तमिल फिल्मों के सुपरस्टार थलापति विजय ने गुरुवार को अपनी पार्टी का झंडा लांच किया. विजय ने फरवरी में अपने राजनीतिक दल तमिलगा वेत्री कजगम (टीवीके) की स्थापना की थी. टीवीके का झंडा दो रंगों का है. झंडे में लाल रंग की दो क्षैतिज पट्टियों के बीच एक सफेद रंग की पट्टी है.सफेद पट्टी पर दो हाथी और सितारों से घिरा एक वागाई फूल का चिह्न बना हुआ है.विजय की पार्टी ने 2026 में होने वाला तमिलनाडु का विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की है.
कब बनाई थी राजनीतिक पार्टी
थलापति विजय ने 1992 में आई फिल्म 'नालैया थीरपु' के मुख्य अभिनेता थे. इसके बाद उनके फैन क्लब विजय मक्कल अय्यकम की स्थापना हुई. यह अब अखिल भारतीय थलापति विजय मक्कल अय्यकम (एआईटीवीएमआई) के नाम से जानी जाती है. पार्टी की घोषणा करते हुए विजय ने कहा था कि उनका फैन क्लब पिछले काफी सालों से लोगों की भलाई के लिए काम कर रहा था. लेकिन यह पूरी तरह से सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक सुधार नहीं ला सकता है. इसके लिए राजनीतिक दल की जरूरत है.इसके बाद ही उन्होंने तमिलगा वेत्री कजगम (टीवीके) नाम से अपने राजनीतिक दल की घोषणा की थी.
उन्होंने कहा था,''हमारा लक्ष्य 2026 का विधानसभा चुनाव लड़ना और जीत हासिल कर राज्य के लोगों को राजनीतिक परिवर्तन देना है. उन्होंने कहा था कि चुनाव आयोग से मान्यता मिलने और लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद हमारी पार्टी की विचारधारा, सिद्धांत, पार्टी के झंडे और प्रतीक और तमिलनाडु के विकास के लिए पार्टी की योजनाओं को वो सार्वजनकि करेंगे.''
दक्षिण भारत में फिल्म और राजनीति का रिश्ता
दक्षिण भारत में फिल्म स्टारों का राजनीति में आना या अपनी पार्टी बनाना कोई नई बात नहीं है. केवल तमिलनाडु में ही अब तक हुए मुख्यमंत्रियों में से पांच का संबंध फिल्मों से रहा है.तमिलनाडु के पहले मुख्यमंत्री अन्नादुरई भी फिल्मों की पटकथा लिखा करते थे.वो अपनी पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कजगम (डीएमके) की जाति और धर्म विरोधी नीतियों के प्रचार-प्रसार के लिए फिल्मों का इस्तेमाल करते थे.
तमिलनाडु की राजनीति की धुरी क्या है
तमिलनाडु की राजनीति मुख्य तौर पर द्रविड राजनीति के इर्द-गिर्द घूमती है. राज्य में डीएमके और एआईडीएमके द्रविड राजनीति की ध्वजवाहक हैं.राज्य में 70-80 फीसदी वोट इन्हीं दोनों दलों के पास हैं. बाकी के 20-30 फीसदी वोटों पर ही दूसरे दलों की नजर रहती है. विजय की कोशिश भी इसी वोट में हिस्सेदारी करने की है. इसमें उन्हें बीजेपी से मुकाबला करना पड़ सकता है, जो तमिलनाडु में पैर जमाने की जोरदार कोशिशें कर रही है. इस साल हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने डीएमके या एआईडीएमके का समर्थन लिए बिना पहली बार 10 फीसदी से अधिक वोट हासिल किए हैं. ऐसे में टीवीके को डीएमके-एआईडीएमके के साथ-साथ बीजेपी से भी कड़ा मुकाबला करना पड़ सकता है.
विजय का स्टारडम ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है.उनकी फैन फालोइंग हर तरह के लोगों में है.उनके प्रशंसकों में कस्बों के सिंगल स्क्रीन में सीनेमा देखने वालों से लेकर शहरों के मल्टिप्लैक्स में सीनेमा देखने वाले शामिल हैं.इसे देखते हुए उनकी पार्टी उन्हें मदुरै से चुनाव लड़ाने के बारे में सोच रही है.जहां की आबादी मिश्रित है. ईसाई परिवार से आने वाले विजय की जड़ें ओबीसी मानी जाने वाली उदयार जाति में हैं.
तमिल राजनीति में सुपरस्टारों का हाल
तमिलनाडु या देश के किसी भी हिस्से की राजनीति में सफल होने के लिए केवल स्टारडम ही काफी नहीं है. नेता के पास एक विचारधारा का होना भी आवश्यक होता है.तमिलनाडु की राजनीति में अबतक सफल हुए फिल्म से जुड़े लोगों की जड़ें द्रविड राजनीति में गहराई से जुड़ी हुई थीं. उनकी सफलता के पीछे यह एक बड़ा कारण था.
तमिलनाडु की राजनीति में पैर जमाने की कोशिश विजय से पहले भी कई लोग कर चुके हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे जीके मूपानार ने 1996 में तमिल मनीला कांग्रेस बनाई थी. वहीं 2005 में कैप्टन विजयकांत ने डीएमडीके नाम से अपनी पार्टी बनाई थी. तमिल सीनेमा में उनका भी कद विजय जैसा ही था. फिल्म निर्देशक सीमन ने 2009 में तमिल राष्ट्रवाद वाली नाम तमिल तमिलर (एनटीके) के नाम से अपनी पार्टी बनाई. ये लोग तमिलनाडु की राजनीति में कोई कारनामा नहीं कर पाए थे.
इसी तरह से पूर्व केंद्रीय मंत्री और पट्टाली मक्कल कट्टी के नेता अंबुमणि रामदास ने 2014 और 2016 के चुनाव में खुद को मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश किया. लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. पीएमके ने 2016 में 232 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन 212 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी. इसी तरह एनटीके ने 231 पर चुनाव लड़ा और 229 पर अपनी जमानत नहीं बचा पाई थी.
एक और सुपरस्टार कमल हसन ने मक्कल निधि मय्यम (एमएनएम) नाम से अपनी पार्टी 2018 में बनाई थी. उस समय उन्होंने एमएनएम को डीएमके और एआईडीएमके का विकल्प बताया था.लेकिन हाल यह हुआ कि उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव में डीएमके से ही हाथ मिलाना पड़ गया.एमएनएम ने 2021 का चुनाव 180 सीटों पर लड़ा था. लेकिन 178 पर अपनी जमानत जब्त करा बैठी थी. मतलब साफ है कि तमिलनाडु में डीएमके और एआईडीएमके के प्रभाव को चुनौती दे पाना बहुत मुश्किल काम है.
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