यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्रों के मामले में आज भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. याचिकाकर्ता की ओर से राजीव दत्ता ने कहा कि जिनेवा कन्वेंशन के हिसाब से देखें तो ये छात्र वॉर विक्टिम की श्रेणी में आते हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसे इस स्तर पर ना ले जाएं. मामले में अगली सुनवाई अब 23 सितंबर को होगी.
इससे पहले केंद्र सरकार ने एक हलफनामा दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि यूक्रेन से लौटे छात्रों को भारतीय विश्वविद्यालयों में समायोजित नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा कि नेशनल मेडिकल कमीशन कानून में इसकी अनुमति देने का कोई प्रावधान नहीं है. इस तरह की छूट से भारत में मेडिकल शिक्षा के मानकों में बाधा आएगी.
केंद्र ने कहा कि ये छात्र दो कारणों से विदेश गए थे. पहला- NEET में खराब मेरिट और दूसरा भारत में फीस चुकाने में असमर्थता की वजह से. केंद्र ने कहा कि भारत के प्रमुख मेडिकल कॉलेजों में खराब योग्यता वाले छात्रों के नामांकन की अनुमति देने से अन्य मुकदमेबाजी हो सकती है. साथ ही, वे फीस वहन करने में सक्षम नहीं होंगे.
यूक्रेन के विश्वविद्यालयों द्वारा प्रस्तावित 'अकादमिक गतिशीलता कार्यक्रम' के लिए केंद्र और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग द्वारा दी गई अनापत्ति के बारे में सुप्रीम कोर्ट को सूचित करते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि यह योजना अधिकांश पीड़ित छात्रों के साथ न्याय करेगी. लगभग 20,000 भारतीय छात्रों के करियर की रक्षा होगी जिन्हें पांच महीने पहले युद्धग्रस्त देश से निकालना पड़ा था.
अकादमिक गतिशीलता कार्यक्रम उन भारतीय छात्रों के अस्थायी ट्रांसफर की सुविधा प्रदान करता है, जिन्होंने कभी यूक्रेन में अपनी चिकित्सा शिक्षा को एक अलग देश में अन्य विश्वविद्यालयों में अपनाया था और जिसके लिए सरकार और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने पहले ही "अनापत्ति" दे दी है. हालांकि, डिग्री मूल यूक्रेनी विश्वविद्यालय द्वारा ही प्रदान की जाएगी.
केंद्र ने कहा कि यदि कम योग्यता वाले इन छात्रों को डिफ़ॉल्ट रूप से भारत के प्रमुख मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश की अनुमति दी जाती है, तो उन इच्छुक उम्मीदवारों के कई मुकदमे हो सकते हैं, जिन्हें इन कॉलेजों में सीट नहीं मिली या मेडिकल कॉलेजों में सीट से वंचित कर दिया गया है. केंद्र ने कहा कि यदि इन उम्मीदवारों को भारत में प्राइवेट मेडिकल कॉलेज आवंटित किए जाते हैं, तो वे एक बार फिर संबंधित संस्थान की फीस संरचना को वहन करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं.
मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि भारत सरकार ने अपने चैनल के जरिए व्यवस्था की है और कर भी रही है लेकिन किसी देश पर इन छात्रों को लाद नहीं सकते. हम उनसे राजनयिक स्तर पर अनुरोध ही कर सकते हैं. हम उन देशों से बातें कर रहे हैं जिनका यूक्रेन के विश्वविद्यालयों के साथ तालमेल और कई तरह के करार हैं. मेहता ने कहा कि यूक्रेन सरकार भी इन छात्रों को उन चिह्नित देशों में स्थानांतरित करने पर राजी है.
कोर्ट ने सरकार से पूछा कि क्या इस बाबत छात्रों की काउंसलिंग यानी उनसे बातचीत की जा रही है? कोई पोर्टल या कोई परामर्श दफ्तर खोला गया है जहां से परेशान छात्र या अभिभावक जानकारी हासिल कर सकें? या उनको पता चल सके कि आखिर किन देशों और वहां के किन किन मेडिकल कॉलेजों में ट्रांसफर के लिए अप्लाई कर सकते हैं? इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हां लाइजनिंग अफसर हैं. इस पर कोर्ट ने कहा कि बीस हजार छात्र और एक लाइजनिंग अफसर? पागल नहीं हो जाएंगे वो अफसर जिन्हें रोजाना हजारों छात्रों को बताना समझाना होगा!
कोर्ट ने पूछा, "आप क्यों छात्रों को दौड़ाते रहना चाहते हैं? पोर्टल बनाकर उनकी परेशानी आसान क्यों नहीं कर देते? पोर्टल बनाइए..सरकार के पास तो संसाधन हैं..पलक झपकते सूचना दीजिए परेशान छात्रों को. एक आरोप ये भी था कि कुछ एजेंट छात्रों को बरगला रहे हैं. ठीक है सरकार स्थापित नियमों के मुताबिक छात्रों को अपने देश के मेडिकल कॉलेजों में समायोजित नहीं कर सकती लेकिन उनको सही सूचना और गाइडेंस तो दीजिए."
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि मुझे सरकार से इस बाबत समुचित निर्देश लेने और आपको बताने के लिए कुछ मोहलत दीजिए. इस पर याचिकाकर्ता छात्रों के वकील राजीव दत्ता ने कहा कि कोर्ट सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगे
ताकि SG सरकार के निर्देश अपने जवाब में शामिल करे.
इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वो छात्र युद्ध पीड़ित नहीं हैं, नोटिस जारी करते जी छात्रों के मन में ये बात बैठ जाएगी की वो तो वार विक्टिम यानी युद्ध पीड़ित हैं la वो मुआवजे के भी हकदार हैं. नोटिस के बाद बात किसी और दिशा में चली जाएगी. सरकार शुरू में ही बता चुकी है कि उनको भारत में समायोजित नहीं किया जा सकता लेकिन विकल्पों पर गंभीरता से बात चल रही है.