलमान रुश्दी की किताब 'द सैटेनिक वर्सेज' के आयात पर लगी पाबंदी को हटा दिया है.

'द सैटेनिक वर्सेज' पर पाबंदी लगाने वाला भारत पहला देश था. इसके प्रकाशन के एक महीने के अंदर ही उस पर भारत ने उस पर पाबंदी लगा दी थी. उस समय राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे. किताब के आयात पर पाबंदी तो थी, लेकिन उसे रखने पर कोई पाबंदी नहीं थी.दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले से 'द सैटेनिक वर्सेज' के आयात पर लगी पाबंदी ही हटाई है.

भारत में हिंसक प्रदर्शन

'द सैटेनिक वर्सेज' को लेकर काफी हिंसक प्रदर्शन हुए थे.कुछ लोग मुंबई में ब्रिटेन उप उच्चायोग कार्यालय के बाहर प्रदर्शन करना चाहते थे.पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की.इस दौरान हुई गोलीबारी में 12 लोग मारे गए और 40 से अधिक लोग घायल हो गए थे. उग्र भीड़ ने पुलिस की गाड़ियों और पुलिस स्टेशन में आग लगा दी थी. इसी तरह के एक उग्र प्रदर्शन में जम्मू कश्मीर के श्रीनगर में भी तीन लोग पुलिस गोलीबारी में मारे गए थे.

कितने धार्मिक हैं सलमान रुश्दी

'द सैटेनिक वर्सेज'के प्रकाशन के बाद सलमान रुश्दी ने बीबीसी से बात की थी. इसमें उनसे धर्म में विश्वास को लेकर सवाल किया गया था. इस पर उन्होंने कहा था कि यह मेरे लिए 'मिडनाइट चिल्ड्रेन' के एक किरदार दादा जी की तरह है.उन्होंने कहा था, "मेरे लिए भगवान में विश्वास कुछ उसी तरह है जैसे कि 'मिडनाइट चिल्ड्रेन'का एक पात्र जो कि दादा जी हैं, उनके लिए था. वे ईश्वर के अस्तित्व में अपना विश्वास खो रहे थे और उनका कहना था कि उनके अंदर जहां भगवान हुआ करते थे वहां एक छेद हो गया है. मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है. मैं पहले धार्मिक हुआ करता था. जब मैं छोटा था. लेकिन मेरे मन में कई सवाल भी उठते रहते थे. मैं ये बिल्कुल भी नहीं कह सकता हूं कि धर्म सच में मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता है, लेकिन दूसरी ओर मैं धार्मिक बिल्कुल भी नहीं हूं."

Photo Credit: Bahrisons Bookseller

'द सैटनिक वर्सेज' में दो मुख्य किरदार हैं, जिबरील फरिश्ता और सलादीन चमचा. ये दोनों भारतीय मुस्लिम पृष्ठभूमि से आते हैं.इनको लेकर रुश्दी ने कहा था,"फरिश्ता दक्षिण भारतीय फिल्मों में धार्मिक किरदार निभाने वाले कैरेक्टर पर आधारित है. वो फिल्मों में भगवान का किरदार निभाते हैं. सलादीन चमचा का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है. वो ब्रिटेन में आ कर गिरता है. उसे अप्रवासी के तौर पर बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है. '' इन दोनों किरदारों के उनके अपने अप्रवासी के दौर से मिलता है, इस सवाल पर रुश्दी ने कहा था कि निश्चित रूप से, उनके चरित्र का चित्रण मेरे अपने अनुभव से मैंने लिया है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि वो पूरी तरह से मेरा किरदार ही है. वो ऐसा किरदार है जो जहां रहे वहीं से जुड़ा हुआ महसूस करता है, चाहे बंबई हो या लंदन, लेकिन साथ ही वो कहीं का रहने वाला नहीं है. 

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