दुर्घटना मुआवजे को लेकर गृहणियों के लिए सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आया

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गृहिणी की काल्पनिक आय की गणना, उनके काम, श्रम और बलिदान की मान्यता पर आधारित होना चाहिए

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सुप्रीम कोर्ट.
नई दिल्ली:

दुर्घटना पर मुआवजे को लेकर गृहणियों (Housewives) के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का अहम फैसला आया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गृहणियों के लिए दुर्घटना के मामलों में मुआवजा (Accident Compensation) तय करने के लिए न्यायालय को गृहकार्य की प्रकृति को ध्यान में रखना चाहिए. गृहिणी की नोशनल यानी काल्पनिक आय की गणना, गृहिणियों के काम, श्रम और बलिदान की मान्यता पर आधारित होना चाहिए. यह हमारे राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय कानून के दायित्वों और सामाजिक समानता की हमारी संवैधानिक दृष्टि और सभी को गरिमा सुनिश्चित करने के लिए भी है.

एक अलग निर्णय लिखते हुए न्यायमूर्ति रमना ने कहा घरेलू कार्यों के लिए समर्पित समय और प्रयास की भारी मात्रा,  जो पुरुषों की तुलना में महिलाओं के होने की अधिक संभावना है. जब कोई गृहिणी उपक्रम करती है, तो वह आश्चर्यचकित करने वाला नहीं होता है. एक गृहिणी अक्सर पूरे परिवार के लिए भोजन तैयार करती है, किराने का सामान और घर की अन्य खरीदारी की जरूरतों का प्रबंधन करती है, घर और उसके आस-पास की सफाई और प्रबंधन करती है, सजावट, मरम्मत और रखरखाव का काम करती है, बच्चों की जरूरतों और किसी भी वृद्ध सदस्य की देखभाल करती है. घर, बजट का प्रबंधन करती है और बहुत कुछ करती है.

एक गृहिणी के लिए असाधारण आय को ठीक करने का मुद्दा, इसलिए अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य करता है.  यह उन महिलाओं  की मान्यता है जो इस गतिविधि में लगी हुई हैं, चाहे वह सामाजिक सांस्कृतिक मानदंडों पर पसंद के रूप में हो या परिणाम के रूप में. यह बड़े पैमाने पर समाज को संकेत देता है कि कानून और न्यायालय गृहणियों के श्रम, सेवाओं और बलिदानों के मूल्य में विश्वास करते हैं. 

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यह टिप्पणी शीर्ष अदालत द्वारा एक मामले में दिए गए एक फैसले में आई, जो दो दुर्घटना पीड़ित पति और पत्नी को मुआवजा देने से संबंधित था. दंपति की साल 2014 में दिल्ली में एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. पति एक शिक्षक के रूप में काम करता था और पत्नी गृहिणी थी और उनके दो बच्चे थे.

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इस मामले में ट्रिब्यूनल ने 40.71 लाख रुपये के मुआवजे का आदेश दिया लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने इसे घटाकर 22 लाख कर दिया. लेकिन पीड़ित परिवार द्वारा अपील में शीर्ष अदालत ने इसे 2014 से 9% ब्याज के साथ 33.20 लाख तक बढ़ा दिया और दो महीने के भीतर ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी द्वारा भुगतान किया जाने का आदेश दिया. 

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यह निर्णय जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस सूर्यकांत की तीन न्यायाधीश पीठ द्वारा दिया गया. दरअसल दुर्घटना के लिए पीड़ित काम करने वाले व्यक्ति के मुआवजे सहित किसी सूत्र के साथ गणना की गई थी. लेकिन गृहिणियों के लिए अदालत के लिए यह मुश्किल था कि वह आय को तय कर सके. 

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शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि कोर्ट को विधि का चयन करते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए और काल्पनिक आय को तय करना चाहिए कि विशेष मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में वही हो, न तो मुआवजे का आकलन रूढ़िवादी रूप से हो, न ही बहुत उदारतापूर्वक.

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