टाटा में फिर से सत्ता संघर्ष, केंद्र सरकार को देना पड़ा दखल; जानें क्या है पूरा विवाद, दांव पर क्या?

विवाद के घेरे में आया टाटा ट्रस्ट एक गैर लाभकारी और परोपकारी संस्था है, जिसकी टाटा संस में लगभग 66% हिस्सेदारी है.

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  • इस बार संघर्ष टाटा ट्रस्ट में है. टाटा ट्रस्ट परोपकारी संस्था है, जिसकी टाटा संस में लगभग 66% हिस्सेदारी है
  • संघर्ष के प्रमुख खिलाड़ी रतन टाटा के सौतेले भाई नोएल टाटा और टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन हैं
  • दो धड़े बन गए हैं. एक नोएल टाटा के साथ तो दूसरा साइरस मिस्त्री के चचेरे भाई मेहली मिस्त्री के साथ है
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टाटा में इतिहास एक बार खुद को दोहरा रहा है. टाटा संस के चेयरमैन साइरस मिस्त्री को हटाए जाने का तीखा विवाद चार साल पहले सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद सुलझ पाया था. अब एक बार फिर से टाटा के बोर्डरूम में हलचल है. इस बार मामला और ऊंचे स्तर पर है.

विवाद क्या है?

इस बार संघर्ष टाटा ट्रस्ट के अंदर है. टाटा ट्रस्ट एक गैर लाभकारी और परोपकारी संस्था है, जिसकी टाटा संस में लगभग 66% हिस्सेदारी है. इस तरह इसके पास ग्रुप की प्रमुख होल्डिंग कंपनी टाटा संस की कंट्रोलिंग पावर है. दुनिया के सबसे बड़े और सबसे अमीर कॉर्पोरेट घरानों में से एक के अंदर सत्ता संघर्ष का एक दशक से भी कम समय में यह दूसरा मामला है, जिसमें सरकार को दखल देना पड़ा है. 

इस संघर्ष के प्रमुख खिलाड़ी रतन टाटा के सौतेले भाई नोएल टाटा और टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन हैं. NDTV को सूत्रों ने बताया कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह समेत दो वरिष्ठ मंत्रियों ने इन दोनों और अन्य अधिकारियों को दिल्ली तलब किया था. इस बैठक में साफ संदेश दिया गया कि टाटा ग्रुप की स्थिरता बनाए रखें क्योंकि इसकी लिस्टेड कंपनियों में बाजार का 25 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा लगा है. 

सूत्रों का कहना है कि टाटा ग्रुप भारत की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाता है. कुछ आकलन बताते हैं कि भारत की GDP का इसका योगदान करीब 4 फीसदी है. यह टैक्स के रूप में हजारों करोड़ रुपये का भुगतान करता है.

विवाद की वजह क्या है? 

एक लाइन में बताएं तो बोर्ड में नियुक्तियां और संचालन से जुड़ी नीतियां विवाद की असली जड़ हैं.  विस्तार में जाएं तो टाटा ट्रस्ट में कथित तौर पर दो धड़े बन गए हैं. एक धड़ा नोएल टाटा के साथ है जबकि दूसरा गुट साइरस मिस्त्री के चचेरे भाई मेहली मिस्त्री के साथ बताया जा रहा है. मेहली का संबंध शापूरजी पल्लोनजी परिवार से है, जिसकी टाटा संस में 18.37% हिस्सेदारी है.

11 सितंबर को हुई बोर्ड मीटिंग में मतभेद उस समय खुलकर सामने आ गए, जब पूर्व डिफेंस सेक्रेटरी विजय सिंह को टाटा संस के बोर्ड में नामित निदेशक के रूप में फिर से नॉमिनेट करने का प्रस्ताव रखा गया. तो विवाद कहां है? दरअसल अक्तूबर 2024 में रतन टाटा के निधन के बाद, टाटा ट्रस्ट ने एक नई नीति बनाई है कि नामित निदेशक के 75 साल की उम्र पार करने के बाद हर साल उनका रीअपॉइंटमेंट किया जाएगा. 

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इस नियम को देखते हुए ट्रस्ट चेयरमैन नोएल टाटा और ट्रस्टी वीनू श्रीनिवासन, जो कि टीवीएस ग्रुप के चेयरमैन एमिरेट्स भी हैं, ने एक्सटेंशन का प्रस्ताव रखा. लेकिन चार अन्य ट्रस्टी मेहली मिस्त्री, प्रमित झावेरी, जहांगीर एचसी जहांगीर और डेरियस खंबाटा ने इसका विरोध कर दिया, जिससे ये प्रस्ताव खारिज हो गया.

बात यहीं खत्म नहीं हुई, असली मोड़ इसके बाद आया. ट्रस्टियों के एक बड़े समूह ने मेहली मिस्त्री को नामित करने की कोशिश की, लेकिन नोएल टाटा और श्रीनिवासन ने असहमति जता दी.

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ये सब ऐसे समय हुआ, जब खबरें गर्म हैं कि मिस्त्री (और उनके कैंप के 4 ट्रस्टी) नोएल टाटा को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं. रतन टाटा के निधन के बाद नोएल को चेयरमैन बनाया गया है. सूत्रों के अनुसार, मिस्त्री गुट का आरोप है कि उन्हें महत्वपूर्ण निर्णयों से बाहर रखा जा रहा है. वे कॉरपोरेट गवर्नेंस में ज्यादा पारदर्शिता और सुधार की मांग उठा रहे हैं. इस सब झगड़े के बीच टाटा समर्थक माने जाने वाले विजय सिंह ने बोर्ड से इस्तीफा दे दिया.

अब ट्रस्टियों की गुरुवार को फिर से बैठक होने वाली है. जाहिर है, वरिष्ठ मंत्रियों के दखल पर ये बैठक हो रही है. आधिकारिक एजेंडा जारी नहीं हुआ है, लेकिन मामले को सुलझाने पर जोर रहेगा. इसे लेकर किसी भी पक्ष ने कोई कमेंट नहीं किया है. 

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दांव पर क्या लगा है?

156 साल पुरानी कॉर्पोरेट विरासत और इसकी लगभग 400 कंपनियों पर एकाधिकार का सवाल है. टाटा संस समूह की निवेश होल्डिंग कंपनी है जो ऑटोमोबाइल, स्टील, पावर एंड यूटीलिटी, हॉस्पिटैलिटी, एफएमसीजी, टेलीकम्युनिकेशन में सक्रिय है. इसके अलावा  केमिकल मैन्यूफैक्चरिंग जैसे कई अन्य क्षेत्रों में भी इसका दखल है. इसके अलावा एयर इंडिया और एयरोस्पेस, मिलिट्री इंजीनियरिंग व डिफेंस टेक्नोलोजी कंपनी टाटा एडवांस सिस्टम्स जैसी कई कंपनियों में पूर्ण या बहुमत की हिस्सेदारी भी है. 

क्या टाटा संस संकट में है?

सीधे तौर पर तो नहीं. हालांकि यह सत्ता संघर्ष रणनीतिक फैसलों को प्रभावित कर सकता है और निवेशकों की भावना पर असर डाल सकता है. लेकिन यह 2016-18 की पुनरावृत्ति नहीं है. 

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यह सब ऐसे समय हो रहा है, जब भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा टाटा संस को पब्लिक लिस्टिंग के लिए दी गई डेडलाइन 30 सितंबर को खत्म हो चुकी है. कंपनी ने अनरजिस्टर्ड कोर इन्वेस्टमेंट कंपनी (CIC) के रूप में जारी रखने के लिए आवेदन किया है.  RBI इसकी जांच रहा है.

2016 में क्या हुआ था?

2016 में साइरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटा दिया गया था, जिसके बाद लंबा कानूनी और व्यक्तिगत विवाद शुरू हुआ. मार्च 2021 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से इस पर विराम लगा, जिसने सभी आरोपों को खारिज कर दिया और टाटा ग्रुप के फैसले को सही ठहराया.

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