कर्नाटक, गुजरात और राजस्थान के कई हिस्सों में पारा 40 डिग्री सेल्सियस के पार

आईएमडी के एक अधिकारी ने कहा कि बुधवार को इन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान सामान्य से दो से तीन डिग्री अधिक था, लेकिन अभी लू चलने की स्थिति नहीं बनी है.

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नई दिल्ली:

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने कर्नाटक, गुजरात और राजस्थान के कई हिस्सों में 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान दर्ज किये जाने के मद्देनजर इन स्थानों पर अगले दो दिनों में लू चलने के हालात की चेतावनी दी है. गुजरात के भुज में पारा 41.6 डिग्री सेल्सियस, राजकोट में 41.1 डिग्री सेल्सियस, अकोला में 41.5 डिग्री सेल्सियस और वाशिम में 41.4 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया.

आईएमडी के एक अधिकारी ने कहा कि बुधवार को इन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान सामान्य से दो से तीन डिग्री अधिक था, लेकिन अभी लू चलने की स्थिति नहीं बनी है.

लू तब चलती है जब किसी केंद्र का अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों में कम से कम 40 डिग्री सेल्सियस, तटीय क्षेत्रों में 37 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, जो सामान्य से कम से कम साढ़े चार डिग्री अधिक रहता है.

आईएमडी ने एक बयान में कहा कि 27-29 मार्च के दौरान उत्तरी आंतरिक कर्नाटक के अलग-अलग हिस्सों में, 27-28 मार्च को गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ में और 27 मार्च को दक्षिण-पश्चिम राजस्थान में लू की स्थिति उत्पन्न होने की आशंका है.

इसमें यह भी कहा गया है कि 27-29 मार्च के दौरान गुजरात, मराठवाड़ा और मध्य महाराष्ट्र के अलग-अलग हिस्सों में रात का मौसम गर्म (सामान्य से अधिक न्यूनतम तापमान) रहने की संभावना है.

कोंकड़ और गोवा में 27-28 मार्च को और 27-31 मार्च के दौरान रायलसीमा, तमिलनाडु, पुडुचेरी, कराईकल, केरल और माहे में मौसम के गर्म और आर्द्र रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है.

आईएमडी ने पहले अनुमान लगाया था कि भारत में इस साल अधिक गर्मी और अधिक लू वाले दिनों का अनुभव होगा, क्योंकि अल नीनो की स्थिति के कम से कम मई तक बरकरार रहने की संभावना है.

मार्च से मई के दौरान उत्तर-पूर्व, पश्चिमी हिमालय क्षेत्र, दक्षिण-पश्चिमी प्रायद्वीप और पश्चिमी तट को छोड़कर देश के अधिकांश हिस्सों में लू चलने के दिनों की संख्या सामान्य से अधिक रहने की संभावना है.

अल नीनो मध्य का आशय पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का समय-समय पर गर्म होने से है और यह भौगोलिक घटना औसतन हर दो से सात साल में होती है जिसका असर नौ से 12 महीने तक रहता है.

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इस भौगोलिक घटना का संबंध हॉर्न ऑफ अफ्रीका और दक्षिणी संयुक्त राज्य अमेरिका में बढ़ी हुई वर्षा और दक्षिण पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी अफ़्रीका में असामान्य रूप से शुष्क और गर्म स्थितियों से है.

वर्ष 1970 के बाद से तापमान के आंकड़ों के विश्लेषण के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण मार्च के अंत में पारा 40 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की संभावना कई गुना बढ़ गई है.

अमेरिका स्थित ‘क्लाइमेट सेंट्रल' के शोधकर्ताओं (वैज्ञानिकों का एक स्वतंत्र समूह)ने वैश्विक स्तर पर तापमान में बढ़ोतरी के रुझान के संदर्भ में भारत की स्थिति के लिहाज से विश्लेषण किया है. 1970 के दशक की शुरुआत की जलवायु के दौरान मार्च के अंत में 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर के तापमान का सामना बहुत कम करना पड़ता था. तब महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और बिहार में मार्च के अंत में इतना अधिक तापमान दर्ज किये जाने की संभावना बमुश्किल पांच प्रतिशत से कुछ अधिक थी.

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लेकिन विश्लेषण से पता चला कि अब नौ राज्यों -महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, बिहार, राजस्थान, गुजरात, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में तामपान के 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने की संभावना का प्रतिशत काफी बढ़ गया है. महाराष्ट्र में तापमान के 40 डिग्री सेल्सियस पहुंचने की संभावना 14 प्रतिशत है जो सर्वाधिक है.
 

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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