तमिलनाडु : लाखों छात्रों को है अपनी डिग्री का इंतजार, जानिए - क्या है देरी की वजह

राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री डॉक्टर पोनमुडी ने इस गड़बड़ी के लिए कुलाधिपति राज्यपाल आरएन रवि को जिम्मेदार ठहराया है.

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तमिलनाडु में छात्रों को है अपनी डिग्री का इंतजार
नई दिल्ली:

तमिलनाडु में ऐसे युवाओं की संख्या लाखों में है, जिन्हें ग्रेजुएशन पूरा होने के कई साल बाद भी अपनी डिग्री का इंतजार है. ऐसे ही एक छात्र हैं रितिश. जिन्होंने पिछले साल ही बी कॉम से ग्रेजुएशन किया था. लेकिन उन्हें मद्रास यूनिवर्सिटी की तरफ से अभी तक डिग्री नहीं दी गई है. डिग्री ना मिल पाने की वजह से रितिश कनाडा में नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर पा रहे हैं. 

"कनाडा में नौकरी के लिए करना था आवेदन"

रितिश ने NDTV से बातचीत में कहा कि मुझे नौकरी के लिए कनाडा जाना था. मैंने कंप्यूटर एपलिकेशन से बी. कॉम किया है. डिग्री के बगैर मैं कुछ भी नहीं कर पा रहा हूं. रितिश की तरह ही जी श्रीधर ने NDTV को बताया कि कोरोना महामारी की वजह से दो बैच को रोक दिया गया था. जिसे पिछले साल ही पूरा कराया गया है. लेकिन अब मेरा और मेरे से एक साल पहले का बैच फंसा हुआ है. 

9 लाख से ज्यादा छात्रों को है डिग्री का इंतजार

बता दें कि राज्य में रितिश और जी श्रीधर जैसे ही राज्य के 12 अलग-अलग विश्वविद्यालयों से नौ लाख से ज्यादा ग्रेजुएट्स, पोस्ट ग्रेजुएट्स और रिसर्च स्कॉलर हैं जिनको अभी भी अपनी डिग्री मिलने का इंतजार है. राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री डॉक्टर पोनमुडी ने इस गड़बड़ी के लिए कुलाधिपति राज्यपाल आरएन रवि को जिम्मेदार ठहराया है.

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उनका आरोप है कि राज्यपाल केवल केंद्रीय मंत्रियों को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करना चाहते हैं और इससे देरी होती है जबकि राज्य में कुलपति और विद्वान लोग हैं.

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वीसी के बगैर दीक्षांत समारोह नहीं

कोयम्बटूर के भारथिअर विश्वविद्यालय में स्थिति और भी खराब है.करीब एक साल तक यहां कोई वाइस चांसलर नहीं है. ऐसे में बगैर वीसी के दीक्षांत समारोह नहीं हो सकता.कई लोग कहते हैं कि राज्यपाल कुलपति के लिए खोज समिति में अपने नामिती को शामिल करने पर जोर देकर नियुक्ति में देरी करते हैं, जिसके लिए कोई प्रावधान नहीं है. 

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दीक्षांत समारोह में इतनी देरी सही नही

करियर कंसल्टेंट जयप्रकाश गांधी ने कहा कि मुझे नहीं लगता है कि विश्व में इस तरह की कोई यूनिवर्सिटी होगी जहां दीक्षांत समारोह कराने में इतनी देरी होती हो. ऐसा इसलिए भी क्योंकि ज्यादातर यूनिवर्सिटी में तो दीक्षांत समारोह को उनके अकादमिक कैलेंडर का हिस्सा ही माना जाता है. उन्होंने आगे कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि हमेशा एक मुख्य अतिथि होना चाहिए. कुलाधिपति और कुलपति यह कर सकते हैं. राज्यपाल और उच्च शिक्षा विभाग को अपने राजनीतिक मतभेदों और अहंकार को भूल जाना चाहिए और समय पर दीक्षांत समारोह आयोजित करना चाहिए. ताकि छात्रों को डिग्री मिलने में देरी ना हो. 

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राज्यपाल और सीएम आमने-सामने

पिछले साल राज्य विधानसभा ने राज्यपाल को कुलाधिपति के पद से हटाने के लिए विधेयक पारित किया था. हालांकि, राज्यपाल ने अपनी शक्तियों को कम करने के उद्देश्य से बिलों पर अपनी सहमति नहीं दी है. उन्होंने पिछले साल एक पूर्व साक्षात्कार में कहा था कि "संविधान उन्हें रोक लगाने की अनुमति देता है" और उन्हें सहमति देने की आवश्यकता नहीं है .इस पूरे मुद्दे पर मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि इसलिए हमने मुख्यमंत्री को चांसलर बनाने के लिए एक विधानसभा प्रस्ताव पारित किया था. लेकिन इसे लेकर राज्यपाल की ओर से अभी तक कोई जवाब नहीं आया है. वहीं, राजभवन के सूत्रों का दावा है कि केवल सात विश्वविद्यालयों ने दीक्षांत समारोह की तारीख मांगी थी और राज्यपाल ने चार के लिए मंजूरी दी थी.

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