दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) से एक याचिकाकर्ता (Petitioner) ने कहा है कि तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति के चलते यदि सरकार अवैध धर्मांतरण (Illegal Conversion) को रोकने के लिए कदम नहीं उठाती है तो अदालत मूकदर्शक नहीं रह सकती. याचिकाकर्ता ने मंगलवार को दाखिल एक अतिरिक्त हलफनामे में कहा कि जबरन या छल से किया जाने वाला धर्मांतरण ‘‘अन्याय और शोषण'' के जैसा है. न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति तुषार गेडेला के द्वारा अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की एक याचिका पर बुधवार को सुनवाई किये जाने का कार्यक्रम है. इस याचिका में भयादोहन, धमकी और तोहफे एवं मौद्रिक लाभ, काला जादू तथा अंधविश्वास के जरिये किये जाने वाले लोगों के धर्मांतरण को रोकने के लिए केंद्र और दिल्ली सरकार को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.
याचिकाकर्ता का हलफनामा, हाई कोर्ट के पूर्व के निर्देश के अनुपालन में दाखिल किया गया है.अदालत ने जबरन धर्मांतरण के कुछ उदाहरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था. हलफनामे में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत प्रदत्त धार्मिक आचरण का अधिकार एक पूर्ण अधिकार नहीं है बल्कि लोक व्यवस्था, स्वास्थ्य और नैतिकता पर निर्भर करता है.
इसमें कहा गया है, ‘‘इसलिए जादू, अंधविश्वास और काला जादू के जरिये किये जाने वाले धर्मांतरण का संरक्षण अनुच्छेद 25 के तहत नहीं किया जा सकता. हालांकि, विदेश से वित्त पोषित व्यक्ति एवं गैर सरकारी संगठन भयादोहन कर, धमकी देकर, धोखे से, तोहफे और मौद्रिक लाभ देकर आर्थिक रूप से कमजोर तबकों-गरीबी रेखा से नीचे के लोगों का धर्मांतरण कर रहे हैं.''
हलफनामे में कहा गया है कि दिल्ली विदेशों से वित्त पोषित व्यक्तियों, गैर सरकारी संगठनों और मिशनरी के लिए सुरक्षित स्थान बन गया है जिन्होंने ओखला, जामिया नगर,बटला हाउस और काली बाड़ी मार्ग में अपने दफ्तर खोल रखे हैं. इसमें कहा गया है, ‘‘याचिकाकर्ता की दलील है कि यदि सरकार तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति के चलते कदम नहीं उठाती है तो अदालत मूक दर्शक नहीं रह सकती.''