- तेजस्वी यादव ने वादा किया है कि बिहार के हर परिवार के कम से कम एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाएगी
- एक ऐसा राज्य जहां बेरोजगारी स्थायी संकट बन चुकी है, यह वादा लोगों के दिलों में उम्मीद जगाने वाला है
- लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है- क्या तेजस्वी वो हर घर में एक सरकारी नौकरी देने का अपना ऐतिहासिक वादा निभा पाएंगे?
बिहार की धरती, जहां गंगा अपनी धार से सपनों और संघर्षों की कहानियां बुनती है, वहां एक नौजवान चेहरा इतिहास की परछाइयों के बीच से उभरता है. एक ऐसा नेता, जो वादों और बर्बादी में घिरे प्रदेश की तकदीर बदलने की दहलीज पर खड़ा है. 35 वर्षीय तेजस्वी यादव, बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता, महागठबंधन के अध्यक्ष और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख चेहरे... आज उस मोड़ पर हैं जहां से बिहार की राजनीति एक नया मोड़ ले रही है.
हर घर नौकरी - एक नई उम्मीद
तेजस्वी यादव ने हाल ही में वादा किया कि बिहार के हर परिवार के कम से कम एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाएगी. यह एक बेहद साहसिक और महत्वाकांक्षी घोषणा है. एक ऐसे राज्य में जहां बेरोजगारी एक स्थायी संकट बन चुकी है, यह वादा लोगों के दिलों में उम्मीद जगाने वाला है. नीति आयोग की 2022-23 की रिपोर्ट बताती है कि बिहार की सालाना बेरोजगारी दर 3.9% थी, जो राष्ट्रीय औसत 3.2% से भी अधिक है. ग्रामीण इलाकों में तो हालात और भी गंभीर हैं.
चुनाव से पहले उम्मीदों की राजनीति
विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, तेजस्वी का यह वादा सिर्फ एक चुनावी रणनीति नहीं बल्कि आर्थिक अनिश्चितताओं और महामारी की मार झेल चुके लोगों के लिए आशा की एक लौ बनकर उभरा है. 2020 के चुनाव की गूंज अब भी रह-रहकर सुनाई देती है. वह चुनाव कोरोना संकट की काली छाया में हुआ था, तब बिहार के लाखों लोग खासकर प्रवासी मजदूर और कामगार बेरोजगारी की खाई में समा गए थे.
2014 से 2017 तक नीतीश कुमार सरकार में अहम मंत्रालय संभाल चुके तेजस्वी यादव बिहारी युवाओं की उम्मीद भरी आवाज की तरह सामने आए. हालांकि इसके बावजूद 2020 के चुनाव में महज 12,768 वोटों (0.03%) से हार गए. ये हार बिहार की जनता की भावनात्मक और अस्थिर राजनीतिक प्रकृति को दर्शाती है.
17 महीने में 5 लाख नौकरियां
तेजस्वी यादव इसके बाद 10 अगस्त 2022 से 28 जनवरी 2024 तक नीतीश कुमार की अगुआई वाली महागठबंधन सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे. तेजस्वी ने हाल ही में दावा किया कि उस दौरान उन्होंने 17 महीनों में 5 लाख नौकरियां दी थीं, जो एक रिकॉर्ड है. उन्होंने कहा, “क्या प्रधानमंत्री मोदी ने 10 साल में इतनी नौकरियां दीं? 2020 के चुनाव प्रचार के दौरान नीतीश कुमार ने हमारे 10 लाख नौकरियों के वादे को मजाक बताया था, लेकिन हमने 5 लाख नियुक्ति पत्र बांटकर दिखा दिया.”
तेजस्वी के सामने सबसे बड़ा सवाल
अब जब तेजस्वी यादव एक बार फिर से चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं, तो सबसे बड़ा सवाल यही है- क्या वो हर घर में एक सरकारी नौकरी देने का अपना ऐतिहासिक वादा निभा पाएंगे? 13.43 करोड़ से अधिक की आबादी वाले बिहार में भूख, महत्वाकांक्षा और जिजीविषा के कई रंग हैं. यहां का युवा आज भी बेकारी और बेरोजगारी के चक्रव्यूह में फंसा हुआ है. यहां के गांव-गांव, गली-गली में सरकारी नौकरी की चाहत एक सपना बनकर गूंजती है.
राघोपुर में तेजस्वी बनाम पीके
प्रशांत किशोर ने गुरुवार को घोषणा कर दी है कि वह राघोपुर से तेजस्वी यादव के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे. इस तरह यह बिहार चुनाव के सबसे बड़े राजनीतिक मुकाबलों में से एक बन गया है. पीके कहते रहे हैं कि नौकरियों की कमी और बिहारी प्रतिभाओं का पलायन यहां की राजनीति का एक बड़ा मुद्दा है. पीके और तेजस्वी दोनों ही नेता बेरोजगारी को सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बना रहे हैं. बेरोजगारी का यही मुद्दा नीतीश कुमार की अगुआई वाली एनडीए सरकार के खिलाफ माहौल तैयार कर सकता है.
आर्थिक अंधकार से निकालने का रास्ता
तेजस्वी का वादा सिर्फ एक सियासी वादा नहीं बल्कि एक पीढ़ी की उम्मीदों का आईना है. बिहार जहां पर बेरोजगारी ने एनडीए सरकार के खिलाफ एंटी इन्कम्बेंसी भावनाओं को भड़काने में अहम भूमिका निभाई है, वहां तेजस्वी का वादा बदलाव की नई इबारत की तरह है. यह वादा एक सीढ़ी की तरह है, जो आर्थिक अंधकार से बाहर निकलने का रास्ता दिखाती है. लेकिन यह एक बेहद चुनौतीपूर्ण काम है. 13.43 करोड़ की आबादी वाले बिहार में करोड़ों नौकरियां पैदा करना कोई बच्चों का खेल नहीं है.
क्या है तेजस्वी का रोडमैप?
तेजस्वी के इस वादे की गंभीरता को समझने के लिए बिहार के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को समझना होगा. बिहार लंबे समय से अवसरों की कमी से जूझता रहा है. तेजस्वी ने जब इतना बड़ा वादा किया है तो उन्होंने इसका खाका भी तैयार कर रखा होगा कि इसे अमली जामा कैसे पहनाना है. क्या तेजस्वी शिक्षा व्यवस्था को बाजार की जरूरतों के मुताबिक ढालेंगे? क्या वह कृषि, निर्माण और तकनीक जैसे क्षेत्रों में निवेश लाकर रोजगार पैदा करेंगे? इन सवालों के जवाब ही उनके राजनीतिक भविष्य और बिहार की दिशा तय करेंगे.
एक वादा, जो बदल सकता है तस्वीर
तेजस्वी के इस वादे के पीछे वह जज्बा है जो बिहार की आत्मा में रचा-बसा है. खेतों में मेहनत करते किसान, सफलता की ओर बढ़ते छात्र और समृद्धि का सपना लेकर लौटते प्रवासी... ये सभी इसी जज्बे के धागे में बंधे हुए हैं. अगर तेजस्वी इस सामूहिक उम्मीद को दिशा दे पाए, वादे को एक्शन में बदल पाए तो वह सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि बदलाव के सूत्रधार बन सकते हैं.
आशा और उम्मीद की असल परीक्षा नवंबर में
भारतीय राजनीति की दुनिया काफी उथल-पुथल भरी रही है, जहां वादे अक्सर भुला दिए जाते हैं. ऐसे में तेजस्वी एक चौराहे पर खड़े हैं. उनका हर घर रोजगार का वादा सिर्फ एक चुनावी हथकंडा नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों के लिए जीवनरेखा बन सकता है. नवंबर में चुनाव की तरफ बढ़ते बिहारवासी संशय और उम्मीद के बीच झूल रहे हैं. उनकी निगाहें ऐसे नेता पर टिकी हैं, जो उनकी तकदीर बदल सकता है. ये वक्त की बात है कि तेजस्वी जनता की उम्मीदों पर कितना खरा उतर पाएंगे, लेकिन एक बात तय है कि सफर शुरू हो चुका है, और दांव पहले से कहीं ज्यादा ऊंचे हैं.